देवता के नामजप एवं मंत्रजप में अंतर

. देवता के नामजप तथा मंत्रजप में अंतर – प्रस्तावना

मंत्र के विषय से बहुत लोग आकर्षित होते हैं तथा बहुत बार नामजप और मंत्रजप को एक ही समझ लिया जाता है । नामजप और मंत्रजप दोनों में ही किसी अक्षर, शब्द, मंत्र अथवा वाक्य को बार बार दोहराया जाता है, इसलिए दोनो में अंतर करना कठिन हो सकता है । परंतु अध्यात्मशास्त्र के दृष्टिकोण से, दोनों में कई प्रकार से अंतर है और प्रस्तुत लेख में हमने नामजप एवं मंत्रजप में तुलनात्मक अंतर बताया है ।

. मंत्र की परिभाषा

मंत्र शब्द की विभिन्न परिभाषाएं हैं, जो उसके आध्यात्मिक सूक्ष्म भेदों को समझाती हैं । सामान्यत: मंत्र का अर्थ है अक्षर, नाद, शब्द अथवा शब्दों का समूह; जो आत्मज्ञान अथवा ईश्‍वरीय स्वरूप का प्रतीक है । मंत्रजप से स्व-रक्षा अथवा विशिष्ट उद्देश्य साध्य करना संभव होता है । मंत्र को दोहराते समय विधि, निषेध तथा नियमों का विशेष पालन करना आवश्यक होता है । यह मंत्र तथा मंत्र साधना (मंत्रयोग) का महत्त्वपूर्ण अंग है ।

. नामजप की परिभाषा

नामजप अर्थात किसी भी देवता के नाम को बार-बार दोहराना । मंत्रजप की भांति नामजप पर किसी प्रकार से विधि, निषेध अथवा नियमों का बंधन नहीं रहता । इसे कभी भी और कहीं भी कर सकते हैं । नामजप साधना का मुख्य उद्देश्य है देवता के नाम में जो चैतन्य है वह ग्रहण कर आध्यात्मिक उन्नति करना । इसके साथ ही, जो अनिष्ट शक्तियां हमारी साधना में बाधा निर्माण करती हैं उनसे रक्षा करने के लिए नामजप एक शक्तिशाली उपाय है ।

प्रस्तुत सारणी के माध्यम से नामजप तथा मंत्रजप में तुलना की गई है :

नामजप तथा मंत्रजप में तुलना

विशेषता

देवता का नामजप करना

मत्रजप करना

१. क्या बार-बार दोहराना आवश्यक है ?

है

है

२. संकल्प की आवश्यकता

नहीं है

है

३. होम-हवन इत्यादि विधान

नहीं होते

होते हैं

४. जपसंख्या की गिनती रखना

रखना आवश्यक नहीं

आवश्यक है क्योंकि मंत्रजप संख्यायुक्त होता है । गिनती न करने से हमें फलप्राप्ति नहीं होती ।

५. उद्देश्य

सकाम अथवा निष्काम

सकाम, स्व-रक्षा, शत्रु का नाश, सिद्धि प्राप्ति अथवा निष्काम

६. गुरु द्वारा दीक्षा

किसी देवता का नामजप करते समय उनके नाम में ही उस देवता की शक्ति होती है । इसलिए गुरु द्वारा दीक्षा की आवश्यकता नहीं होती ।

गुरु द्वारा दीक्षा की आवश्यकता होती है, क्योंकि गुरु के संकल्प से ही मंत्र में शक्ति आती है तथा मंत्र का योग्य उच्चारण भी गुरु सिखाते हैं ।

७. विधि-निषेध का पालन

नहीं होता ।

होता है । विधि का उदाहरण है – मंत्र साधना के पूर्व स्नान करना, मंत्र के अनुष्ठान के समय दूध, फलाहार करना इ. । निषेध का उदाहरण मांसाहार न करना इ. ।

८. योग्य उच्चारण का महत्त्व

आवश्यक नहीं

शुद्ध उच्चारण करने से ही लाभ होता है ।

९. कब करें ?

कभी भी, समय का बंधन नहीं ।

विशिष्ट समय, उदाहरण गायत्रीमंत्र का उच्चारण सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय करने से अधिक लाभ होता है ।

१०. कहां करें ?

कहीं भी, जो स्थान सात्त्विक नहीं, वहां भी कर सकते हैं, उदा. स्नानगृह

पवित्र स्थान पर ही उदाहरण घर, नदीतट , गोशाला, अग्निशाला, तीर्थक्षेत्र, उपास्यदेवता की मूर्ति के सामने इ.

११. हानि

नहीं होती

अयोग्य उच्चारण से हानि हो सकती है ।

टिप्पणियां –

१. संकल्प की व्याख्या के लिए संकल्प , ब्रह्मांड की शक्तियों में से एक; इस लेख का संदर्भ लें ।

२. जालस्थल पर अथवा विभिन्न पुस्तकों में, हमें बहुत से मंत्र मिलते हैं, जो किसी विशेष उद्देश्य के लिए सुझाए गए होते हैं । विशेष लाभप्राप्ति हेतु हम उनमें से कुछ मंत्र स्वयं ही चुन लेते हैं । परंतु कोई मंत्र जब तक किसी संत द्वारा अथवा गुरु द्वारा न दिया गया हो तब तक उससे हमें कुछ भी लाभ नहीं होता अथवा मर्यादित स्तर पर ही लाभ होता है ।

३. किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले विभिन्न मंत्रों का निश्‍चित/विशिष्ट संख्या में जप करना चाहिए (उदा. १०८ अथवा १००८ बार) । गिनती न करने से हमें उससे काई लाभ नहीं होता ।

४. किसी भी मंत्र का परिणाम उसमें अंतर्भूत एवं कायर्रत पंचतत्त्व अथवा पंचतत्त्वों के अनुसार होता है । यदि मंत्रजप योग्य पद्धति से नहीं किया गया अथवा मनानुसार किया गया, तो हमें उसमें अंतर्भूत पंचतत्त्व से हानि हो सकती है । उदा. यदि मंत्र तेजतत्त्व से संबंधित है और हम उसे अपने मनानुसार बार-बार दोहराते हैं तो हमारी देह में उष्णता निर्मित होकर देह के किसी अंग अथवा उसके कार्य पर उसका दुष्परिणाम हो सकता है ।

४. वर्तमान काल में नामजप सर्वोत्तम साधना है

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प्रत्येक युग के लिए ईश्‍वर ने विशेष साधना बताई है जिसे मनुष्य सरलता से उस युग में कर सकता है । आज का हमारा जीवन उस काल से बहुत भिन्न है, जब मनुष्य मंत्रजप साधना कर सकता था और सभी विधि-विधान का पालन भी करता था, जो उससे फलप्राप्ति हेतु आवश्यक थे । आज भागदौड भरे जीवन में तथा रज तम प्रधान वातावरण के कारण, साधना के अन्य योगमार्ग जैसे ध्यानयोग, कर्मकांड इत्यादि मार्ग से साधना करके आध्यात्मिक उन्नति करना कठिन है । इसलिए, सिद्धपुरुषों और संतों ने वर्तमान कलियुग में सबके लिए सरल व सर्वोत्तम साधना, नामजप साधना बताई है, जो साधना के छ: मूलभूत तत्त्वों के अनुरूप है और शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति करने में सहायक है ।

५. सारांश

  • जैसे कि नामजप और मंत्रजप दोनों में ही किसी अक्षर, शब्द, मंत्र अथवा वाक्य को बार बार दोहराया जाता है, दोनों में अंतर करना कठिन हो सकता है । वैसे, दोनों में कई प्रकार से अंतर है । सबसे बडा अंतर है कठोर विधि-विधान जिनका पालन मंत्रजप के समय करना होता है ।
  • नामजप और मंत्रजप दोनों से ही आध्यात्मिक उन्नति कर सकते हैं, परंतु कालानुसार नामसाधना ही बताई गई है जो आध्यात्मिक उन्नति हेतु वर्तमान युग की सर्वोत्तम साधना है ।
  • जब तक संत अथवा गुरु हमें विशेष रूपसे कोई मंत्रजप करने के लिए नहीं बताते, SSRF द्वारा शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति करने हेतु, नामजप साधना ही बताई जाती है ।