ईश्वरीय चैतन्य से भारित पवित्र जल (तीर्थ) कैसे बनाएं ?

१. प्रस्तावना : ईश्वरीय चैतन्य से पूरित पवित्र जल (तीर्थ) की निर्मिति कैसे करें

ईश्वरीय चैतन्य युक्त पवित्र जल (तीर्थ) बनाने की अनेक पद्धतियां हैं जो निम्नानुसार हैं :

  • शुद्ध जल में विभूति मिलाकर तीर्थ बनाना
  • शुद्ध जल को नामस्मरण करते हुए ईश्वरीय चैतन्य से पूरित (charge) कर तीर्थ बनाना
  • शुद्ध जल में पवित्र मिट्टी मिलाकर तीर्थ बनाना (ऐसी मिट्टी जो उन पवित्र स्थानों से प्राप्त की गई हो जहां महान परंपरा के संतो ने अपने जीवन काल में निवास किया था ।)
  • शुद्ध जल को अभिमंत्रित कर तीर्थ बनाना (यह अभिक्रिया केवल उन व्यक्तियों द्वारा की जा सकती है, जिनका आध्यात्मिक स्तर ५० प्रतिशत से ऊपर है । इस स्तर से कम आध्यात्मिक स्तर के व्यक्ति द्वारा अभिमंत्रित जल के ईश्वरीय चैतन्य में कोई वृद्धि नहीं होती ।)
  • स्पर्श द्वारा तीर्थ बनाना (यह तभी संभव है, जब कोई संत जल को स्पर्श करते हैं ।)

इस विभाग में हम ईश्वर का नामस्मरण करते हुए तीर्थ बनाने की प्रक्रिया का विवरण प्रस्तुत करेंगे । शुद्ध जल को वैदिक मंत्रोच्चारों द्वारा भी पूरित किया जा सकता है, किंतु वह इस लेख की विषय वस्तु नहीं है । ईश्वर का नामस्मरण कर सकारात्मक शक्ति से पूरित किया हुआ तीर्थ आध्यात्मिक उपचार करने का एक सहज उपलब्ध उपाय है ।

. ईश्वरीय चैतन्य से भारित कर तीर्थ कैसे बनाएं

इसके लिए सर्व प्रथम एक प्याला शुद्ध जल लें । ईश्वर से प्रार्थना करें कि आपका नामस्मरण अधिकतम ध्यान व भक्ति भाव से हो तथा नामस्मरण से निर्मित सकारात्मक शक्ति, जल को ईश्वरीय चैतन्य से समृद्ध करे । तदोपरांत अपनी हथेली को प्याले के मुख पर रखें । अब अपने नेत्र बंद कर लें एवं यथासंभव ईश्वर का नामस्मरण अधिकतम ध्यान एवं भक्ति भाव से लगभग ३ से ४ मिनटतक करें । इसके उपरांत जल, तीर्थ के रूप में उपयोग हेतु तैयार है ।

सूक्ष्म ज्ञान के आधार पर निर्मित निम्न चित्र दर्शाता है कि जब कम से कम ५० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर का कोई व्यक्ति जल को नामस्मरण करते हुए भारित करता है तब कैसी प्रक्रिया होती है ।

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परमात्मा के नामस्मरण से जनित ईश्वरीय चैतन्य प्याले के मुख पर रखे हाथ से होकर जल के अंदर प्रवेश करता है । ईश्वरीय चैतन्य की तरंगें जल में प्रवेश करतीं हैं एवं उनके सर्पिलाकार वलय जल भरे प्याले की तलहटी में तैयार होते हैं । जिसके चारों ओर ईश्वरीय चैतन्य का घेरा बना रहता है । इस प्रकार प्याले में भरा जल, चैतन्य से भारित हो जाता है एवं वह सभी दिशाओं में प्रसारित होता है ।

इस प्रकार से बनाये गए तीर्थ से कितना लाभ होगा यह इस पर निर्भर करता है कि उसमें कितनी मात्रा में ईश्वरीय चैतन्य उत्पन्न हुआ है । इसलिए उसकी प्रबलता अर्थात प्याले के तीर्थ की आध्यात्मिक शक्ति उसे निर्माण करनेवाले व्यक्ति के आध्यात्मिक स्तर पर निर्भर करती है । भारित करनेवाले व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर जितना अधिक, उतनी अधिक तीर्थकी प्रबलता ।

यदि भारित करनेवाले व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर ५० प्रतिशत से कम है, तो भारित जल में अपेक्षित आध्यात्मिक प्रबलता नहीं होगी । ऐसी स्थिति में तीर्थ बनाने के लिए प्याले के जल में SSRF की अगरबत्तियों से प्राप्त पवित्र विभूति मिलाना योग्य होगा । जैसा कि विदित है कि विश्व की जनसंख्या के ८० प्रतिशत लोगों का आध्यात्मिक स्तर ५० प्रतिशत से कम है अत: तीर्थ बनाने के लिए पवित्र विभूति मिलाने की विधि की संस्तुती की जाती है ।

जल भारित कर तीर्थ बनाने की विधि में आध्यात्मिक स्तर का प्रभाव

आध्यात्मिक स्तर का प्रतिशत जल मे निर्मित ईश्वरीय चैतन्य का प्रतिशत
२०% ०.५%
३०% १.०%
४०% २.०%**
५०% २.५%
६०% ३.०%
७०% ३.५%
८०% ४.०%
९०% ४.५%
१००% ५.०%

* किसी जड वस्तु में ईश्वरीय चैतन्य निर्मित करने की अधिकतम सीमा ६ प्रतिशत है अर्थात संतों की समाधि अवस्था

** यदि पवित्र विभूति का प्रयोग तीर्थ बनाने लिए किया जाए तो ४० प्रतिशत से कम आध्यात्मिक स्तर के व्यक्ति द्वारा भी २ प्रतिशत ईश्वरीय चैतन्य युक्त तीर्थ निर्मित किया जा सकता है ।

इस भारित पवित्र जल अर्थात तीर्थ का उपयोग आध्यात्मिक उपचार हेतु लगाने, छिडकने तथा पीने के लिए किया जा सकता है ।