नामजप किस प्रकार हमारे मन को निर्मल एवं शुद्ध करता है ?

नामजप से निर्मित भक्तिकेंद्र किस प्रकार मन को निर्मल बनाता है ?

यदि आपने यह लेख पढा है कि चेतन एवं अवचेतन मन हमारे कृत्यों को कैसे प्रभावित करता है, तो आप समझ जाएंगे कि किस प्रकार केवल नकारात्मक संस्कारों को नियंत्रित कर मन को निर्मल कर हम एक अच्छा जीवन जी सकते हैं ।

जिस प्रकार सुई द्वारा हम अपने हाथ अथवा पैर में चुभा कांटा निकाल सकते हैं, वैसे ही नया संस्कार बनाकर पुराने दोषपूर्ण संस्कार हटाए जा सकते हैं । इस शक्तिशाली नए संस्कार को भक्तिकेंद्र कहते हैं ।

किसी  विचार अथवा कृत्य की बार-बार पुनरावृत्ति होने से उसका संस्कार निर्मित होता है, जो दृढ हो जाने पर उसका एक केंद्र बन जाता है । यह किसी मैदान में पगडंडी बनाने की भांति है । यदि हम घास के मैदान में एक ही मार्ग पर बार-बार चलें तो पगडंडी बन जाती है । भक्तिकेंद्र निर्माण करने के लिए इसी सिद्धांत का प्रयोग किया जाता है । हमने जिस धर्म / संप्रदाय में जन्म लिया है उसी के अनुसार हम भगवान के नाम का जप करते हैं । इससे मन निर्मल और शुद्ध किस प्रकार होता है, इसका विवेचन आगामी लेखों में किया गया है

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