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१. सुख के विषय में

१.१ विषय के मूल से आरंभ करते हैं

यदि हम अपनी जिज्ञासा का आरंभ, ‘किसी के जीवन का व्यक्तिगत ध्येय क्या है ?’, इस विषय से करें तो यह हमारे लिए सदैव सहायक होता है ।

आज हम सब बहुत ही गतिमान जीवन जी रहे हैं । कभी-कभार ही कोई व्यक्ति एक कदम पीछे हटकर अपने जीवन के बारे में गहन विचार करता है ।

आपके जीवन का ध्येय क्या है ?

क्या आपने अपने ध्येय को प्राप्त करने के लिए अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन लक्ष्य निर्धारित किया है ?

क्या आपने इन निर्धारित लक्ष्यों में से कोई लक्ष्य साध्य किया है ?

अथवा कई वर्षों के उपरांत आपका ध्येय ही बदल गया है ?

इन लेखों द्वारा आप अंतर्मुख होकर अपने जीवन के विषय में चिंतन कर सकते हैं और जीवन के विषय में स्वयं को प्रश्न पूछ सकते हैं ।

आइए हम यह समझने का प्रयत्न करें कि मनुष्य के जीवन का प्राथमिक उद्देश्य क्या है । यदि हम अपने चारों ओर देखेंगे, तो हम यह पाएंगे कि हम सब अलग दिखते हैं, हम सबकी पृष्ठभूमि (background) भिन्न है, हमारा व्यक्तित्व अलग है, परंतु सबके जीवन में एक पहलू समान है ।

श्रद्धा, लिंग और सामाजिक अथवा आर्थिक स्थिति पर निर्भर न होते हुए सभी मनुष्यों को एक धागे में पिरोनेवाली एक समान इच्छा है, आनंद में रहने की इच्छा । यह इच्छा रखनेवाली मनुष्यजाति एकमात्र नहीं है । प्रत्येक प्राणीमात्र, छोटी चींटी से लेकर विशालकाय हाथी तक, सभी आनंद की अभिलाषा रखते हैं । एक चींटी का उदाहरण देखते हैं । किसी भी कष्टदायक स्थिति से भागकर वह सुखदायक स्थिति की ओर जाती है । यदि वह आग के समीप चली जाए तो वहां से भाग खडी होती है, लेकिन मिठाई की ओर भाग-भागकर जाती है ।

यदि हम इस विषय में सोचें तो, क्या हम सभी सुखद क्षणों की समय सीमा बढाना नहीं चाहते ? हम आनंद प्राप्ति के लिए श्रम नहीं कर रहे हैं, परंतु हम दुखदायक परिस्थितियों को दूर रखने का प्रयास तो अवश्य ही कर रहे हैं । उदाहरणार्थ, दूरदर्शन संच के बिगड जाने पर हम उसे तुरंत ठीक करवा लेते हैं क्योंकि हम स्वयं को अपनी रूचि के कार्यक्रमों के आनंद से वंचित नहीं रखना चाहते ।