हमारे जीवन में आनेवाली समस्याओं के मूल कारण

किसी भी समस्या को पूर्णतया सुलझाने के लिए, हमें आरंभ में उसका मूल कारण समझना चाहिए । समस्या के मूल तक पहुंचकर जब समस्या का उचित और पूर्ण निदान किया जाता है, तभी वास्तविक उपायतक पहुंचा जा सकता है ।

आधुनिक विज्ञान के अनुसार किसी भी समस्या का कारण शारीरिक अथवा मानसिक होता है । इसलिए हम इन्हीं दो क्षेत्रों में कारण और उपाय खोजते रहते हैं ।

  • ऐसा माना जाता है कि खुजली शारीरिक कारणों से होती है और इसलिए उस पर उपाय भी शरीरिक स्तर की औषधियों द्वारा किया जाता है ।
  • यह भी माना जाता है कि मादक पदार्थों का दुरुपयोग एक मानसिक समस्या है और उस पर मुख्यतः मनोवैज्ञानिक उपचार किया जाता है ।

परंतु हमारे जीवन में आनेवाली समस्याओं का एक तीसरा कारण भी है, और वह है आध्यात्मिक कारण । वास्तवमें  समस्याओं का आध्यात्मिक कारण हमारे जीवन को अत्यधिक प्रभावित करता है । तथापि आध्यात्मिक कारण सरलता से समझ में नहीं आते; क्योंकि वे आधुनिक विज्ञान की समझ से परे है । यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने स्वास्थ्य की अपनी परिभाषा को विस्तृत करते हुए कहा है कि शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक आयामों में सकारात्मक स्थिति को स्वास्थ्य कहते हैं । अतएव घोषित रूप से यह सुनिश्चित किया गया है कि आध्यात्मिक दृष्टि से निरोगी होना भी स्वस्थ जीवन का अभिन्न घटक है । तथापि SSRF द्वारा किए जानेवाले आध्यात्मिक शोध से यह ज्ञात होता है कि आध्यात्मिक घटक किस सीमातक हमारे पूरे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं ।

आध्यात्मिक शोध द्वारा हमने जीवन में आनेवाली समस्याओं के तीन मूल कारणों के मध्य औसतन विभाजन सुनिश्चित किया है । निम्न पाई चार्ट में हमारे जीवन में आनेवाली समस्याओं के मूल कारणों का विभाजन दिया है ।

1-hin-root-cause

जैसा कि आपने उपरोक्त पाई चार्ट में देखा हमारी ८० प्रतिशत समस्याओं का मूल कारण आध्यात्मिक विश्व में होता है ।

इस प्रकार की समस्याओं को केवल आध्यात्मिक माध्यमों से सुलझाया जा सकता है अर्थात एक तो

  • साधना से, जो हमारी कुल आध्यात्मिक ऊर्जा बनाने में सहायक होती है जिससे ऐसी समस्याओं से बच सकते हैं, अथवा
  • विशिष्ट आध्यात्मिक उपचार से जो आध्यात्मिक विश्व के किसी घटक से उत्पन्न विशिष्ट लक्षण को दूर करता है ।

इस प्रकार जिन समस्याओं का मूल कारण आध्यात्मिक विश्व में है उन्हें एक तो दूर किया जा सकता है अथवा उन्हें सहन करने की क्षमता प्राप्त होती है ।

यहां यह उल्लेखनीय है कि किसी विशिष्ट शारीरिक लक्षण के मूल कारण का एक अंश शारीरिक, मानसिक अथवा आध्यात्मिक आयाम में हो सकता है और वे परस्पर अपवर्जक (mutually exclusive) नहीं होते । साधारण शब्दों में शारीरिक लक्षण के कारक घटक केवल शारीरिक विश्व के नहीं होते, अपितु वे शारीरिक एवं आध्यात्मिक, यहां तक कि शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक घटकों का मिश्रण हो सकता है ।

उदाहरण के लिए निम्नलिखित चित्र में दर्शाया है कि किस प्रकार एक स्त्री पेट में अत्यधिक वेदना अनुभव कर रही है और मूल कारण तीनों आयामों में है ।

2-hin-stomach