सत के लिए त्याग

साधना में वास्तविक प्रगति के लिए ‘त्याग’का गुण सहायक है । त्याग हमारे अंर्त में कुछ ग्रहण करने के लिए स्थान निर्मित करता है । जब हम अपने हथेलियों में रखी रेत को गिरा देते हैं, तभी ईश्वर उसमें हीरे भर देते हैं, जो उन्होंने हमारे लिए संजोकर रखें हैं । तन, मन अथवा धन से व्यक्ति त्याग कर सकता है ।

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ऊपर प्रस्तुत चित्र हमारे एक साधक को छठवीं प्रगत इंद्रिय द्वारा प्राप्त सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित है । यह दर्शाता है कि जब कोई व्यक्ति सत्त् के लिए त्याग करता है, तब उसका क्या परिणाम होता है । वास्तव में हमारा उत्थान और संरक्षण होता है ।

जब हमारे सामने दो विकल्प हों – मनपसंद फिल्म देखना अथवा सत्संग के आयोजन में सहायता करना, तब दूसरा विकल्प चुनन से मन का त्याग होता है । यहां हम मन को सुख देनेवाले विषय का भगवान के लिए त्याग करते हैं । निरंतर नामजप करना भी मन के त्याग का उदाहरण है ।

तन के त्याग का उदाहरण है – भगवान की सेवा करने के लिए एक घंटे कम सोना और उस एक घंटे में जालस्थल (वेबसाइट) के लिए लेख पूर्ण करना, सत्सेवा करनेवालों की सहायता करना, किसी धार्मिक कार्य में यथाक्षमता योगदान देना ।