मुझे कैसे पता चलेगा कि मुझे आध्यात्मिक उपचार की आवश्यकता है ?

SSRF का सुझाव है कि, भौतिक एवं मानसिक व्याधियों के उपचार में परंपरागत औषधोपचार के साथ-साथ आध्यात्मिक उपचार का प्रयोग करना चाहिए ।

वाचकों को हमारा परामर्श है कि आध्यात्मिक उपचारों का प्रयोग वे अपने विवेकानुसार करें ।

SSRF द्वारा गत २५ वर्षों से किए जा रहे शोध से यह प्रकाश में आया है कि मानव जीवन की ८० प्रतिशत समस्याओं का मूल कारण आध्यात्मिक आयाम में होता है । अत: उन समस्याओं के पूर्ण उन्मूलन के लिए सांसारिक प्रयत्नों को आध्यात्मिक उपचारों के साथ जोडना आवश्यक है । इससे पता चलता है कि मानव जीवन की समस्याएं दूर करने में आध्यात्मिक उपचारों का अत्यधिक महत्व है ।

आइए एक ऐसे ही उदाहरण से हम इसे समझें । स्वस्थ्य रहने के लिए हमें पौष्टिक आहार लेना आवश्यक है, परंतु जब हम अस्वस्थ होते हैं तब अपने सामान्य आहार के साथ न्यूनता-पूरक आहार (supplementary diet) लेना शीघ्र स्वस्थ होने के लिए आवश्यक होता है । उदाहरणार्थ सर्दी-जुकाम होने पर विटामिन सी का पूरक सेवन करते हैं । यह नित्य भोजन में नींबू आदि लेने से प्राप्त मात्रा के अतिरिक्त होता है ।

समस्या-मुक्त जीवन प्राप्त होने के लिए हमें अपने शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है । प्राय: अधिकांश लोग अपने शारीरिक एवं मानसिक पहलुओं का ही ध्यान रखते हैं । जहां तक आध्यात्मिक पहलू का संबंध है, उसके योग्य आकलन तथा मार्गदर्शन का अभाव है । फलस्वरूप अधिकांश लोग नियमित साधना करना और आध्यात्मिक उपचारों को अपनाना जैसे जीवन के आध्यात्मिक पहलुओं का महत्व नहीं समझते ।

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जीवन की समस्याओं का एक महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक कारण प्रारब्ध (भाग्य) है जो हमारे जीवन की औसतन ६५% घटनाओं को निश्‍चित करता है । इसका अर्थ हुआ कि जीवन की ६५ % घटनाएं पूर्वनिर्धारित हैं । प्रारब्ध से उत्पन्न अथवा पूर्वनिर्धारित घटनाएं केवल साधना से दूर की जा सकतीं हैं । इसलिए साधना आध्यात्मिक प्रगति के साथ-साथ समस्या निवारक एवं आध्यात्मिक उपचार हेतु भी करें जिससे प्रारब्ध जनित समस्याओं से छुटकारा मिल सके ।

अत: साधना हमारे जीवन में अत्यधिक महत्वपूर्ण है तथा संतुलित जीवन के लिए उतनी ही आवश्यक है, जितना स्वास्थ्य के लिए आहार । अनेक लोग साधना करना चाहते हैं किंतु उन्हें यह ज्ञात नहीं होता कि कौनसी साधना करनी चाहिए और साधना के छ: मूलभूत सिद्धांतों के संदर्भ में तो ज्ञान अल्प ही होता है ।

जब लोगों की आध्यात्मिक पूंजी (सामर्थ्य) अल्प होती है, तब उन पर आध्यात्मिक आयाम के अनिष्ट तत्वों द्वारा आक्रमण होते रहते हैं । जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति अपने जीवन में और अधिक समस्याओं से घिर जाता है । यही वह समय है जब लोगों को अपनी साधना के साथ अन्य आध्यात्मिक उपचारों को भी अपनाना चाहिए । यह उपरोक्त उदाहरण में बताए पूरक आहार के समान है ।

बुद्धि से यह बताना कठिन है कि, व्यक्ति को साधना के साथ-साथ आध्यात्मिक उपाय करना आवश्यक है अथवा नहीं । केवल संत अथवा जिन्हें अतिंद्रीय संवेदन क्षमता (ESP) प्राप्त है अथवा जिनकी छठवीं ज्ञानेंद्रिय जागृत है, वही आधिकारिक रूप से बता सकते हैं कि आध्यात्मिक उपचार करने की आवश्यकता है अथवा नहीं । क्योंकि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक है अथवा नहीं केवल वे ही समझ सकते हैं ।

तथापि निम्नलिखित सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए अपनी बुद्धि से भी निर्णय लिए जा सकते हैं :

  • यदि समस्या का हल सर्वश्रेष्ठ पारंपरिक समाधान से भी नहीं होता ।
  • बिना किसी स्पष्ट कारण के भी कोई समस्या बार-बार आती है ।
  • एक ही परिवार के अनेक सदस्यों को एक साथ उसी समस्या का सामना करना पडता है ।
  • समस्या की तीव्रता पूर्णिमा अथवा अमावस्या के दिनों में बढ जाती है ।
  • आध्यात्मिक दृष्टि से सकारात्मक वातावरण में यथा संतों के सान्निध्य में आने से प्रभावित व्यक्ति की समस्या की तीव्रता कुछ मात्रा में ही सही किंतु घट जाती है ।

अत: सारांश में यह कहा जा सकता है कि,

  • साधना को आध्यात्मिक उपचार के रूप में प्रतिदिन करना चाहिए ।
  • यदि कोई अज्ञात समस्या हो अथवा वैसी समस्याएं जिसे दूर करने हेतु सर्वश्रेष्ठ प्रयत्न करने से भी उससे मुक्ति न मिलती हो तो उसे दूर करने के लिए साधना के साथ-साथ आध्यात्मिक उपचार भी करें ।