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१. आध्यात्मिक उपचारक का परिचय

यह लेख ‘‘वस्तुओं द्वारा किए जानेवाले आध्यात्मिक उपचार पद्धतियों की कार्यविधि’’ का क्रमशः भाग है ।

इस लेख में दिए गए ज्ञान का स्रोत आध्यात्मिक शोध है ।

जो व्यक्ति आध्यात्मिक उपचार करता है, उसका आध्यात्मिक स्तर ५० प्रतिशत से अधिक होना अनिवार्य है । यदि उसका आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत से अधिक हो तो श्रेयस्कर होगा । कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं जब इससे निम्न आध्यात्मिक स्तर होने पर भी कोर्इ व्यक्ति उपचार कर सकता है और इस लेख में हम ऐसा संभव होने के लिए आवश्यक मापदंडाें के संदर्भ में बताएंगे । हम उस मूलभूत कार्यविधि के विषय में भी बताएंगे जिसके कारण कोर्इ व्यक्ति किसी अन्य को उपचार हेतु शक्ति दे सकता है । इस लेख में आध्यात्मिक उपचारक के दृष्टिकोण से तथा जिसे उपचार की आवश्यकता है, उसके संदर्भ में महत्त्वपूर्ण जानकारी दी गर्इ है ।

२. दूसरों पर उपचार करनेवाले व्यक्ति के आध्यात्मिक स्तर का महत्त्व

आध्यात्मिक स्तर : यदि हम र्इश्वर से एकरूप हुए व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर १०० प्रतिशत मानें, तो वर्तमान समय में सामान्य व्यक्ति का औसत आध्यात्मिक स्तर २० प्रतिशत है । विश्व की ९० प्रतिशत जनसंख्या का आध्यात्मिक स्तर ३५ प्रतिशत से अल्प है । संतत्त्व की प्राप्ति हेतु न्यूनतम ७० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर होना अनिवार्य है ।

आध्यात्मिक उपचार करनेवाले व्यक्तियों का आध्यात्मिक स्तर, एक महत्त्वपूर्ण अंग है, जिस पर निम्न बातें निर्भर करती हैं :

  • दूसरों पर उपचार करना उनके लिए कैसे संभव होता है,
  • कौनसी उपचार-पद्धतियों का वे उपयोग कर सकते हैं और
  • कौनसी वैश्विक शक्तियों का उपयोग करना उनके लिए संभव है

३. आध्यात्मिक उपचारक द्वारा पीडित का उपचार करने का एक तत्सम उदाहरण

यह सूत्र हम बल्ब प्रकाशित करने के एक सरल उदहारण द्वारा स्पष्ट करेंगे । बल्ब प्रकाशित करने के लिए पहला चरण होता है, उचित बटन दबाना । तदुपरांत बिजली का प्रवाह तार से संक्रमित होता है और अंतिम परिणाम के रूप में दीपक प्रकाशित होता है । कौनसा दीपक प्रकाशित करना है, इस पर कौनसा बटन दबाना है, यह निर्भर होता है । इसी प्रकार आध्यात्मिक उपचारों में विविध उपचार-पद्धतियां विविध प्रकार के परिणाम दर्शाती हैं । सभी पद्धतियों में उपचारों के अंतिम परिणाम (अर्थात दीपक का प्रकाशित करना) ब्रह्मांड के ५ मूलभूत तत्त्वों (पंचतत्त्व) के माध्यम से ही दिखाई देते हैं ।

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यहां पर ‘बटन’ आध्यात्मिक उपचारक द्वारा प्रयुक्त विभिन्न पद्धतियां हैं, जैसे – नामजप, प्रार्थना, रेकी, प्राणिक हीलिंग, संकल्प तथा अस्तित्व । अपनी आध्यात्मिक क्षमतानुसार उपचारक इन विभिन्न ‘बटनों’ का उपयोग कर पीडित अथवा उपचार की आवश्यकतावाले व्यक्ति में शक्ति का संचार कर सकता है ।

४. आध्यात्मिक उपचारक के आध्यात्मिक स्तर का महत्त्व (तार)

हमने आध्यात्मिक स्तर के इस पहलू को आध्यात्मिक उपचारक की क्षमता जिससे वह ब्रह्मांड के विभिन्न स्तरों की शक्तियों का उपयोग करने अथवा उनका माध्यम बन सकता है, से जोडा है ।

हम मनुष्य स्थूलदेह (पंचज्ञानेंद्रियां), प्राणदेह, मन, बुद्धि, सूक्ष्म अहं तथा आत्मा से बने हैं । मन में विचार और भावनाएं होती हैं, जबकि बुद्धि के पास तर्क करने की क्षमता तथा घटनाओं में विद्यमान कार्य कारणभाव समझने की क्षमता होती है । यह प्रत्येक देह एक दूसरे से सूक्ष्मतर (अनाकलनीय) होती है । इसलिए मन की शक्ति प्राणदेह की शक्ति की तुलना में अधिक सूक्ष्म और बलवान होती है । देखें लेख : ‘मनुष्य किन घटकों से बना है ?

साधना द्वारा जैसे-जैसे हमारा आध्यात्मिक विकास होने लगता है, हमारी पंचज्ञानेंद्रियां, मन और बुद्धि का लय आरंभ होने लगता है । अर्थात हमारे प्रयत्न और विचार आत्मज्ञान अथवा ईश्वर से एकरूप होने की दिशा में होने लगते हैं । इस प्रक्रिया में हम अपने व्यक्तिगत मन और बुद्धि का लय करना आरंभ करते हैं, जिससे विश्वमन और विश्वबुद्धि के संपर्क में आ पाते हैं । निम्न आकृति में हमने आध्यात्मिक अनुप्रस्थ दृश्य (cross sectional view) दिखाया है, जो दर्शाता है कि हममें विद्यमान आत्मा अथवा ईश्वरीय तत्त्व उचित साधना करने पर किस प्रकार से प्रकाशमान होने लगते हैं और हममें अन्यों के प्रति निरपेक्ष प्रेम (प्रीति), नम्रता, निरहंकारिता जैसे ईश्वरीय गुण आते हैं ।

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साधना के कारण जब हमारी विविध प्रकार की देहों का लय होना आरंभ होता है, तब आध्यात्मिक उपचारक की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण घटना घटने लगती है । आध्यात्मिक उपचारक के लिए ब्रह्मांड के उच्चतर शक्तियों का उपयोग करना संभव हो जाता है ।

उपचार करने हेतु आध्यात्मिक उपचारक का न्यूनतम आध्यात्मिक स्तर ५०% होना आवश्यक है । क्योंकि इसी आध्यात्मिक स्तर पर उपचार हेतु वैश्विक शक्तियों का उपयोग कर पाना आरंभ होता है । तथापि आध्यात्मिक उपचारक का आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत होना श्रेयस्कर है । क्योंकि इस स्तर पर साधक का मनोलय होना आरंभ होता है । वह आध्यात्मिक समस्याओं के मूल कारणों को सू्क्ष्म स्तर पर समझ पाता है एवं उसे उच्चतम स्तर की आध्यात्मिक सुरक्षा भी प्राप्त होती है ।

नीचे दी गर्इ सारणी में र्इश्वर के सगुण तथा निर्गुण शक्ति का उपयोग कर पाने की क्षमता किस प्रकार आध्यात्मिक स्तर पर आधारित है, इसके संबंध में जानकारी दी गर्इ है । र्इश्वर की निर्गुण शक्ति अधिक सामर्थ्यवान होती है ।

आध्यात्मिक स्तर प्रकट शक्ति (सगुण) अप्रकट शक्ति (निर्गुण)
६० % १००
७०% (संतत्त्व आरंभ) ७० ३०
८०% ५० ५०
९०% २० ८०
१००% १००

आरंभ में किसी भी प्रकार की उपचारी क्षमता ईश्वर की प्रकट (सगुण) स्वरूप की शक्ति के माध्यम से होती है । जैसे-जैसे मन, बुद्धि और अहंकार का लय होना आरंभ होने लगता है, व्यक्ति ईश्वर की अप्रकट (निर्गुण) शक्ति का अधिकाधिक उपयोग कर पाता है । ९०% आध्यात्मिक स्तर पर इस निर्गुण शक्ति से असीम उपचारी क्षमता निर्माण होती है ।

संकल्प शक्ति और अस्तित्व से कार्य करनेवाले संतों द्वारा किए जानेवाले उपचार केवल ईश्वरेच्छा से होते हैं । संतों के विविध देहों का अधिक मात्रा में लय हो जाने के कारण वे ईश्वरेच्छा समझकर उसके अनुसार कार्य कर पाते हैं ।

संदर्भ हेतु देखें लेख : ब्रह्मांड की शक्ति के रूप में संकल्प कैसे कार्य करता है और ब्रह्मांड की शक्तियों का पदक्रम

५. निम्न आध्यात्मिक स्तर पर रहकर उपचार करने के संभाव्य संकट

किसी की इच्छा अत्यधिक हो तो वह ४० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर पर भी उपचार कर सकता है । यद्यपि इस स्तर पर वह किसी व्यक्ति पर निम्न स्तर की अनिष्ट शक्ति के प्रभाव का निराकरण कर सकता है । इस सीमित क्षमता के साथ, जब अल्प आध्यात्मिक स्तर का उपचारक किसी पर उपचार करने का प्रयास करता है तब अनेक संकट उत्पन्न हो सकते हैं ।

  • उपचारक के पीडित व्यक्ति के आध्यात्मिक कष्ट से प्रभावित होने की संभावना अत्यधिक होती है ।
  • उपचार करवानेवाला व्यक्ति यदि उच्च स्तर की अनिष्ट शक्ति से आविष्ट हो, तो वह शक्ति गंभीर रूप से उपचारक को प्रत्युत्तर दे सकती है । जिसके फलस्वरूप उपचारक प्रभावित हो सकता है ।
  • आध्यात्मिक स्तर अल्प होने से उपचारक की शक्ति भी सीमित होती है । इसलिए सूक्ष्मस्तरीय आक्रमण से उबरने तथा ठीक होने में अधिक समय लगता है ।
  • इससे अपेक्षित परिणाम न मिलने से लोगों का आध्यात्मिक उपचार से विश्वास उठ सकता है । अपेक्षित उपचार न होने से पीडित व्यक्ति निराशा से ग्रस्त हो सकता है ।
  • अल्प आध्यात्मिक स्तर पर उपचारक के अहं बढने की संभावना अधिक होती है जो साधना के दृष्टिकोण से अत्यधिक हानिकारक है । अहं की अत्यधिक मात्रा का उपयोग अनिष्ट शक्तियां उसे आविष्ट अथवा प्रभावित करने के लिए कर सकती है ।
  • यदि कोर्इ मात्र सांसारिक प्रसिद्धि के लिए उपचार करता है, तब भी कालांतर में वह अनिष्ट शक्तियों का लक्ष्य बन सकता है ।

आध्यात्मिक रूप से सकारात्मक उपचारक किसी सांसारिक लाभ पर ध्यान ने देते हुए निःस्वार्थ भाव से उपचार करते हैं । दूसरी ओर ऐसे उपचारक  जिनमें अहं अधिक है तथा जो प्रसिद्धि तथा धनप्राप्ति के उद्देश्य से उपचार करते हैं, वे अनिष्ट शक्तियों द्वारा आविष्ट होते ही हैं ।

सामान्य नियम यह है कि ३० प्रतिशत उपचारक आध्यात्मिक रूप से सकारात्मक हैं तथा ७० प्रतिशत अनिष्ट शक्तियों के प्रभाव में उपचार करते हैं ।

स्रोत : SSRF द्वारा किया गया आध्यात्मिक शोध

६. व्यक्ति के प्रारब्ध देखते हुए ये तीन पद्धतियां कितने प्रतिशततक उपचार कर पाती हैं ?

जिन तीन पद्धतियों की हम बात कर रहे हैं, वे निम्नलिखित हैं :

१.  निर्जीव वस्तुओं के माध्यम से उपचार करना

२.  व्यक्ति (उपचारक) के माध्यम से उपचार करना

३.  संतों द्वारा उपचार करवाना

जीवन में सुख-दुःख का अनुभव करने की मात्रा व्यक्ति के प्रारब्ध पर निर्भर करती है । जैसे कि हमने पहले बताया है, प्रारब्ध पर विजय प्राप्त करना अथवा उससे प्राप्त दुःखों से सुरक्षित रहने का एकमात्र उपाय है, साधना के छः सिद्धांतों के अनुसार साधना करना ।

लोगों के जीवन में आनेवाली समस्याओं की तीव्रता का वर्गीकरण और उपर्युक्त तीन उपचार-पद्धतियां समस्या का उपशमन करने में किस प्रकार सहायक होती हैं, यह निम्न सारणी दर्शाती है ।

जीवन में आनेवाली समस्याएं और तदनुसार उपचारपद्धति

सौम्य मध्यम तीव्र
जीवन की समस्याएं
सौम्य, मध्यम एवं तीव्रता की मात्रा कैसी है ? १० % ४० % ७० %
इ.स.२००६ में समस्याओं की तीव्रता के अनुसार प्रभावित विश्व की जनसंख्या की प्रतिशत में मात्रा ३० % ६० % १० %
आध्यात्मिक उपचार कैसे सहायता कर सकते हैं ?
निर्जीव वस्तुओं द्वारा उपचार ३० % १० % ० %
लोगों द्वारा उपचार ५० % ३० % ३० %
संतों द्वारा उपचार ७० % ५० % ५० %

टिप्पणी –

१. १००% का अर्थ है, ऐसी समस्याएं, जिनके कारण अकाल मृत्यु होती है

२. इस सारणी को कैसे पढें का  उदाहरण, इसका अर्थ है कि निर्जीव वस्तु द्वारा उपचार करने पर किसी मध्यम समस्या का केवल १०% ही उपशमन होगा ।

७. इन आध्यात्मिक शक्तियों का उपयोग कर पाने में क्या सहायक होता है ?

  • किसी व्यक्ति की उपचार करने की क्षमता है अथवा नहीं यह निश्चित करने में प्रमुख घटक है – उसका आध्यात्मिक स्तर । उच्च आध्यात्मिक स्तरवाले व्यक्ति में उपचार करने की आध्यात्मिक क्षमता अधिक होती है ।
  • नियमित साधना से व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर बढता है । किसी व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर उसके इस जन्म की साधना के फलस्वरूप अथवा पूर्वजन्म की साधना के फलस्वरूप भी हो सकता है ।
  • उपचारक की उपचार करने की इच्छाशक्ति द्वितीय घटक है, जो कि उसकी क्षमता को प्रभावी बनाती है ।

इस श्रृंखला का अगला लेख अवश्य पढें : ‘आध्यात्मिक उपचारक को उपचार किस विचार से करना चाहिए ?