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. आध्यात्मिक उपचार-पद्धतियों के सामान्य प्रकार

आध्यात्मिक उपचार-पद्धतियां सामान्यतः दो प्रकार की होती हैं। जिन समस्याओं का मूल कारण आध्यात्मिक स्तर पर है, ऐसी सभी समस्याओं के लिए ये दोनों विकल्प लागू होते हैं ।

. साधना : साधना के मूलभूत छः सिद्धांतों के अनुसार साधना करने पर व्यक्ति में आध्यात्मिक विश्व के हानिकारक घटकों का सामना करने की क्षमता विकसित होती है ।

. आध्यात्मिक उपचार : इस पद्धति में पीडित व्यक्ति स्वयं अथवा उसके लिए कोर्इ अन्य व्यक्ति समस्या न्यून (कम) करने के लिए आध्यात्मिक स्तर पर विशिष्ट प्रयास करता है । आध्यात्मिक उपचारों का लाभ यह है कि प्रभावित व्यक्ति को कष्ट से तुरंत मुक्ति मिल जाती है । इसकी न्यूनता यह है कि कष्ट से मुक्ति तात्कालिक हो सकती है अथवा तब तक ही है जब तक उपचारों का प्रभाव है । आध्यात्मिक उपचारों में रेकी, प्राणिक हीलिंग, विभूति और तीर्थ लगाना, मंत्र द्वारा उपाय करना आदि सम्मिलित हैं ।

जीवन की समस्याओं पर विजय प्राप्त करने में, यदि साधना की परिणामकारकता १००% है, तो किसी उपचारक द्वारा किए जानेवाले आध्यात्मिक उपचारों की परिणामकारकता उसकी तुलना में केवल ४०% ही है । इसका कारण यह है कि आध्यात्मिक उपचारों में किसी व्यक्ति पर उपचार हो पाने की संभावना परिवर्तनीय होती है क्योंकि उसमें उपचारक तथा व्यक्ति दोनों पर उपचार समाहित रहते हैं । उपचारकों के माध्यम से आध्यात्मिक उपचारों (दूसरी सामान्य पद्धति) का प्रयोग करने पर अधिकतर लक्षणों में सुधार होता है तथा क्वचित ही मूलभूत आध्यात्मिक कारण दूर होता है, जबकि साधना (पहली सामान्य पद्धति) समस्या का मूलभूत आध्यात्मिक कारण दूर करती है अथवा उससे उत्पन्न वेदना में राहत पहुंचाती है।

जीवन में आनेवाली समस्याओं के मूलभूत विभिन्न आध्यात्मिक कारण जानने हेतु इस लिंक पर क्लिक करें ।

. उपचार की कौनसी पद्धति उचित है ?

निम्न आकृति से आप समझ सकेंगे कि आध्यात्मिक दृष्टि से कौनसी पद्धति उचित है ।

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प्रत्येक के गुण अथवा त्रुटियां कौनसी हैं

साधना

स्वयं

आध्यात्मिक उपचार करनेवाले

मुक्ति के लिए किसी अन्य व्यक्ति पर निर्भरता

नहीं

नहीं

अधिक

अनिष्ट शक्तियों समान हानिप्रद आध्यात्मिक पप्रभावों के अवरोध में वृद्धि

हां

हां

नहीं

सामना करने की क्षमता का विकास

हां

हां

नहीं

क्या प्रारब्ध में लिखे कष्टों से सुरक्षा अथवा उन्हें दूर करना संभव है ?

हां

नहीं

नहीं

अनिष्ट 4शक्तियों द्वारा उपचार किए जाने की आशंका

नहीं

नहीं

हां

ठगे जाने की संभावना

नहीं

नहीं

हां

परिणामकारकता

१००%

१००%

४०%

आध्यात्मिक विकास ?

हां

नहीं

नहीं

SSRF का सुझाव

केवल छोटे बच्चे, अचेत व्यक्ति जैसे प्रसंगाें में
जहां हम अपनी ही सहायता करने की स्थिति में नहीं होते ।

टिप्पणियां (उपर्युक्त आकृति की लाल रंग की संख्याओं के लिए)

१. साधना से हमारा अर्थ है कि वह साधना, जो सामान्यतः सर्वत्र की जाती है और साधना के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार है ।

२. हमारा सुझाव है कि किसी के उपचार हेतु कोर्इ किसी भी पद्धति का उपयोग करे, उसका आध्यात्मिक रूप से सकारात्मक अर्थात आध्यात्मिक कष्टों से रहित होना अत्यधिक आवश्यक है । क्योंकि आध्यात्मिक उपचारक का पीडित व्यक्ति पर स्थूल अथवा सूक्ष्म रूप से प्रत्यक्ष प्रभाव पडता है । इसमें वे उपचार पद्धतियां भी सम्मिलित हैं, जिसमें उपचारक को पीडित व्यक्ति को स्पर्श करना अथवा नहीं करना होता है, जैसे – बिंदुदाब तथा रेकी ।

३. जैसे ही किसी व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होने लगता है और वह आध्यात्मिक प्रवचन आयोजित कर अन्य लोगों की सहायता करने लगता है तथा शाश्वत सत्य की सेवा (सत्सेवा) कर ईश्वर सेवा करने लगता है, साधना में बाधा डालने का प्रयत्न करनेवाली अनिष्ट शक्तियां उसे लक्ष्य बनाती हैं । ऐसी स्थिति में अनिष्ट शक्तियों द्वारा किए तीव्र आक्रमण से मुक्ति पाने के लिए आध्यात्मिक उपचारकों द्वारा दूसरों से अथवा स्वयं आध्यात्मिक उपचार कर साधना में वृद्धि करना भी आवश्यक होता है ।

४. कुछ प्रसंगों में अनिष्ट शक्तियां उपचारकों को ही आवेशित करती हैं और उनके माध्यम से उपचार करने लगती हैं । हमने इस सूत्र पर विस्तृत विवरण इस लेख के अगले भाग में किया है ।

५. साधना करने के साथ समय-समय पर स्वयं पर आध्यात्मिक उपाय कर साधना में वृद्धि करना ही अच्छा है ।

स्मरण रखें साधना करने का अतिरिक्त लाभ यह है कि व्यक्ति अपने जीवन में आनेवाली समस्याओं पर ध्यान दिए बिना ही उससे बाहर निकल पाता है । जबकि दूसरी ओर औसत उपचारक का ध्यान मात्र सांसारिक समस्याओं को दूर करने पर होता है । उसका अपने अथवा अपने रोगी के आध्यात्मिक विकास पर ध्यान ना के बराबर होता है ।