स्थूल से सूक्ष्म की ओर प्रगति

इस सिद्धांत के अनुसार केवल शारीरिक क्रिया करने की अपेक्षा सूक्ष्म स्तर की क्रिया द्वारा हमें अपनी साधना में सुधार करना चाहिए ।

स्थूल स्तर की साधना की अपेक्षा सूक्ष्म स्तर की साधना अधिक प्रभावकारी रहती है । उदाहरणार्थ, जब दो व्यक्ति जो वास्तव में एक-दूसरे को पसंद नहीं करते; परंतु मित्रता दर्शाने हेतु हाथ मिलाते हैं । यहां मित्रता दर्शाने वाली शारीरिक क्रिया मात्र एक दिखावा है । दूसरी ओर, शारीरिक संपर्क के बिना भी दो व्यक्तियों में परस्पर वास्तविक सद्भावना हो सकती है ।

उसी प्रकार, साधना में भक्तिभाव रहित पूजन की (शारीरिक स्तर की) बाह्य विधि के स्थान पर भगवान के प्रति खरी आंतरिक भक्ति प्रस्थापित होनी चाहिए अथवा आध्यात्मिक प्रगति की तीव्र लगन होनी चाहिए ।