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१. अच्छाई एवं बुराई में युद्ध कहां लडा जाता है ?

अच्छाई एवं बुराई का युद्ध मुख्यरूप से अच्छी एवं बुरी सूक्ष्म-शक्तियों में सूक्ष्म-विश्व में लडा जाता है । इस युद्ध की तीव्रता भूलोक के किसी भी युद्ध की तुलना में अधिक होती है । प्रगत छठवीं इंद्रियसे युक्त व्यक्ति ही इसे देख पाते हैं ।

जब अच्छी सूक्ष्म-शक्तियां सूक्ष्म-युद्ध में विजय प्राप्त करने लगती हैं, तब स्थूल विश्व में अर्थात भूलोक पर युद्ध आरंभ होता है । स्थूल विश्व में होनेवाला युद्ध पूरे विश्व को प्रभावित करता है; परंतु विश्व के सभी दुर्जनों का विनाश करने के लिए यह आवश्यक है । सबसे पहले पृथ्वी के लोगों के मन में युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार होती है और हमें लगता है कि हम मूर्ख लोगों के विश्व में रह रहे हैं । वर्तमान युग में हम जिस विश्व में रह रहे है, यह विश्व वैसा ही है । अनिष्ट शक्तियों द्वारा (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) मानवजाति के प्रभावित एवं आविष्ट होने से ऐसा होता है । इसीके साथ प्राकृतिक आपदाओं में भी वृद्धि होती है (उदा.बाढ, सुनामी, भूकंप, महामारियां और सूखा इत्यादि)। तदुपरांत सूक्ष्म का यह युद्ध और भी उग्र रूप धारण करने लगता है और पृथ्वी पर हडकंप मचा देता है । अंत में भीषण प्राकृतिक आपदाओं के साथ इसका अंत तीसरे महायुद्ध में होगा । प्राकृतिक आपदाएं पृथ्वी को तमप्रधान घटकों से मुक्त कराने की प्रकृति की एक पद्धति है । इससे अच्छे विश्व का आरंभ सहजता से हो जाता है ।

२. अच्छाई एवं बुराई में होनेवाले युद्ध की तीव्रता कब बढती है ?

जब सत्त्वगुण का पूर्णतया ह्रास हो जाता है (आत्यंतिक पतन) और तमोगुण चरमसीमा पर पहुंच जाती है, तब अच्छाई एवं बुराई के युद्ध की तीव्रता बढती है । सत्त्वगुण का ह्रास होना, पृथ्वी पर रहनेवाले दुर्जनों की कार्यशीलता के समानुपाती है (अर्थात पृथ्वी पर दुर्जन जितने अधिक होंगे, सत्त्वगुण का ह्रास उतना अधिक होगा) । सत्त्वगुण के ह्रास होने की मात्रा काल एवं युगपरिवर्तन के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है । उदा.सत्ययुग (ब्रह्मांड का पहला युग)के सबसे बुरे काल की सात्त्विकता, कलियुग (ब्रह्मांड का वर्तमान युग) की सर्वोच्च सात्त्विकता की तुलना में भी अधिक सात्त्विक होगी ।

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कृपया ध्यान दें : पहले तीन युगों के लिए दिए आंकडे मुख्य युग के हैं, उनके अंतर्गत आनेवाले युग के छोटे चक्रों के लिए नहीं हैं ।

कलियुग में भविष्य के छोटे चक्रों में निम्न स्तर तब आएगा, जब दुर्जनों की संख्या ३५%, ४०%, इस क्रमसे बढती जाएगी । जब यह संख्या १००%हो जाएगी, विश्व का अस्तित्व संकट में आ जाएगा; क्योंकि र्इश्वर को पूरी जनसंख्या का विनाश करना पडेगा ।

३. अच्छाई एवं बुराई के युद्ध में कौन सम्मिलित होता है ?

  • अतिजाग्रत छठवीं ज्ञानेंद्रिय के अभाववश तथा इस विषय में किसी का मार्गदर्शन न होने के कारण अधिकांश साधक इस सूक्ष्म-युद्ध के संदर्भ में अनभिज्ञ होते हैं । इसलिए न तो वे अनिष्ट शक्तियों का सामना करने के लिए तैयार होते हैं और न ही युद्ध में सम्मिलित होने के लिए । भूलोक के अधिकांश संत भी पूर्णतः अपनी साधना में ही लीन रहने के कारण इस युद्ध के संदर्भ में अनभिज्ञ होते हैं । उनके आध्यात्मिक स्तर के अनुसार र्इश्वर उनके माध्यम से कार्य करते हैं । इस कार्य के अतिरिक्त अच्छाई एवं बुराई के युद्ध में अच्छी शक्तियों के पक्ष में उनका योगदान अत्यल्प होता है ।
  • अच्छी शक्तियों के पक्ष में रहनेवाले लोग एवं सूक्ष्म-देह तथा ३०-५०%आध्यात्मिक स्तर के सामदकों का इस विषय संबंधी ज्ञान केवल मानसिक स्तरतक सीमित होता है । उनके पास आध्यात्मिक सामर्थ्य न होने से, आध्यात्मिक स्तर पर उनका योगदान अत्यल्प होता है । ऐसे लोग, जो शारीरिक स्तर पर लडते हैं; सामान्यतया उनका विनाश हो जाता है । परंतु र्इश्वर के पक्ष में लडने के कारण उन्हें पुण्य मिलता है ।
  • ५०%और उससे अधिक आध्यात्मिक स्तर के तथा भाव और क्षात्रवृत्ति से युक्त साधक ही इस युद्ध में आध्यात्मिक स्तर पर सम्मिलित हो सकते हैं । इस युद्ध में आध्यात्मिक स्तर पर सम्मिलित होने के लिए अल्प अहं,  अतिजाग्रत छठवीं ज्ञानेंद्रिय तथा पंथ एवं संप्रदाय के परे जाकर अध्यात्म को भलीभांति समझने की क्षमता होना आवश्यक है । ऐसे साधक का कर्म ईश्‍वरेच्छानुसार होता है । इससे उन्हें ईश्‍वरीय चैतन्य मिलता है और वे अपने कर्म से लेन-देन निर्माण नहीं करते । र्इश्वर के प्रति भक्ति होने से र्इश्वर उनकी सहायता के लिए दौडे चले आते हैं । निम्न उदाहरण से यह समझ सकते हैं । जब कोई भक्त भूकंप में किसी बडे भवन में फंस जाता है और र्इश्वर से सहायता की याचना करता है, तो र्इश्वर उसकी सहायता के लिए लोगों को भेजते हैं । ऐसा करने से भवन के अन्य लोग भी सुरक्षित हो जाते हैं ।
  • अपने साधकों को समाज के लिए साधना (समष्टि साधना) बताने हेतु कार्यरत रहनेवाले तथा इस प्रतिकूल काल में उनका मार्गदर्शन करनेवाले संत अत्यल्प हैं । पृथ्वी पर धर्म का पुनरुत्थान करने के लिए उनकी लगन के कारण वे ऐसा कर रहे हैं । परिणामस्वरूप ये संत र्इश्वर से अधिक एकरूप हो जाते हैं; क्योंकि र्इश्वर और धर्म एक ही हैं । साधना के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार साधना समझने और करने में तथा धर्माचरण समझने और करने में समाज की सहायता करना, समष्टि साधना है । इसलिए र्इश्वर उनके माध्यम से अधिकाधिक कार्य करते हैं । ये संत सूक्ष्म-युद्ध में प्रत्यक्ष कार्यरत रहते हैं और साधकों को बुराई से लडने के लिए आध्यात्मिक स्तर पर मार्गदर्शन करते हैं ।
  • जिन व्यक्तियों तथा सूक्ष्म-देहों का आध्यात्मिक स्तर ३०%से अल्प है, अहंभाव अत्यधिक है और जिनका आचरण असामाजिक है, उन्हें अनिष्ट शक्तियों के पक्ष का समझा जाता है । इस प्रकार के लोग आपराधिक तथा आतंकी, भ्रष्टाचारी, यौन अत्याचार, देवताओं तथा धार्मिक एवं पूजनीय आस्थास्थानों का अनादर करने जैसे कृत्यों में संलग्न रहते हैं । धार्मिक मूलतत्त्ववादी समझते हैं कि वे र्इश्वर के पक्ष में लड रहे हैं और धार्मिक आतंकवाद फैलाते हैं; परंतु वे भी अनिष्ट शक्तियों में आते हैं । सूक्ष्म-युद्ध के एक भाग के रूप में उच्च स्तर के मांत्रिकों जैसी अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, पिशाच इ.)आध्यात्मिक दृष्टि से दुर्बल पूर्वजों की सूक्ष्म-देहों को उनके अच्छे वंशजों के साथ विद्यमान लेन-देन के माध्यम से कष्ट देने के लिए बाध्य कर देते हैं ।

देखें संदर्भ लेख – मेरे बिछडे हुए प्रियजन मुझे कष्ट क्यों देना चाहते हैं ?

४. वर्तमान सूक्ष्म युद्ध

वर्तमान में हम मुख्य कलियुग के कलियुगांतर्गत छठवें छोटे कलियुग में रह रहे हैं । इसलिए हम मुख्य कलियुग के छोटे चक्र के सर्वाधिक बुरे भाग में हैं, जहां माया से आसक्ति, आध्यात्मिकता का अभाव, स्वार्थांधता आदि चरम सीमा पर पहुंच चुके हैं । यह लोगों में तमोगुण की वृद्धि का सूचक है ।

वर्ष २००६ में अच्छी एवं बुरी शक्तियों का संतुलन ७०:३० के अनुपात में था । समाज के दुर्जन ३०%तक बढ चुके हैं । वर्तमान युग के इस भाग में सत्त्वगुण निम्नतम स्तर पर पहुंच चुका है । यह शेयर मार्केट समान है, जब सेंसेक्स एक विशिष्ट स्तर से और नीचे जाता है तो हम कहते हैं कि शेयर बाजार अब गिर चुका है ।

कोई पूछ सकता है कि वर्तमान में यदि संतुलन ७०:३० के अनुपात में, अर्थात अच्छाई के पक्ष में है; तो समस्या कैसे हो सकती है ? विश्व के अधिकांश लोग दुर्जन हैं, यह उपर्युक्त अनुच्छेद के इस अंतिम सूत्र के विरुद्ध है । इसका उत्तर है कि अधिकांश अच्छी शक्तियां ब्रह्मांड के उच्च लोकों में हैं । इन उच्च लोकों में वे र्इश्वर के साथ इतनी एकरूप हो जाती हैं कि घटनेवाली घटनाओं की ओर साक्षीभाव (तटस्थता )से देखने लगती हैं और सबकुछ र्इश्वर की इच्छा से हो रहा है, ऐसा उनका भाव रहता है । अनिष्ट शक्तियां अच्छी शक्तियों की इस स्थिति का लाभ उठाकर अपनेआप को आक्रमण के लिए तैयार कर पृथ्वी पर अपना वर्चस्व बनाने का प्रयत्न करती हैं ।

वर्तमान समय में मनुष्यजाति मुख्य कलियुग के अंतर्गत छठवें छोटे कलियुग से सत्ययुग में परिवर्तन होने की ऐतिहासिक घटना का साक्षी बनने की कगार पर खडी है । इस युगपरिवर्तन के कारण पृथ्वी पर विद्यमान तमप्रधान घटक एवं लोग नष्ट होंगे तथा उसकी शुद्धि होगी ।

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अधिकांश मानवजाति इस बात से अनभिज्ञ है कि वर्ष १९९९ से २०१२ तक अच्छी और बुरी शक्तियों में अधिकांश सूक्ष्म-युद्ध सूक्ष्म-लोकों में लडा गया । पिछले दशक में इस सूक्ष्म-युद्ध के परिणाम कुछ मात्रा में पृथ्वी पर भी दिखाई दिए । हमने प्राकृतिक आपदाएं, युद्ध, सामाजिक अस्थिरता और असामाजिक कृत्यों जैसी घटनाओं में वृद्धि देखी है । बुरी शक्तियां अर्थात अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) के कारण बढा सूक्ष्म तमोगुण और समाज में साधना एवं धर्माचरण का अभाव इत्यादि इसके मूल कारण हैं ।

५. अच्छी एवं बुरी शक्तियों में चल रहे वर्तमान सूक्ष्म-युद्ध का विस्तृत विवरण

वर्ष १९९९ से अच्छी एवं बुरी शक्तियों में सूक्ष्म-लोकों में चल रहे युद्ध की तीव्रता बढती जा रही है । सूक्ष्म-विश्व के सूक्ष्म-मांत्रिकोंसमान अति शक्तिशाली अनिष्ट शक्तियों के साथ देवता एवं संत यह युद्ध लड रहे हैं । अच्छी शक्तियोंद्वारा लडा जा रहा युद्ध पूर्णतः सूक्ष्म और शक्ति के अस्तित्व के स्तर पर होता है । शक्ति के अस्तित्व के स्तर को सूर्य के उदाहरण से समझ सकते हैं । प्रतिदिन जब सूर्योदय होता है,  फूल खिलते हैं । सूर्य फूलों को खिलने के लिए नहीं कहता और न ही उन्हें स्वयं खिलाता है । सूर्य के अस्तित्व से यह अपनेआप हो जाता है । इसी प्रकार संत एवं देवताओं की सर्वव्यापकता,  सर्वज्ञता एवं सर्वशक्तिमानता के कारण,  निरंतर प्रक्षेपित होनेवाले चैतन्य द्वारा वे युद्ध लडते हैं ।

ब्रह्मांड की शक्तियों का पद्क्रम, इस लेख का संदर्भ लें ।

समाज के लिए (समष्टि) साधना करनेवाले साधक अपनी अल्प शक्ति एकत्रित कर इस युद्ध में सम्मिलित होते हैं । जब वे समाज में अध्यात्मप्रसार (उनकी अपनी साधना के रूप में) करते हैं,  उन पर अनिष्ट शक्तियां आध्यात्मिक स्वरूप का आक्रमण करती हैं । आध्यात्मिक उपचार,  साधना से प्राप्त आत्मबल और सबसे महत्त्वपूर्ण र्इश्वर के आशीर्वाद एवं कृपा के कारण साधक इसका सामना कर पाते हैं । सूक्ष्म-विश्व की बुरी शक्तियों के पास भी शक्ति होती है,  जो वे निम्न आकृति में दिखाए अनुसार असामाजिक तत्त्वों को प्रदान करती हैं । परिणामस्वरूप जब हम टीवी खोलते हैं,  हम विश्व में बढती हुई अनैतिकता,  विवेकशून्य आचरण,  अनियंत्रित आतंकवाद और छोटे-बडे झगडों तथा युद्ध की वृद्धि होते हुए देखते हैं ।

अधिकतर लोग वर्तमान अराजकसदृश स्थिति के पीछे छिपे आध्यात्मिक कारण अथवा परिप्रेक्ष्य को नहीं समझते । इसलिए वे इस स्थिति को सुधारने के लिए स्थूल स्तर पर आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध छेडना अथवा मानसिक स्तर पर परिषदों,  चर्चाओं के माध्यम से इसका प्रयास करते हैं । परंतु यह इसका उपाय नहीं है;  क्योंकि सभी असामाजिक तत्त्वों को सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियों से शक्ति मिलती है (कठपुतली समान) । परिणामस्वरूप उनका निर्मूलन स्थूल एवं मानसिक स्तर के प्रयत्नों से नहीं किया जा सकता । विश्व के सबसे बुरे असामाजिक तत्त्वों का निर्मूलन कर भी लें,  उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियां अन्य असामाजिक तत्त्वों को आविष्ट कर उन्हें शक्ति प्रदान करती हैं । यह आध्यात्मिक शक्ति किसी भी स्थूल शक्ति की तुलना में अधिक शक्तिशाली (प्रभावी) होती है ।

सूक्ष्म-विश्व की अनिष्ट शक्तियों को नियंत्रित करने पर ही विश्व की वर्तमान स्थिति में सुधार लाया जा सकता है । इसीलिए देवता एवं संत १९९९ से २०१२ तक अपने आध्यात्मिक सामर्थ्य के साथ पाताल के सर्वोच्च सूक्ष्म-मांत्रिकों से सूक्ष्म-युद्ध करते रहे ।

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यह सूक्ष्म-युद्ध वर्ष २०१२ में अपनी चरमसीमा पर था । जैसे-जैसे अच्छी सूक्ष्म शक्तियां बुरी सूक्ष्म शक्तियों पर विजय प्राप्त करती जाएंगी,  धीरे-धीरे इसकी तीव्रता घटती जाएगी । असामाजिक तत्त्वों को अबतक सूक्ष्म-मांत्रिकों से जो शक्ति मिलती थी,  उस आध्यात्मिक शक्ति को ग्रहण करना उनके लिए असंभव हो जाएगा । परिणामस्वरूप पृथ्वी पर विद्यमान अनिष्ट शक्तियों से आविष्ट अथवा प्रभावित असामाजिक तत्त्व और शेष मानवजाति,  धीरे-धीरे अल्प होती जाएगी । इससे उनपर विजय प्राप्त हो जाएगी । इसके पश्‍चात स्थूल युद्ध आरंभ होगा और पूरा विश्व इससे प्रभावित होगा । पृथ्वी पर विद्यमान असामाजिक तत्त्व और दुर्जनों के विनाश के लिए स्थूल युद्ध भी आवश्यक है । आगामी महायुद्ध में प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि होने से विश्व की जनसंख्या बहुत कम हो जाएगी । पहले हुए महायुद्धों की तुलना में इसकी तीव्रता अधिक होगी और इससे पूरी मानवजाति प्रभावित होगी । इस परिवर्तन की प्रक्रिया में ३०% से अल्प आध्यात्मिक स्तर के लोग इसकी तीव्रता से प्रभावित होंगे । बुराई के पक्ष में लडने के कारण दुर्जन नष्ट हो जाएंगे । जो उदासीन हैं (अच्छाई अथवा बुराई किसी के पक्ष में नहीं),  वे भी इस घमासान युद्ध में प्रभावित होंगे ।

६. वर्तमान समय का आध्यात्मिक महत्त्व

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ब्रह्मांड की उत्पत्ति के उपरांत किसी भी विशिष्ट काल में विशिष्ट मूलभूत सूक्ष्म घटक (त्रिगुणों में से एक) प्रधानरूप में रहता है । उदा.सत्ययुग सत्त्वप्रधान था और आज का कलियुग रज-तम प्रधान है ।

१९९९-२०२५ का काल दो युगों के मध्य का संधिकाल है । इसमें हम मुख्य कलियुगांतर्गत अंधकारमय युग से (छोटा कलियुग) आध्यात्मिक दृष्टि से अच्छे युग में (छोटा सत्ययुग) जानेवाले हैं । संधिकाल के इन २३ वर्षों में अध्यात्म के मूलभूत सिद्धांतानुसार की गई कोई भी साधना अत्यधिक लाभदायक होगी; क्योंकि काल प्रतिकूल होने पर भी साधना करने से साधकों पर र्इश्वर की कृपा अधिक होती है ।

वास्तव में संधिकाल के इन २३ वर्षों में की गई १ वर्ष की साधना अन्य समय के ५० वर्षों की साधनासमान होती है । साधारण मनुष्य की आयु में प्रौढावस्था के ५० वर्ष मान लिए जाएं; तो इन २३ वर्षों में की गई साधना १००० वर्षों की साधनासमान होगी । अर्थात एक ही जन्म में २० जन्मों की साधना का लाभ होगा ।

७. अच्छाई एवं बुराई के युद्ध के पश्‍चात

७.१ अनिष्ट शक्तियों के लिए

अच्छाई एवं बुराई के युद्ध के पश्‍चात जब अनिष्ट शक्तियां नियंत्रण में होंगी, वे लडना बंद कर देंगी और विश्व पर अपना वर्चस्व जमाना संभव हो इसके लिए आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने हेतु तीव्र साधना करने चली जाएंगी । अनिष्ट शक्तियों पर विजय प्राप्त होने से भूलोक तथा भुवर्लोक के ऊपर के सभी लोकों में सत्त्वप्रधान युग आएगा । छोटा सत्ययुग अर्थात ईश्‍वरीय राज्य आरंभ होगा । यह युग सर्वप्रथम भूलोक के ऊपर के सूक्ष्म-लोकों में आएगा और इसके उपरांत पृथ्वी पर भी आएगा ।

७.२ मनुष्यजाति के लिए

हम मानवजाति के इतिहास के एक मध्य भाग पर हैं । स्थूल युद्ध के उपरांत विश्व एक नए युग का सामना करेगा । यह समय परिवर्तनों से भरा होगा; क्योंकि विश्व युद्ध के उपरांत बचे हुए टुकडे समेटने में लगा होगा । इस युग में बचे हुए लोंगों में ईश्‍वरीय राज्य चलाने की क्षमता विकसित होगी । यह २०२५ तक चलता रहेगा । इस संधिकाल के उपरांत मानवजाति लगभग १००० वर्ष तक शांति अनुभव करेगी । इस नए युग में अध्यात्म के प्रति जागृति होगी और आयुर्वेदशास्त्र जैसी विविध शाखाएं विकसित होंगी, जिसे आज के आधुनिक युग में मुख्य उपचार पद्धति के रूप में मान्यता नहीं थी ।

यह महत्त्वपूर्ण बात है कि ये १००० वर्ष ब्रह्मांड का अंतिम सत्ययुग होगा । इस युग में जो भी सत्त्वगुण निर्मित होगा, उतना ही ब्रह्मांड के अंत तक अर्थात ४००, ००० वर्षों तक मनुष्यजाति को उपलब्ध होगा । इसके पश्‍चात सत्त्वगुण नए से निर्मित नहीं होगा; क्योंकि धीरे-धीरे ब्रह्मांड का पतन होकर वह तमोगुण की ओर अग्रसर होगा और निश्‍चित विनाश की ओर जाएगा ।

ब्रह्मांड के सभी लोकों में भूलोक साधना के लिए अत्यंत अनुकूल लोक है । दुर्भाग्यवश जब शांति एवं समृद्धि से परिपूर्ण काल आरंभ होता है, मानवजाति सांसारिक सुखों में मग्न होकर साधना भूल जाती है । इसके परिणामस्वरूप सात्त्विकता घटने लगती है । इससे अधर्माचरण उत्तरोत्तर बढने लगता है और सात्त्विकता घटकर रज-तम बढने लगता है । सात्त्विकता में न्यूनता और रज-तम में वृद्धि सभी लोकों को प्रभावित करती है । यद्यपि इससे सूक्ष्म-लोकों पर अत्यल्प प्रभाव पडता है, सत्त्वगुण की इस अत्यल्पता से भुवर्लोक के ऊपर के लोकों की सूक्ष्म-देहों को कष्ट होने लगता है; क्योंकि वे सदैव उच्च सात्त्विक वातावरण में रहने की अभ्यस्त होती हैं । आगामी काल के संदर्भ में विस्तृत जानकारी हमारे विश्व युद्ध की भविष्यवाणियां और आर्गमेडन लेख में दी है ।

८. सारांश

आध्यात्मिक उन्नति का ध्येय रखनेवाले साधकों के लिए ये २३ वर्ष एक सुवर्ण अवसर समान हैं । इन वर्षों में ईश्‍वरप्राप्ति के लिए किया प्रत्येक प्रयत्न कई गुना लाभदायक होगा । यदि आप साधना कैसे आरंभ करें, इस विषय में जानना चाहते हैं, तो हमारे अपनी आध्यात्मिक यात्रा आरंभ करें यह संदर्भ लेख पढें ।

पृथ्वी पर विद्यमान असामाजिक तत्त्व और दुर्जन सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियों के हाथों की कठपुतलियां बन जाते हैं । इसीलिए अनिष्ट शक्तियों का सामर्थ्य न्यून करने के लिए सभी साधकों को नामजप के साथ र्इश्वर के प्रति भक्ति बढाकर अपनी साधना बढानी चाहिए । अध्यात्मप्रसार में सम्मिलित होने के साथ-साथ अहं और स्वभावदोष न्यून करने के लिए प्रयत्न करने से शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होती है ।

६०%से अधिक आध्यात्मिक स्तर के साधक अनिष्ट शक्तियों के विनाश के लिए संतों के मार्गदर्शन में नामजप और प्रार्थना कर सकते हैं ।