आध्यात्मिक रूप से शुद्ध वातावरण में नामजप करने के प्रभाव

१. प्रयोग की पृष्ठभूमि तथा उद्देश्य

१. परात्पर गुरु डॉ. जयंत बालाजी आठवलेजीके मार्गदर्शन के अनुसार साधक भगवान श्रीकृष्ण से संबंधित ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ नामजप करते हैं । यह नामजप वर्तमान समय में तथा वर्ष २०२५ तक साधकों की आध्यात्मिक उन्नति तथा सुरक्षा के लिए विशेष रूप से अनुकूल है ।

२. लुइसविले के विश्वविद्यालय के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के ससम्मान सेवानिवृत्त प्राध्यापक डॉ. प्रदीप ब. देशपांडे सिक्स सिग्मा एंड एडवांस्ड कंट्रोल्स, इंकॉर्पोरेटेड के संस्थापक अध्यक्ष तथा मु्ख्यकार्यकारी अधिकारी (सी.ई.ओ) भी हैं । वे आध्यात्मिक शोध केंद्र में होनेवाले आध्यात्मिक शोध तथा आश्रम में दैवी कणों के प्राकट्य से प्रभावित होकर १७ जनवरी २०१५ को वे आध्यात्मिक शोध केंद्र तथा आश्रम आए थे ।

३. वे अपने साथ एक जीडीवी कैमरा बायो-वेल नामक उपकरण लाए थे । यह उपकरण व्यक्ति के ऊर्जा क्षेत्र तथा चक्रों की स्थिति को दर्शाता है । इस उपकरण का उपयोग कर, कुछ साधकों पर प्रयोग करने का नियोजन किया गया था ।

४. प्रयोग का उद्देश्य यह जांचना था कि जब साधक आश्रम के आध्यात्मिक उपचार कक्ष में होते हैं तब उन पर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ के नामजप का क्या प्रभाव होता हैं । यह महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. जयंत बालाजी आठवलेजीका पूर्व निवास कक्ष है । वे इस कक्ष में दिसंबर २००६ से जून २००७ तक रहे । उनके द्वारा प्रयोग की हुई वस्तुएं जैसे अलमारी तथा दर्पण इत्यादि को उस कक्ष में संरक्षित रखा गया है । इसका कारण यह है कि परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी जैसे उच्च आध्यात्मिक स्तर के संतों, द्वारा प्रयोग की हुई वस्तुओं में बहुत उच्च मात्रा में सकारात्मक शक्ति विद्यमान होती है जो दूसरों के लिए आध्यात्मिक रूप से लाभकारी होती हैं । उच्च स्तरीय संतों ने बताया है कि किसी सामान्य स्थान पर नामजप करने की तुलना में उस विशेष कक्ष में नामजप करना ३ गुना अधिक प्रभावशाली है ।        

२. आध्यात्मिक रूप से सकारात्मक कक्ष में नामजप करने की प्रभावशीलता का परीक्षण करने हेतु प्रयोग की तैयारी

  • हमने सभी साधकों को एक-एक करके प्रयोग में भाग लेने के लिए कहा तथा जीडीवी कैमरा बायो-वेल पर उनके पाठ्यांक लिए गए । इसे बेसलार्इन रीडिंग (मूल पठ्यांक) माना गया ।
  • .उनका पाठ्यांक (रीडिंग्) लेने के उपरांत हमने, उनसे आश्रम के आध्यात्मिक उपचार कक्ष में जाने को कहा और वहां ४० मिनट नामजप करने को कहा । यह ४० मिनट का नामजप किसी सामान्य स्थान पर २ घंटे नामजप करने के समान होगा ।
  • हमने यह सुनिश्चित किया कि आश्रम का आध्यत्मिक उपचार कक्ष रिक्त रहे तथा एक समय में केवल एक ही साधक नामजप करे । एेसा इसलिए जिससे यह सुनिश्चित रहे कि प्रयोग में भाग लेनेवाला साधक किसी दूसरे साधक के स्पंदनों से प्रभावित नहीं है । केवल नामजप और आश्रम के आध्यात्मिक उपचार कक्ष का विशेष आध्यात्मिक वातावरण ही एकमात्र उद्दीपक हो ।
  • उनका नामजप सत्र पूर्ण होने के उपरांत, आश्रम के आध्यात्मिक उपचार कक्ष में ४० मिनट नामजप करने के प्रभाव को समझने हेतु हमने उसी उपकरण से दूसरा पाठ्यांक प्राप्त किया ।

३. ईश्वर के नामजप के प्रभाव का निरीक्षण

बायो-वेल जीडीवी द्वारा एक अस्वस्थ तथा एक स्वस्थ व्यक्ति की तुलना का उदाहरण आगे दिया गया है । सैंपल ऊर्जा क्षेत्र द्वारा की गई अस्वस्थ तथा स्वस्थ व्यक्ति की तुलना को बाईं ओर दर्शाया गया है तथा अस्वस्थ तथा स्वस्थ व्यक्ति के चक्रों की स्थिति की तुलना को दाईं ओर दर्शाया गया है ।

प्रयोग में ४० मिनट के नामजप सत्र के पूर्व तथा पश्चात के पाठ्यांकों में उल्लेखनीय परिवर्तन देखे गए । जिन दो साधकों ने प्रयोग में भाग लिया था उनके पाठ्यांकों को हमने नीचे दर्शाया है।

पहले साधक के पाठ्यांक – जो किसी प्रकार के आध्यात्मिक कष्ट से पीडित नहीं है   

आध्यात्मिक कष्ट : अर्थात व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन होना । यह आध्यात्मिक कारण जैसे अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रभावित अथवा आविष्ट हो जाना, पितृदोष इत्यादि के कारण होता है । यदि नकारात्मक स्पंदन ५० प्रतिशत से अधिक मात्रा में हों तो उसे तीव्र कष्ट माना जाएगा । ३०-४९ प्रतिशत को मध्यम कष्ट माना जाएगा तथा ३० प्रतिशत से नीचे को सौम्य कष्ट माना जाएगा ।

जैव-ऊर्जा क्षेत्र: नीचे दिए गए चित्र में साधक (जिसे किसी प्रकार का आध्यात्मिक कष्ट नहीं है) के जैव-ऊर्जा क्षेत्र को दर्शाया गया है तथा यह आश्रम के आध्यत्मिक उपचार कक्ष में ४० मिनट ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का नामजप करने से पूर्व (बाईं ओर का चित्र) तथा पश्चात (दाईं ओर का चित्र) के ऊर्जा क्षेत्र के पाठ्यांक को दर्शाता है । इसमें आप देखेंगे कि बाईं ओर के चित्र में व्यक्ति के जैव-क्षेत्र में अंतराल तथा नुकीले कांटे   हैं । यह चित्र व्यक्ति द्वारा नामजप करने से पूर्व के जैव-क्षेत्र को दर्शता है । दूसरी ओर, दाईं ओर का जैव-क्षेत्र चित्र व्यक्ति द्वारा नामजप करने के उपरांत निर्मित ऊर्जा क्षेत्र का चित्र है, वह अधिक स्वस्थ प्रतीत होता है । इसका अर्थ यह है कि पहले के पाठयांक की तुलना में इसके जैव-क्षेत्र में कोई भी अंतराल तथा घनता में असमानता नहीं है ।

चक्र:

विश्लेषण करते समय सॉफ्टवेयर पर चक्रों का प्रदर्शन बहुत महत्वपूर्ण होता है । चक्र का स्थान तथा चक्र का आकार, यह चक्र की अवस्था को दर्शाने हेतु प्रयोग किए जाने वाले दो मापदंड हैं । स्वस्थ व्यक्ति (शारीरिक तथा मानसिक रूप से) की आदर्श अवस्था वह मानी जाएगी जब उसके चक्र काल्पनिक लंबवत केंद्र रेखा पर पंक्तिबद्ध व श्रेणीबद्ध रूप से स्थित होंगे तथा उनका आकार सामान्य होगा अर्थात न अधिक बडा और न अधिक छोटा । जब व्यक्ति शारीरिक अथवा मानसिक रूप से असंतुलित होता है तब उसके चक्र पंक्तिबद्ध व श्रेणीबद्ध रूप से स्थित नहीं होते  तथा उनका आकार भी आदर्श आकार की तुलना में छोटा होता है । यह छोटा आकार ऊर्जा के अभाव को दर्शाता है ।

जीडीवी उपकरण से प्राप्त आरेखित विवरण में प्रदर्शित चक्रों की वास्तविक स्थिति SSRF के चक्रों पर आधारित लेख में वर्णित चक्रों की स्थिति से थोडी भिन्न है । जिन तीन चक्रों को भिन्न रखा गया है वे इस प्रकार हैं:

चक्र जीडीवी के चित्र में स्थित SSRF के अनुसार स्थित
आज्ञा ललाट के केंद्र में दोनों भौहों के मध्य में
मणिपुर स्नायु गुच्छ नाभि पर
स्वाधिष्ठान नाभि पर जननेद्रियों के केश जहां आरंभ होते हैं, उसके नीचे १ इंच पर स्थित बिंदु

प्रयोग में भाग लेते समय साधक (कष्ट रहित) के दो चक्रों की नीचे दी गई चित्रित जानकारी देखें । इस साधक का उच्च आध्यात्मिक स्तर होने के कारण विशुद्ध चक्र तथा मूलाधार चक्र इन दो चक्रों के अतिरिक्त अधिकतर चक्र पहले से ही पंक्तिबद्ध हैं । किंतु यहां पर भी आप देख सकते हैं कि आध्यात्मिक रूप से भारित वातावरण में केवल ४० मिनट के नामजप के पश्चात साधक के सभी चक्र लगभग पंक्तिबद्ध हो गए । चक्रों का आकार भी बढकर आदर्श स्थिति के लगभग समान हो गया ।

आकार के संदर्भ में

आकार ऊर्जा (जूल्स) (x 10-2) सूचित करता है
चक्र पहले पश्चात अंतर
मूलाधार-चक्र ३.७७ ४.६० ०.८३
स्वाधिष्ठान चक्र ३.१८ ४.०७ ०.८९
मणिपुर-चक्र ३.७० ४.१७ ०.४७
अनाहत-चक्र ३.९७ ३.९० -०.०७
विशुद्ध-चक्र ३.७३ ४.६५ ०.९२
आज्ञा-चक्र ३.५५ ३.७४ ०.१९
सहस्त्रार-चक्र ४.१४ ३.७९ -०.३५
औसत ३.७२ ४.१३ ०.४१

ऊपर दिए गए अंकों को जूल्स (x १०-२) में मापा गया है तथा ५ जूल्स (x १०-२) को आदर्श मात्रा  मानी जाएगी ।

  • ७ में से ५ चक्रों के आकर में आदर्श आकार की स्थिति बनने की दिशा में सुधार हुआ
  • समग्र शक्ति में ०.४१ जूल्स (x १०-२) तक सुधार हुआ

संरेखण (अलाइनमेंट) के संदर्भ में

संरेखण, चक्रों की संतुलित अवस्था को दर्शाता है, जो शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है । जितना अधिक चक्र केंद्र रेखा व संरेखण के निकट स्थित होंगे उतना ही  अधिक वे संतुलित होंगे ।

संरेखण (प्रतिशत)
चक्र पहले पश्चात अंतर
मूलाधार-चक्र ४२.६९ ९६.५५ ५३.८६
स्वाधिष्ठान-चक्र ९९.३० ९९.९८ ०.६८
मणिपुर-चक्र ९६.५७ ९८.५६ १.९९
अनाहत-चक्र ९९.६६ ९७.१५ -२.५१
विशुद्ध-चक्र ४५.७३ ९९.९६ ५४.२३
आज्ञा-चक्र ९९.८८ ९४.६३ -५.२५
सहस्रार-चक्र ९९.१९ ९९.९७ ०.७८
औसत ८३.२९ ९८.११ १४.८३

यहां हम संरेखण में  अंतर को देख सकते हैं ।

  • ७ में से ५ चक्रों के संतुलन में सुधार हुआ । मूलाधार चक्र तथा विशुद्ध चक्र जो कि केंद्र रेखा से अत्यधिक दूर थे वे अब पूर्णरूपसे केंद्र रेखा के समीप आ गए हैं
  • अनाहत-चक्र तथा आज्ञा-चक्र केंद्र रेखा से मामूली रूप से दूर हैं
  • समग्र संरेखण में १४.८३ प्रतिशत सुधार हुआ है

जीडीवी द्वारा प्राप्त सम्पूर्ण सारांश की संकेतक रिपोर्ट ने भी इस साधक के प्रकरण में सुधार को  दर्शाया ।

मापदंड स्तर पहले वर्गीकरण पहले पश्चात वर्गीकरण पश्चात अंतर (पहले-पश्चात)
तनाव ०-१० ३.२० सामान्य २.९५ सामान्य -०.२५
ऊर्जा ०-१०० ४६.७८ सामान्य ४९.५४ सामान्य २.७६
Balance ०-१०० ९०.७० सामान्य ९७.०१ सामान्य ६.३१

यह दर्शाता है कि ऊर्जा तथा संतुलन में वृद्धि होने पर समग्र तनाव घट गया ।

दूसरे साधक का पाठ्यांक – जो आध्यात्मिक कष्ट से पीडित है

जैव-ऊर्जा क्षेत्र: प्रथम साधिका की तुलना में इस साधिका के नामजप करने से पहले का क्षेत्र कहीं अधिक खंडित था तथा उसमें अंतराल भी बहुत अधिक थे । ऐसा प्रमुख रूप से उनके आध्यात्मिक कष्ट के कारण था । किंतु, ४० मिनट के नामजप के पश्चात उल्लेखनीय सकारात्मक परिवर्तन सामने आए, जिसमें चारों ओर बहुत विस्तार तक जैव-क्षेत्र समान चौडाई में दिखा ।

चक्र: नामजपसे पूर्व की चक्रों की स्थिति यह दर्शाती है कि चक्र अपने स्थान से बहुत विक्षेपित थे । प्रायः यह स्थिति अस्वस्थ व्यक्ति की सूचक होती है । इस प्रकरण में, आध्यात्मिक शोध से हमें यह समझ आया कि चक्रों की ऐसी स्थिति साधिका को आध्यात्मिक कष्ट होने के कारण निर्माण हुई । साधिका शारीरिक रूप से स्वस्थ थी तथा है एवं उन्हें किसी प्रकार का कोई ज्ञात बडा शारीरिक रोग भी नहीं था । किंतु आश्रम के ध्यान कक्ष में ४० मिनट के नामजप करनेके उपरांत चक्र आकस्मिक रूप से केंद्र रेखा पर स्थित होने लगे ।

आकार के संदर्भ में

आकार ऊर्जा को जूल्स में (x 10-2) (x 10-2) दर्शाता है
चक्र पहले पश्चात अंतर
मूलाधार-चक्र ३.५६ ४.२३ ०.६७
स्वाधिष्ठान चक्र २.५९ ३.९१ १.३२
मणिपुर-चक्र ४.०० ४.२२ ०.२२
अनाहत-चक्र ३.४६ ४.०१ ०.५५
विशुद्ध-चक्र ३.५६ ३.५१ -०.०५
आज्ञा-चक्र ३.७५ ४.२३ ०.४८
सहस्रार-चक्र ३.२८ ४.३८ १.१०
औसत ३.४६ ४.०७ ०.६१

ऊपर दिए गए अंकों को जूल्स (x १०-२) में मापा गया है तथा ५ जूल्स (x १०-२) को आदर्श मात्रा  मानी जाएगी ।

  • ७ में से ६ चक्रों के आकर में आदर्श स्थिति बनने की दिशा में सुधार हुआ
  • समग्र ऊर्जा में ०.६१ जूल्स (x 10-2) तक सुधार हुआ

संरेखण (केंद्र रेखा पर पंक्तिबद्ध रहने) के संदर्भ में

संरेखण (प्रतिशत)
चक्र पहले पश्चात अंतर
मूलाधार-चक्र ७०.४१ ९१.३४ २०.९३
स्वाधिष्ठान-चक्र ३३.३३ ९९.९४ ६६.६१
मणिपुर-चक्र ७८.८१ ३८.०० -४०.८१
अनाहत-चक्र ३४.४८ ९८.९७ ६४.४९
विशुद्ध-चक्र ९९.६१ ९५.७९ -३.८२
आज्ञा-चक्र ७७.२२ ९९.४८ २२.२६
सहस्रार-चक्र ९२.७५ ९६.६८ ४.२३
औसत ६९.५२ ८८.६४ १९.१३

यहां हम संरेखण में विशाल अंतर को देख सकते हैं

  • ७ में से ५ चक्रों के संतुलन में उल्लेखनीय रूपसे सुधार हुआ ।
  • मणिपुर-चक्र तथा विशुद्ध-चक्र केंद्र रेखा से थोडे दूर स्थित है ।
  • समग्र संरेखण में १९.१३ प्रतिशत तक सुधार हुआ

जीडीवी द्वारा प्राप्त सम्पूर्ण सारांश की संकेतक रिपोर्ट ने भी इस साधक के प्रकरण में सुधार को  दर्शाया है ।

मापदंड स्तर पहले वर्गीकरण पहले पश्चात वर्गीकरण पश्चात अंतर (पहले-पश्चात)
तनाव ०-१० ३.१९ सामान्य ३.०४ सामान्य -०.१५
ऊर्जा ०-१०० ४६.१७ सामान्य ५०.९९ सामान्य ४.८२
Balance ०-१०० ७७.२२ सामान्य ९१.०२ सामान्य १३.८०

यह दर्शाता है कि समग्र तनाव  अत्यल्प मात्रा में घट गया एवं ऊर्जा तथा संतुलन में अत्यधिक वृद्धि हुई ।

४. आध्यात्मिक रूप से शुद्ध कक्ष में नामजप करने की प्रभावशीलता पर निष्कर्ष

  • दोनों ही साधकों में, आश्रम के आध्यात्मिक रूप से सकारात्मक आध्यात्मिक उपचार कक्ष में मात्र ४० मिनट नामजप करने के उपरांत उनके प्रभा मंडल (औरा) तथा चक्र के पाठ्यांक, दोनों में उल्लेखनीय रूप से सकारात्मक परिवर्तन हुए ।
  • यह ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ नाम के महत्त्व तथा प्रभावकारिता को एवं परात्पर गुरु (प.पू. डॉ. आठवलेजी) के मार्गदर्शन का अनुसरण करने के महत्त्व को दर्शाता है
  • यह आध्यत्मिक रूप से शुद्ध स्थानों पर नामजप करने के महत्त्व को भी दर्शाता है क्योंकि ऐसे स्थान साधना में वर्धक के रूप में कार्य करते हैं । इसीलिए साधना करने हेतु तीर्थ स्थानों पर जाने का सुझाव दिया जाता है ।
  • डॉ प्रदीप ब. देशपांडे जिन्होंने यह प्रयोग किया, वे यह परिवर्तन देखकर अत्यधिक आश्चर्यचकित हुए तथा उन्होंने कहा कि इस तरह का परिवर्तन होने में प्रायः कई माह लग जाते है । उन्होंने जीडीवी कैमरा बायो-वेल उपकरण के प्रयोग से किए गए उनके व्यापक अनुसंधान के अनुभव के आधार पर यह कथन दिया ।