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१. दूरदर्शन के प्रभाव की प्रस्तावना

अधिकांश लोगों के लिए अपनी प्रति दिन की समस्यायों से बचने के लिए, मनोरंजन के लिए और साथ ही साथ और जानकारी, और अनुभव के विश्व से जुडने का दूरदर्शन एक माध्यम है।

दूरदर्शन और सिनेमा की सार्वजनिक अपील को देखते हुए हमने दर्शक और उसके वातावरण पर इसके आध्यात्मिक प्रभावों का अभ्यास किया । जिन प्रश्नों के उत्तर दिये गए :

  • दर्शक और उसके निकट वातावरण पर दूरदर्शन और सिनेमा का क्या प्रभाव है ?
  • क्या कार्यक्रम का प्रकार हमारे अनुभवको प्रभावित करता है ?

२. दूरदर्शन के प्रभाव

यद्यपि हम समाचार, जानकारी और मनोरंजन के लिए दूरदर्शन पर बहुत अधिक निर्भर करते है; परन्तु शोध से इसके नकारात्मक प्रभाव भी सामने आए है । निम्न सूची में हमने आज के समाज द्वारा दूरदर्शन की आलोचना के बिन्दु दिए हैं । (सन्दर्भ: CyberCollege).

  • दूरदर्शन मोटापा बढाता है ।
  • व्यक्तिगत उत्तरदायित्व से बचने के लिए उत्साहित करता है ।
  • वास्तविता की असत्य छवि प्रस्तुत करता है और वास्तविकता को बिगाडता है ।
  • दूरदर्शन आर्थिक शोषण के लिए आकर्षित करता है । यह विज्ञापन द्वारा उपभोगता संस्कृति को जन्म देता है ।
  • सांकेतिक कामुकता दर्शाकर दूरदर्शन नैतिक मूल्यों का हास करता है ।
  • हिंसक दृश्यों द्वारा दूरदर्शन प्रति दिन के व्यवहार में हिंसा को बढावा देता है । (सन्दर्भ: New Scientist)

अधिकांश लोग अनुभव करते है की वे दूरदर्शन को छोड नही सकते अथवा बहुत अधिक समय दूरदर्शन कार्यक्रमों के विषय में सोचने में, चर्चा में अथवा पुनःप्रसारण को देखने में व्यतीत करते हैं । इसके दुष्पप्रभावों के विपरीत, ऐसा क्या है जो लोगों को इसकी ओर बांधे रखता है और आकर्षित करता है ? इसका उत्तर देने के लिए SSRF द्वारा अध्यात्मिक शोध किया गया जो यह दर्शाता है कि दूरदर्शन देखते हुए आध्यात्मिक आयाम में क्या घटता है ।

३. दूरदर्शन के आध्यात्मिक प्रभाव

कु. प्रियंका लोटलीकर, जो एक विकसित छठवीं इंद्रिय वाली साधिका है, ने अभ्यास किया कि जब कोई दूरदर्शन पर मनोरंजक कार्यक्रम देखता है तो आध्यात्मिक आयाम में क्या घटता है । उसने इसे सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र के माध्यम से प्रस्तुत किया है ।

इन परिणामों की सत्यता प.पू. डॉक्टर आठवले जी द्वारा जांची गयी है ।

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जांच का सारांश निम्नलिखित है:

  • जब मनोरंजक कार्यक्रम प्रसारित हो रहा होता है तब कष्टदायी शक्ति का वलय दूरदर्शन यन्त्र के चारों ओर निर्माण होता है और कष्टदायी शक्ति वातावरण में ध्वनि चक्रों के रूप में प्रक्षेपित होती है ।
  • दर्शक के मन के चारों ओर कष्टदायी शक्ति के जाल का निर्माण होता है ओर उसके चारों ओर कष्टदायी शक्ति का आवरण आता है । यहां तक कि दूरदर्शन कार्यक्रम देखने वाले व्यक्ति के विचारों द्वारा वातावरण में कष्टदायी शक्ति के स्पन्दन प्रक्षेपित होते है ।
  • दूरदर्शन संच के चारों ओर मायावी शक्ति के वलय का निर्माण । यह दर्शक में मायावी शक्तिके चक्र का निर्माण करता है ।
  • दूरदर्शन कार्यक्रम द्वारा मायावी स्पन्दन प्रक्षेपित होते हैं । अधिकांश दूरदर्शन कार्यक्रम वास्तविकता नहीं दिखाते, परिणाम स्वरूप वातावरण और परिसर में बडी मात्रा में मायावी स्पन्दन प्रक्षेपित होते हैं । दर्शक काल्पनिक जगत में अधिक से अधिक मग्न होता जाता है जिसका कोई अस्तित्व नही है ।
  • इन कार्यक्रमों को देखने वाला व्यक्ति बहिर्मुखी हो जाता है क्योंकि उसका मन और बुद्धि दूरदर्शन के प्रभाव में है और वैसा ही व्यवहार करता है ।

अध्यात्मिक शोध बताते हैं कि दूरदर्शन देखने वाले दर्शक मंत्रमुग्ध क्यों हो जाते है । आधुनिक विज्ञान द्वारा दूरदर्शन के दुष्परिणामों को भी ये शोध आधार प्रदान करते हैं ।

४. दूरदर्शन के कार्यक्रम और उसकी विषय वस्तु के प्रभाव

शोधके परिणामों ने हमें सोचने पर विवश कर दिया कि वे केवल मनोरंजक कार्यक्रम तक सीमित हैं अथवा किसी भी प्रकार के कार्यक्रम पर लागू होते हैं । हमने पाया कि सत्वप्रधान विषय वस्तु को देखना हमारे लिए लाभदायक है जबकि तमप्रधान विषय वस्तु हानिकारक है । कष्टदायी शक्ति के प्रक्षेपित स्पन्दन इस पर निर्भर करते है कि दूरदर्शन कार्यक्रम किस प्रकार का है ।

४.१ एक दूरदर्शन कार्यक्रम की आध्यात्मिक शुद्धता / पवित्रता को प्रभावित करनेवाले घटक

हमारे विकसित छठवीं इंद्रिय वाले जिज्ञासुओं ने विभिन्न प्रकार के दूरदर्शन कार्यक्रमों के प्रभाव का आध्यात्मिक स्तर पर विश्‍लेषण किया ।

 विभिन्न प्रकार के दूरदर्शन कार्यक्रमों का आध्यात्मिक प्रभाव
सत्वप्रधान कार्यक्रम सत्संग और उच्चस्तर के सन्तों के अन्य कार्यक्रम
रज-सत्व प्रधान कार्यक्रम यात्रा
प्रकृति आधारित कार्यक्रम
रज-तम प्रधान कार्यक्रम खेलकूद कार्यक्रम
समाचार
हास्यप्रधान
धारावाहिक
कार्टून
नाटक
प्रेमकथाएं
मारपीट
तमप्रधान कार्यक्रम वास्तविकता पर आधारित कार्यक्रम
भयावह फिल्म
अत्याधिक तमप्रधान कार्यक्रम अश्लील फिल्म

हमने यह भी पाया कि जब कार्यक्रम में हिंसा, हत्या, नग्नता अथवा कामुकता सम्मिलित होती है तब कार्यक्रम और दर्शक दोनों में तामसिक घटक बढता है । अशिष्ट भाषा में गाली-गलौज, धर्म निन्दा और तमप्रधान भाषा का भी दर्शक पर नकारात्मक प्रभाव होता है ।

सुझाव : आप भी सूक्ष्म परीक्षण कर सकते हैं और विभिन्न प्रकार के दूरदर्शन  कार्यक्रम देखते हुए आप क्या अनुभव करते है इसका अभ्यास कर सकते हैं । हम चाहेंगे कि आप अपने अनुभव Post a Comment पर लिखकर हमें भेजें ।

४.२ सात्विक कार्यक्रम

कु. प्रियंका लोटलीकर ने अभ्यास किया कि जब कोई सत्वप्रधान कार्यक्रम देखता है तो उसके अध्यात्मिक स्तर पर क्या प्रभाव पडता है । इस केस में प.पू. भक्तराज महाराज, उच्चतम स्तर के एक संत का ध्वनि चित्र फीत सत्संग का कार्यक्रम था ।

परिणामों का सारांश निम्नलिखित है

  • संत के सत्संग की ध्वनि चक्रिका देखते समय दर्शक में भाव के वलय का कार्यरत होना ।
  • संतों के बोलते समय आनंद, चैतन्य और शक्ति का निर्माण होकर दर्शक की ओर प्रक्षेपित होना ।
  • वातावरण से कष्टदायी शक्ति का विघटन ।
  • संत के शब्द पूर्ण सत्य होते हैं परिणाम स्वरूप दर्शक अध्यात्म में मग्न होने लगते है और आंतरिक आनंद और चैतन्य का अनुभव करते है ।
  • इन दूरदर्शन कार्यक्रमों के दर्शक संत की वाणी के प्रभाव के कारण अंतर्मुखी हो जाते है और उनका मन और बुद्धि उसके अनुसार कार्य करने लगते हैं ।

इस विश्‍लेषण से हम देख सकते कि सत्व प्रधान कार्यक्रम जैसे संत का सत्संग इत्यादि देखनेका हमारे ऊपर अध्यात्मिक रूप से लाभदायक प्रभाव होता है । दुर्भाग्यवश दूरदर्शन पर ऐसे कार्यक्रम बहुत कम दिखाये जाते है ।

५. चलचित्र के आध्यात्मिक प्रभाव

उपरलिखित सिद्धांत, कुछ अतिरिक्त बिंदुओं के साथ, चलचित्र देखने पर भी लागू होता है

१. जिस प्रकार आध्यात्मिक व्यक्तियों के सत्संग में रहेने से हमारी सकारात्मकता बढती है उसी प्रकार अत्याधिक राजसिक अथवा तामसिक वातावरण जैसे सिनेमागृह हमारी नकारात्मकता को बढाते हैं ।

२. चलचित्र देखते हुए अंधेरे कमरे मे होने के कारण यह प्रभाव और अधिक बढ जाते हैं । ऊच्च ध्वनि तीव्र प्रकाश इस प्रभाव को बढाता है ।

३. कार्यक्रम का प्रकार दूरदर्शन के अनुसार ही रहता है; परंतु चलचित्र रंगशाला अनुभव होने के कारण, जैसे कि पहले कहा गया है, इसमें रज-तम घटक अधिक होगा ।

६. सारांश

हम दूरदर्शन अथवा चलचित्र को अपनी प्रतिदिन की दैनिक कृतियों से बचने के लिए और मनोरंजन के रूप मे प्रयोग करते है । फिर भी, केवल साधना ही हमें पूर्ण शांति, विश्राम और आनंद दे सकती है जिसे हम अन्य माध्यमों से ढूंढते है । संतों के सत्संग देखना, सत्संग में जाना, नामजप, प्रार्थना, सत्सेवा और साधना के अन्य पहलू हमारा आध्यात्मिक स्तर बढाते हैं ।

कभी कभी दूरदर्शन और चलचित्र देखना, परिवार और मित्रों के साथ मेलजोल का एक तरीका होता है और चुनाव करना संभव नहीं होता । जब हमें चुनाव के यह सुविधा ना हो कि हमें यह कार्यक्रम देखना चाहिए अथवा नहीं ? ऐसे में कार्यक्रमों से पूर्व, अंतर्गत और बाद में / पश्‍चात नामजप और प्रार्थना जैसी आसान कृतियां हमारी रक्षा करने में अत्याधिक सहायता करती हैं । उदाहरण के लिए यह प्रार्थना हे ईश्‍वर, कृपया चलचित्र / दूरदर्शन कार्यक्रम देखने के दुष्प्रभाव से मेरी रक्षा करें और पूरा समय मुझसे नामजप करवा लें । आपके नामजप की शक्ति का सुरक्षा कवच मेरे चारों ओर निर्माण होने दें ।

धीरे-धीरे हम दूरदर्शन और चलचित्र में व्यय होने वाला समय कम कर सकते हैं । हम तमप्रधान कार्यक्रम देखने से भी बच सकते हैं ।

जैसे जैसे हमारी साधना बढती है, हमारे अन्दर सत्वगुण बढता है । ऐसा करने से हमारी मनोरंजन विधि का चुनाव भी स्वाभाविक रूप से अधिक सात्विक हो जाता है क्योंकि आध्यात्मिक रूप से लाभदायक कृतियां हमारी अंतर करने की योग्यता बढाती हैं और हमें आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली बनाती हैं ।