1-HIN_How-to-perform-Agnihotra

अग्निहोत्र प्राचीन वेद-पुराणों में वर्णित एक साधारण धार्मिक संस्कार है, जो प्रदूषण को अल्प करने तथा वायुमंडल को आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करने हेतु किया जाता है । अग्निहोत्र के संदर्भ में SSRF द्वारा किए गए आध्यात्मिक शोध की पृष्ठभूमि की अधिक जानकारी हेतु कृपया अग्निहोत्र संस्कार पर आध्यात्मिक शोध देखें ।

१. सारांश

ठीक स्थानीय सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय, गाय के घी की कुछ बूंदों से सने दो चुटकी कच्चे चावल (अक्षत) अग्नि में डाले जाते हैं । तांबे के एक अर्ध पिरामिड आकार के पात्र में अग्नि प्रज्वलित की जाती है । अग्नि में दो बार आहुति डालते समय, दो सरल वेद मंत्रों का उच्चारण किया जाता है ।

२. अग्निहोत्र के मंत्र

अग्निहोत्र की सामग्री को अग्नि में आगे दिए गए मंत्रोंच्चारण के साथ आहुति दी जाती है ।

२.१ सूर्योदयके समय

१. सूर्याय स्वाहा सूर्याय इदम् न मम

२. प्रजापतये स्वाहा प्रजापतये इदम् न मम

> सूर्योदय के समय उच्चारण किए जानेवाले अग्निहोत्र के मंत्र को सुनें ।

२.२ सूर्यास्तके समय

१.      अग्नये स्वाहा अग्नये इदम् न मम

२.      प्रजापतये स्वाहा प्रजापतये इदम् न मम’

> सूर्योदय के समय उच्चारण किए जानेवाले अग्निहोत्र के मंत्र को सुनें ।

मंत्र के उच्चारण से व्यक्ति के मन में शरणागत भाव की निर्मिति तथा जागृति में सहायता होती है । मंत्र का उच्चारण इस प्रकार करें कि वह पूरे घर में गुंजायमान हो । उच्चारण स्पष्ट तथा लय में होना चाहिए । मंत्र में आए शब्द सूर्य, अग्नि तथा प्रजापति सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पर्यायवाची हैं । शरणागत भाव की जागृति इन मंत्रों के उच्चारण से होती है ।

३. अग्नि प्रज्वलित करना

३.१ अग्निहोत्र के लिए आवश्यक सामग्री

  • २ चुटकी अखंड अक्षत
  •  गाय का घी
  • निश्चित माप का अर्ध पिरामिड के आकार का ताम्रपात्
  • गाय के गोबर के उपले
  • अग्नि का स्रोत (दियासलाई)

[अधिकतर सामग्री अग्निहोत्र सामग्री रखनेवाले विशेष दुकानों अथवा ऑनलाईन स्टोर्स से क्रय किए जा सकते हैं । ये इंटरनेट से भी प्राप्त हो सकते हैं ।]

३.२ सामग्री को रखना

स्थानीय सूर्योदय तथा सूर्यास्त का समय देखें (ये ऑनलाईन भी http://www.timeanddate.com/worldclock/sunrise.html में ज्ञात हो सकते हैं ।)। तब सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय के ५-१० मिनट पहले, अग्निहोत्र पात्र में उपले के टुकडे को आगे बताएनुसार रखें ।

  • सर्वप्रथम, एक चौकोर उपले का टुकडा हवनपात्र के तल में रखें, उस टुकडे का आकार इतना हो कि वह तल में अच्छे से बैठ जाए ।
  • हवनपात्र के अगले तथा पिछले भाग में दो छोटे टुकडे रखें ।
  • इन दो टुकडों के ऊपर, दो लंबे टुकडे हवनपात्र के बांए तथा दांए बाजू में खडे करके इस प्रकार रखें कि उन सबके मध्य थोडा स्थान हो ।
  • २ टुकडे आडे तथा अगले दो टुकडे सीधे रखते हुए १ अथवा २ परतें सजाएं । इस प्रकार हवनपात्र के केंद्र में एक रिक्त स्थान बन जाएगा ।

उपले का एक और टुकडा लेकर उसमें घी लगाएं । इसे घी के दीये के ऊपर रख जलाएं और हवनपात्र में उपलों के मध्य में रख दें । आवश्यकता हो तो लोहबान, कर्पूर अथवा घी में डूबी कपास की बाती का उपयोग कर सकते हैं । अग्नि प्रज्वलित करते समय घी की कुछ बूंदें उपले पर डाल सकते हैं । आवश्यक हो तो, टुकडों को जलाने के लिए हाथ पंखे का उपयोग किया जा सकता है । अग्नि को कभी भी मुंह से न फूंके । अग्निहोत्र के समय अग्नि पूर्णतः प्रज्वलित रहनी चाहिए ।

घी से सने दो चुटकी स्वच्छ तथा अखंड अक्षत अपने बांए हथेली अथवा एक छोटे पात्र में लें ।

४. आहुति देना

४.१ प्रातःकालीन अग्निहोत्र

  • अपनी आंखें घडी के कांटें पर रखें, जैसे ही सूर्योदय का समय होता है, पहला मंत्र बोलना प्रारंभ करें सूर्याय स्वाहा ।
  • स्वाहा कहने के साथ ही अक्षत का पहला भाग अग्नि को आहुति दें और सूर्याय इदं न ममका उच्चारण करते हुए मंत्र के प्रथम पंक्ति को पूर्ण करें । अक्षत को दाहिने हाथ का अंगूठा, मध्यमा तथा अनामिका से (हथेली ऊपर की दिशा में)अग्नि में आहुति दें तथा बांए हाथ को अपनी छाती पर रखें ।
  • मंत्र की दूसरी पंक्ति का उच्चारण करते हुए अक्षत का दूसरा भाग प्रजापतये स्वाहा कहने के उपरांत अग्नि में आहुति दें तथा मंत्र को प्रजापतये इदं न मम कहते हुए पूर्ण करें ।
  • जब तक हवन सामग्री पूर्णतः जल न जाए, बैठकर अग्नि पर ध्यान एकाग्र करें । प्रातःकाल का अग्निहोत्र यहीं समाप्त होता है ।

४.२ संध्याकालीन अग्निहोत्र

  • संध्याकाल में अग्निहोत्र के समय से पूर्व, प्रात:काल के अग्निहोत्र की राख को हवनपात्र से निकालकर ध्यानपूर्वक अलग पात्र में रखें ।
  • प्रात:काल की प्रक्रिया को दोहराते हुए, पुनः हवनपात्र में उपले के टुकडे से अग्नि प्रज्वलित करें । साथ ही घी से सने अक्षत को दो समान भागों में दो बार आहुति देने के लिए तैयारी करें ।
  • ठीक सूर्यास्त के समय अग्निहोत्र के सूर्यास्त के मंत्र अग्नाय स्वाहा कहने के साथ ही अक्षत का पहला भाग अग्नि को आहुति दें और अग्नाय इदं न ममका उच्चारण करते हुए मंत्र के प्रथम पंक्ति को पूर्ण करें ।
  • इसी प्रकार मंत्र की दूसरी पंक्ति का उच्चारण करते हुए अक्षत का दूसरा भाग प्रजापतये स्वाहा कहने के उपरांत अग्नि में आहुति दें तथा मंत्र को प्रजापतये इदं न मम कहते हुए पूर्ण करें ।
  • जब तक हवनसामग्री पूर्णतः जल न जाए, बैठकर अग्नि पर ध्यान एकाग्र करें । संध्याकाल का अग्निहोत्र यहीं समाप्त होता है ।

५. अन्य तैयारी

  • अग्निहोत्र के स्थान को स्वच्छ तथा व्यवस्थित रखें ।
  • प्रातःकाल में अग्निहोत्र के समय से पूर्व स्नान करना सर्वोत्तम होगा । संध्याकाल में स्नान करना संभव न हो तो अग्निहोत्र करने से पूर्व हाथ, पैर तथा मुख धो लें ।
  • अग्निहोत्र की विभूति (भस्म)अलग पात्र में रखी जा सकती है । इसमें औषधीय गुण हैं (संदर्भ : www.homatherapy.de/linked/buch_eng.pdf )तथा इसका उपयोग आपकी शाक-वाटिका तथा कृषि के लिए एक प्रभावी तथा अत्यंत उपयोगी खाद के रूप में किया जा सकता है । इस विभूति को व्यर्थ समझकर कचरे के डिब्बे में न फेंके । आप इसे झील, नदी अथवा जलाशय में प्रवाहित कर सकते हैं । यह जल को सूक्ष्म-स्तर पर स्वच्छ तथा शुद्ध करता है ।

६.अग्निहोत्र करने के चरण (स्लाईड शो)

आगे दिए गए स्लाईड शो में अग्निहोत्र करने के सभी चरण दिखाए गए हैं ।

७. कहां करें

अग्निहोत्र घर के किसी भी कक्ष अथवा स्थान में किया जा सकता है । यदि घर में पूजाघर अथवा ध्यान-कक्ष हो तो वहां अग्निहोत्र करना सर्वोत्तम होगा । यह आपके घर के छज्जा अथवा छत, अथवा घर से लगे खेत अथवा वाटिका में भी किया जा सकता है ।

८. इसे कौन कर सकता है

  • अग्निहोत्र संस्कार सरल, सहजता से ग्रहण करने योग्य तथा सर्वगत है । यह कोई भी कर सकता है । संसार में, अनेक लोग तथा परिवार इस हवन को कर लाभान्वित हो रहे हैं । इसमें धर्म, संप्रदाय, जाति, राष्ट्रीयता, रंग, लिंग तथा आयु का कोई भी बंधन नहीं है । बच्चे भी बडों के मार्गदर्शन में इसे कर सकते हैं । स्त्रियां अपने मासिक धर्म के समय इसे न करें ।
  • यदि अग्निहोत्र, नाभिकीय विकिरण सेरक्षण हेतु एक निवारक अथवा सक्रिय साधन के रूप में किया जाता है तो SSRF का यह सुझाव है कि इसे न्यूनतम ५० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर वाला व्यक्ति ही करे । [नाभिकीय उत्सर्जन से सुरक्षा हेतु अग्निहोत्र की प्रभावक्षमता को बढाने में आध्यात्मिक स्तर के महत्व के संदर्भ में अधिक जानकारी के लिए कृपया हमारा लेख नाभिकीय विकिरण से सुरक्षा के लिए अग्निहोत्र पढें ]
  • अग्निहोत्र करते समय केवल एक ही व्यक्ति हवन करे । अग्निहोत्र के समय परिवार के अन्य लोग उपस्थित होकरहोनेवाले लाभ को ग्रहण करें ।

९. शरणागत भाव की जागृति

  •  दांए हाथ से अक्षत अर्पित करते समय, बांया हाथ छाती पर रखा होना चाहिए क्योंकि इससे शरणागति का भाव जागृत होता है ।
  • हवन करने के उपरांत, शांति से दैवी शक्ति पर ध्यान एकाग्र करने का प्रयास करें । इस समय मन के सभी विचारों को त्यागने का प्रयास करें तथा पूर्ण शरणागत भाव को जागृत करने का प्रयास करें ।
  • अग्निहोत्र के उपरांत अग्नि को स्वयं से बुझने दें । उसे बुझाने के लिए अन्य कुछ भी न करें । उपले के टुकडे का पूर्णतः जलना सर्वोत्तम होगा । यदि वे पूरा नहीं जलते तो उन्हें विभूति के रूप में (जल में विसर्जन कर आदि) उपयोग करें और अगली बार अन्य उपले का प्रयोग करें ।

१०. अग्निहोत्र करते समय निर्मित ईश्वरीय तरंगों का सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र

सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र को समझने के लिए यहां क्लिक करें ।

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क्रम संख्या व्याख्या
भाव के वलय की निर्मिति
परमेश्वरीय तत्व का आकृष्ट होना
२ अ परमेश्वरीय तत्व के वलय की निर्मिति
चैतन्य का आकृष्ट हाना
३ अ चैतन्य के वलय की निर्मिति
३ आ वायु के रूप में चैतन्य का प्रक्षेपण होना
३ इ व्यक्ति की ओर चैतन्य का प्रक्षेपण तथा उसके वलय की निर्मिति
आहुति के उपरांत सूर्य तत्व आकृष्ट होना
४ अ सूर्य-प्रधान तत्व के वलय का निर्माण होना
तेज-प्रधान तत्व के प्रवाह का आकृष्ट होना
५ अ तेज-प्रधान तत्व के वलय का निर्माण होना
५ आ तेज-प्रधान तत्व के वलय का प्रक्षेपण होना
मंत्र-शक्ति का प्रक्षेपण होना
शक्ति का प्रसारण होना
तेज-तत्व का प्रक्षेपण होना
८ अ तेज तत्व के वलय की निर्मित होना
चैतन्य के रूप में र्इश्वरीय शक्ति कणों का प्रसारण होना
१० कुंडलिनी चक्रों का शुद्ध होना
११ प्राण-शक्ति कणों का प्रसारित होना
११ अ प्राण-शक्ति ग्रहण करना
१२ र्इश्वरीय शक्ति कणों का प्रसारित होना
१३ शरीर के सर्व ओर सुरक्षात्मक कवच की निर्मिति होना