अनिष्ट शक्तियां क्या होती हैं तथा एक व्यक्ति अनिष्ट शक्ति कैसे बन जाता है ?

१. अनिष्ट शक्तियां क्या होती हैं?

किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर केवल उसके स्थूल देह का अंत होता है । परंतु उसके सूक्ष्म-देह का (स्थूल देह को छोडकर, अवचेतन मन, बुद्धि, अहं तथा आत्मा से मिलकर बना होता है) का अस्तित्व बना रहता है । यह सूक्ष्म देह ब्रह्मांड के अन्य लोकों में चली जाती है । हम किससे बने हैं तथा मृत्योपरांत हम क्या छोड जाते हैं, इसके विस्तृत विवरण के लिए नीचे दिए गए चित्र का संदर्भ लें ।

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इनमें से कुछ सूक्ष्म-देह अनिष्ट शक्ति बन जाती हैं । अनिष्ट शक्ति के निम्नलिखित लक्षण हैं :

  • ये सूक्ष्म-देह होते हैं ।
  • ये भूवर्लोक अथवा सप्त पाताल के किसी एक लोक से संबंधित होते हैं;किंतु वे पृथ्वी (भूलोक) पर भी पाए जाते हैं । क्योंकि अनिष्ट शक्ति ब्रह्मांड के किसी भी सूक्ष्म-लोक की हो, वह अपनी इच्छा से अधिक स्थूल लोक जैसे पृथ्वी पर जा सकती है ।
पूरा ब्रह्मांड अस्तित्व के १४ मुख्य लोकों (स्तरों) से मिलकर बना है । उनमें से ७ लोक सकारात्मक हैं और ७ नकारात्मक । पृथ्वी ही एकमात्र स्थूल लोक है, अन्य सर्व लोक सूक्ष्म-स्तर के हैं । इसके उपरांत स्वर्ग सकारात्मक लोकों में से एक है, जहां हम मृत्यु के उपरांत जा सकते हैं ।
  •  ये ब्रह्मांड के सकारात्मक लोकों जैसे स्वर्ग और उससे उच्च लोक में नहीं रहती ।
  •  उनमें अतृप्त इच्छाएं जैसे कामवासना की तीव्र इच्छा, मद्यपान (वैसी चीजें जो केवल स्थूल देह के माध्यम से ही अनुभव की जा सकती हैं) , बदला लेने की वृत्ति इत्यादि होती है ।
  • मनुष्यों तथा अन्य सूक्ष्म-देहों पर नियंत्रण कर उन्हें कष्ट देने से अनिष्ट शक्तियों को अत्यधिक सुख मिलता है । उनका सामान्य उद्देश्य समाज में अधर्म फैलाना है ।

किसी व्यक्ति के शरीर की मृत्यु होने के उपरांत यदि उस सूक्ष्म-देह की विशेषताएं तथा उद्देश्य उपरोक्त सूत्रों से मिलते हैं तो वे अनिष्ट शक्ति कहलाते हैं ।

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२. मृत्योपरांत हम कहां जाएंगे तथा हम क्या बनेंगे, ये कैसे निश्‍चित होता है ?

जब हमारी मृत्यु होती है, हमारी जीवनोपरांत की दिशा कई घटकों से निश्‍चित होती है । वे घटक हैं :

  • जीवन व्यतीत करने के हमारे ढंग के आधार पर हमारे अवचेतन मन में निर्मित संस्कारों की संख्या एवं उनके प्रकार । कृपया हमारा लेख मन के संस्कार का संदर्भ लें, जो हमारी मूल प्रकृति एवं व्यक्तित्व बताती है ।
  • हमारा अहं : यहां पर अहं शब्द का प्रयोग आध्यात्मिक अर्थ में किया गया है । इसके सामान्य प्रयोगस्व-सम्मान तथा स्वयं के विषय में मिथ्याभिमान के अतिरिक्त इसमें र्इश्वर से अलग होने की अर्थात द्वैत की भावना भी सम्मिलित है । द्वैत का अर्थ है, स्वयं को र्इश्वर से अलग समझना । अहं कार्य करने की वह मात्रा है, जिससे हम अपनी आत्मा अथवा स्वयं में विद्यमान र्इश्वर सहित तादात्म्य रखने के स्थान पर अपनी पंचज्ञानेंद्रियों, मन तथा बुद्धि से तादात्म्य रखने लगते हैं ।
  • अपने जीवनकाल में किए गए कर्मों के प्रकार
  • अपने जीवनकाल में की गई साधना का प्रकार तथा उसकी मात्रा
  • हमारा प्रारब्ध
  • मृत्यु का प्रकार – स्वाभाविक एवं शांत, हिंसक अथवा दुर्घटना
  • अंतिम संस्कार का प्रकार
  • मृत्यु के उपरांत के जीवन में सहायता हेतु मृत्यु के पश्चात अपने वंशजोंद्वारा की गई अध्यात्मशास्त्र पर आधारित धार्मिक विधियां

३. अनिष्ट शक्ति कौन बन सकता है ?

लोगों की मृत्यु के उपरांत उनके अनिष्ट शक्ति बनने की संभावना प्रायः तब होती है, जब

  • उनकी अनेक अतृप्त इच्छाएं हों ।
  • उनमें अनेक स्वभावदोष हों, जैसे – क्रोध, भय, लालच इत्यादि ।
  • मन में अत्यधिक नकारात्मक संस्कार हों ।
  • अत्यधिक अहं हो ।
  • उन्होंने अन्यों को क्षति पहुंचाई हो तथा अन्यों को हानि पहुंचाना उनका मूलभूत स्वभाव हो ।
  • ऐसी अगले स्तर की साधना का उनमें अभाव हो जिसमें, तन, मन एवं बुद्धि को र्इश्वरप्राप्ति हेतु समर्पित किया जाता है ।
समष्टि आध्यात्मिक स्तर का अर्थ है, समाज के लिए की गई साधना (समष्टि साधना) द्वारा प्राप्त किया गया आध्यात्मिक स्तर । व्यष्टि आध्यात्मिक स्तर का अर्थ है, व्यक्तिगत स्तर पर गई साधना (व्यष्टि साधना) द्वारा प्राप्त किया गया आध्यात्मिक स्तर । वर्तमान समय में समाज के लिए आध्यात्मिक प्रगति करने (समष्टि साधना) का ७० प्रतिशत जबकि व्यक्तिगत साधना (व्यष्टि साधना) का ३० प्रतिशत महत्व है ।

५० प्रतिशत (समष्टि) अथवा ६० प्रतिशत (व्यष्टि) आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किए व्यक्ति, जिनमें अहं अल्प है, वे ही स्वर्ग लोक तथा उसके आगे के लोकों में जाने हेतु सक्षम होते हैं । वे अनिष्ट शक्ति नहीं बनते । शेष मानवजाति, मृत्यु के उपरांत भुवर्लोक तथा नरक में जाती है । भुवर्लोक के अधिकांश सूक्ष्म-देहों के अनिष्ट शक्ति बनने की संभावना अत्यधिक होती है । नरक के सभी सूक्ष्म-देह अनिष्ट शक्ति ही होते हैं । वास्तव में, यदि कोई सज्जन हो किंतु उसके पास साधना से प्राप्त पर्याप्त आध्यात्मिक शक्ति न हो तो मृत्यु के उपरांत उसके अनिष्ट शक्ति बनने की संभावना होती है । ऐसा इसलिए क्योंकि उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्ति आक्रमण कर उसे अपने नियंत्रण में ले लेती है । पृथ्वी के जैसे ही ब्रह्मांड के अन्य लोकों में जिसकी लाठी उसकी भैंस ‘might is right’ होता है, अर्थात केवल शक्तिशाली ही अस्तित्व में रह सकते हैं । उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्ति (राक्षस, दानव, इत्यादि) अपनी अधिक आध्यात्मिक शक्ति से कम आध्यात्मिक शक्तिवाले सज्जनों की सूक्ष्म-देहों से उनकी इच्छा के विरुद्ध काम करवाती हैं और इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से वे उन्हें अनिष्ट शक्ति बना देती हैं । कालांतर में, सज्जन के सूक्ष्म-देह भी हार कर अनिष्ट शक्ति बन जाते हैं तथा मनुष्यों को आविष्ट कर उन्हें कष्ट देने अथवा अपनी सांसारिक इच्छाओं को पूरा करने में उन्हें भी सुख मिलने लगता है ।

इसमें सीखने की बात यह है कि यदि हम अध्यात्म के सार्वभौमिक छः सिद्धांतों के अनुसार साधना नहीं करेंगें तथा अपना अहं नहीं घटाएंगे, तो मृत्यु के पश्चात हमारे अनिष्ट शक्ति बन जाने की अत्यधिक संभावना है ।

४. कौन अनिष्ट शक्ति नहीं बनते हैं ?

वे लोग जो,

  • र्इश्वर प्राप्ति (आध्यात्मिक उन्नति का सर्वोच्च शिखर) के उद्देश्य से साधना करते हैं ।
  • मन में संस्कार तथा स्वभावदोष अल्प हों, ।
  • अहं अल्प हो ।
  • ५० प्रतिशत (समष्टि) अथवा ६० प्रतिशत (व्यष्टि) आध्यात्मिक स्तर से ऊपर हो ।

जब ऐसे व्यक्ति की मृत्यु होती है, तब वे उच्च लोकों जैसे, स्वर्ग तथा उसके आगे के लोकों में चले जाते हैं । अपनी आध्यात्मिक शक्ति तथा र्इश्वर से सुरक्षा मिलने के कारण अनिष्ट शक्ति न उन्हें प्रभावित कर सकती है तथा न ही उन्हें अपने नियंत्रण में ले सकती है ।

५. आध्यात्मिक स्तर तथा अनिष्ट शक्ति

अनिष्ट शक्ति पर आधारित पूरे अनुभाग में हमने बताया है कि उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्ति अपनी तीव्र साधना तथा तपस्या के कारण अत्यधिक आध्यात्मिक शक्ति से युक्त होते हैं । जिसके कारण उनका आध्यात्मिक स्तर उच्च होता है तथा आध्यात्मिक शक्ति भी अधिक होती है । यह विरोधाभास प्रतीत होकर किसी के मन में यह प्रश्‍न आ सकता है कि, आध्यात्मिक स्तर उच्च होने पर भी कोई अनिष्ट शक्ति कैसे बन सकता है ? ७० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के किसी संत की आध्यात्मिक शक्ति तथा उच्चतर अनिष्ट शक्ति जैसे पांचवे पाताल के सूक्ष्म-मांत्रिक की आध्यात्मिक शक्ति समान हो सकती है । तथापि उनमें मूल अंतर निम्नलिखित हैं :

  • संत अपने तन, मन, धन, अहं इत्यादि र्इश्वर को समर्पित कर उनसे एकरूप होने के उद्देश्य से साधना करते हैं ।
  • उच्चतर अनिष्ट शक्ति अथवा अत्यधिक आध्यात्मिक शक्तिवाला व्यक्ति (जो मृत्यु के पश्चात अनिष्ट शक्ति बन जाता है) पराशक्ति पाने के उद्देश्य से साधना करता है जिससे वह र्इश्वर समान बन जाए और इस प्रकार उसमें अत्यधिक अहं होता है ।

संत अपने र्इश्वरीय तत्व अथवा अंतर में विद्यमान र्इश्वर से तादात्म्य रखते हैं । दूसरी ओर सूक्ष्म-मांत्रिक को अपनी आध्यात्मिक शक्ति पर बडा घमंड होता है तथा वह अपने अहं अर्थात पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि से तादात्म्य रखता है ।