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SSRF द्वारा प्रकाशित प्रकरण-अध्ययनों (केस स्टडीस) का मूल उद्देश्य है, उन शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के विषय में पाठकों का दिशानिर्देशन करना, जिनका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक हो, तो यह ध्यान में आया है कि सामान्यतः आध्यात्मिक उपचारों का समावेश करने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं । SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को जारी रखने का परामर्श देता है । पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचार पद्धति का पालन करें ।

सारांश :

यह प्रकरण अध्ययन अनुपमा राणे का है । २० वर्ष की आयु में ही उनके सिर के सारे केश बिना किसी बाह्य कारण के अकस्मात झड गए । उन्होंने विविध प्रकार के उपचार किए; परंतु उनसे कोई लाभ नहीं हुआ । अंततः प.पू. डॉ. आठवलेजी द्वारा किए आध्यात्मिक उपायों के कारण उनकी समस्या दूर हुई । इस साक्षात्कार में उन्होंने यह सब कैसे हुआ इसके संदर्भ में बताया है ।

१. परिचय

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भारत के महानगर मुंबई की एक किशोरी ने जब अपने क्षेत्र में स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन (SSRF) के लिए दान एकत्र करना आरंभ किया तब उसे कुछ ही दिनों में अपने सिर के सारे केश झडने का अनुभव हुआ । वे साधना के एक भाग सत्सेवा के रूप में दान एकत्रित करती थीं । उस काल में यह अनुपमा की र्इश्वर पर श्रद्धा की परीक्षा ही थी; क्योंकि उसके परिवार ने उसे दान एकत्रित करने की सेवा बंद करने के लिए कहा था । यह प्रकरण अध्ययन, केवल अनुपमा कैसे आध्यात्मिक उपचारों से ठीक हुई, इसके संदर्भ में ही नहीं; अपितु साधक की र्इश्वर पर श्रद्धा की परीक्षा कैसे ली जा सकती है, इसके संदर्भ में भी है । श्रद्धा की वास्तविक परीक्षा सदैव विषम परिस्थितियों में ही होती है ।

२. अनुपमा को उसके केश झडने का बोध होना

अप्रैल २००५ में कक्षा १२ वीं की परीक्षाके उपरांत अनुपमा ने निर्णय लिया कि अपनी छुट्टी का उपयोग समाज में अध्यात्म प्रसार हेतु दान एकत्रित करने में करेगी । इसके साथ ही वह SSRF के लिए दान एकत्र कर रही थी । एक सप्ताह उपरांत अनुपमा के ध्यान में आया कि उनके सिर के अलग-अलग भागों से केश झडने लगे हैं । आगामी दो दिनों में केश अत्यधिक झडने लगे ।

‘‘ मैं विशेष चिंतित नहीं थी; परंतु मेरे केश झडने के कारण मेरी मां पर इसका बुरा प्रभाव पडा । वास्तव में वे भी साधना करती हैं; किंतु मेरे केश झडने के कारण वे लडखडा गईं । मां को लगता था कि मेरी साधना के कारण ही मेरे केश झड रहे हैं । उनके लिए स्पष्ट था कि मेरे केश झडने तथा दान एकत्रित करने के मध्य प्रत्यक्ष संबंध था । वे मुझे दान एकत्रित करने की साधना के लिए जाने हेतु अनुमति नहीं देतीं । यद्यपि मैंने उनके अनुभव को साझा नहीं किया । मैं नहीं जानती थी कि मैं उन्हें कैसे समझाऊं ।’’

SSRF की एक अन्य साधिका अंजली ने अनुपमा की मां को उसकी साधना जारी रखने के लिए मना लिया । अनुपमा की मां इच्छा न होते हुए भी मान गईं । दिन-प्रतिदिन उसके केश के गुच्छे झडने के कारण अनुपमा के माता-पिता उसे विभिन्न चिकित्सकों के पास ले गए । केश झडना प्रारंभ होने के दो सप्ताह में ही सिर पर गंजा भाग दिखने लगा । उसके सिरपर घुंघराले केश का स्मरण करानेवाली कुछ लटें ही शेष रह गई थीं । चिकित्सकों द्वारा दी गई औषधियों का सेवन करने के उपरांत भी केश नहीं उगे । उसके चाचाजी ने अपने ग्राम की पारंपरिक औषधियां भी दीं; परंतु उनका भी कोई लाभ नहीं हुआ । नीचे दिया गया चित्र अनुपमा की स्थिति को स्पष्ट दर्शाता है ।

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३. परिवार तथा मित्रों द्वारा साधना बंद करने हेतु दबाव दिया जाना

एक रुढिवादी भारतीय परिवार में, एक युवा लडकी के साथ ऐसा होना उसका जीवन नष्ट होने के समान था । उसके माता-पिता अत्यंत चिंतित हो गए ।

‘‘ मेरे माता-पिता चिंता से रात को सो नहीं पाते थे । मेरे पिताजी रोते तथा मेरी मां अपने दैनिक कार्यों में ध्यान नहीं दे पाती थी । वे निरंतर मेरी समस्या के संदर्भ में सोचते रहते थे ।

मेरी साधना के लिए मां का विरोध बढने लगा तथा उन्होंने मुझसे स्पष्ट कहा कि ‘‘जबतक तुम्हारे केश पुनः नहीं उगते, मैं साधना नहीं करने दूंगी ! जब तुम भगवान की सेवा कर रही हो तो क्या उन्हें समझ में नहीं आता कि उन्हें तुम्हारे केश पुनः लाने चाहिए ?’’

पिताजी मेरे लिए अनेक नवीन औषधियां अथवा अन्य वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति ढूंढते रहते ।

घर के इस दबाव के साथ, जब अनुपमा साधना के रूप में दान एकत्र करने जाती, उस समय उसे, मिलनेवाले अनेक लोगोंके प्रश्नों का सामना करना पडता था ।

‘‘ जिनके पास भी मैं जाती सभी अर्पणकर्ता मुझसे पूछते थे कि ‘‘तुम्हारे सर्व केश झड गए हैं, फिर भी तुम घरके बाहर कैसे निकलती हो ?’’ तुम प्रथम अपना ध्यान रखो, तत्पश्‍चात चाहे जितनी साधना करना । वे मुझे चिकित्सक, औषधियां, चिकित्सा पद्धतियां भी सुझाते थे; परंतु मुझे अपने गुरु की कृपा पर पूर्ण विश्‍वास था । ऐसे कठिन प्रसंगमें लोगों के अनगिनत प्रश्नों के उत्तर र्इश्वर ही मुझे सुझाते थे ।’’

इसके उपरांत मेरे सगे-संबंधी तथा पडोसी इसके संदर्भ में बातें सुनाने लगे ।

‘‘मुझे र्इश्वर की सेवा करने की साधना से परावृत कर, घर में रहने के लिए मेरे सगे-संबंधी तथा पडोसी मेरे माता-पिता को प्रेरित करते थे । इससे बाहर जाकर सत्सेवा करने हेतु मेरे अभिभावकों का विरोध और बढ गया । जब मैं उन्हें इसके लिए नहीं मना सकी, तो मैं मानसिक रूप से त्रस्त हो गई । केवल प्रार्थना के फलस्वरूप मैं उन्हें समझा सकी और साधना चालू रख पाई ।’’

इस सामाजिक कठिन परीक्षा का भी अनुपमा पर कोई प्रभाव नहीं हुआ तथा र्इश्वर पर दृढ श्रद्धा के साथ ही साधना के प्रति कृतसंकल्प रही ।

‘‘मेरे केश पुनः आएं, ऐसी अपेक्षा मुझे कभी भी र्इश्वर से नहीं हुई । मैं रोती और र्इश्वर से क्षमा मांगती; क्योंकि मुझे लगता था कि मेरे कारण लोग उन्हें दोष दे रहे हैं । मैं अपनी मां के भावनात्मक उतार-चढावों के लिए मैं उनसे क्षमा मांगती । मैं मां को निरंतर समझाती रहती कि ‘मेरी समस्याके कारण अपनी श्रद्धा न्यून मत करो तथा साधना करना मत छोडो ।

मुझे गुरुदेवजी का आस्तत्व निरंतर अनुभव होता था । मैं सहज रूप से ही समझती थी तथा स्वीकार करती कि सब कुछ उनकी इच्छा के अनुसार ही होता है । मैं माता-पिता से कहती कि ‘मुझमें मत फंसिए । मेरी समस्या मेरे प्रारब्ध के कारण है, इसलिए मुझे भोगनी ही पडेगी ।’ इन सर्व घटनाओं का मेरी साधनापर पर कोई प्रभाव नहीं हुआ । र्इश्वर की कृपा से साधना निरंतर होती रही ।’’

अन्य साधक उसके केश की स्थिति के संदर्भ में पूछते । केश झडने के उपरांत भी दान एकत्रित करने हेतु बाहर जाने की सत्सेवा करने हेतु साधक उन्हें श्रेय देते । अनुपमा सारा श्रेय गुरुदेव को देती; क्योंकि उसे लगता कि केवल उनकी कृपा के कारण ही वह स्थिर तथा शांत रह पाईं ।

४. अनुपमा के केश झडने का निदान

संपूर्ण केश झड जाने पर वह एस.एस. आर. एफ. के सूक्ष्म ज्ञानविषयक विभाग के विकसित छठवीं इंद्रियवाले साधक श्री. रवींद्र साळोखे से मिली । उन्होंने बताया कि इस समस्या का मूल कारण अनिष्ट शक्ति (राक्षस, भूत, प्रेत इत्यादि) थी । अनिष्ट शक्ति (राक्षस, भूत, प्रेत इत्यादि) उसे साधना करने से रोकने हेतु प्रयास कर रही थी ।

‘‘ इस काल में मैं चिकित्सकों द्वारा बताई गई सभी पारंपरिक औषधियां निरंतर ले रही थी; परंतु उसका तनिक भी परिणाम नहीं हो रहा था ।

इसलिए आध्यात्मिक निदान के उपरांत, मैंने आध्यात्मिक उपचार जैसे विभूति तथा तीर्थ मस्तकपर लगाना, नमक-पानी के उपाय, नामजप, प्रार्थना आदि आरंभ किए । इन उपचारों के कारण मेरे आसपास के लोगों की निरंतर कडवी बातों से उत्पन्न मानसिक आस्थरता न्यून होने में सहायता मिलती थी । पिताजी कभी-कभी मुझे कुलपुरोहित के पास ले जाते थे । उनके पास जाने में मेरी श्रद्धा नहीं थी; किंतु पिताजी को प्रसन्न करने के लिए जाती थी । उस समय भी मुझे दृढतापूर्वक ऐसा लगता था कि गुरुदेवजी ही मेरी चिंता दूर करेंगे ।’’

४.१. सूक्ष्मस्तर पर केश झडने हेतु मांत्रिक द्वारा कृत प्रक्रिया

नीचे दिए गए चित्र में एक सामान्य सिर व केशों की आंतरिक रचना को दर्शाया गया है ।

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जब अनिष्ट शक्ति केश झडना आरंभ करने हेतु सूक्ष्म-प्रक्रिया करती है, तब सिर का अंतर भाग ऐसा दिखता है । यह सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र अति विकसित छठवीं इंद्रिय से संपन्न पूजनीया श्रीमती अंजली गाडगीळजी को प्राप्त जानकारी से बनाया है, जब वे अनुपमा के केश झडने के प्रकरण का निदान कर रही थीं ।

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सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित उपरोक्त चित्र का विवरण तथा प्रक्रिया इस प्रकार है :

१. काली आकृति (यंत्र) : सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक सामान्यतः सूक्ष्म काली आकृति डाल कर आरंभ करते हैं । यह आकृति उसकी इच्छानुसार काली शक्ति ग्रहण तथा प्रक्षेपित करने का कार्य करती है ।

२. काले गैस के गुब्बारे : इसके उपरांत वह काली आकृति के चारों ओर काले गैस के गुब्बारे रखता है । गुब्बारे काली आकृति की सुरक्षा करने का कार्य करता है । काले गैस के गुब्बारे से घिरी काली आकृति सूक्ष्म स्तरीय-मांत्रिक का स्थान निर्मित करती है ।

काली आकृति की गतिविधि अपने चारों ओर घिरे काली गैस में तरंगें निर्मित करती है, जिससे सिर की त्वचा के भीतर उसका संचरण सुगम हो जाता है ।

३ अ. प्रकाशमान काली तरंगें ऊपर की दिशा में गमन करती हैं । वे केश टूटने का कारण बनती हैं ।

३ आ. प्रकाशमान काली तरंगें नीचे की दिशा में गमन करती हैं । वे केश दुर्बल करती हैं ।

४. परस्पर जुडा काला प्रवाह : काली शक्ति के प्रवाह का परस्पर यह जाल केशों के टूटने की प्रक्रिया को गति देता है । काली आकृतियों के परस्पर जुडे होने के कारण सूक्ष्म-स्तरीय मांत्रिक की न्यूनतम शक्ति प्रयुक्त होती है; क्योंकि सभी को गति में लाने हेतु उसे केवल एक काली आकृति को गतिमान करना होता है । पूर्ण रूप से केश झडने की कालावधि आकृति की गति पर निर्भर करती है ।

  • तीव्र – एक सप्ताह के भीतर सारे केश झडना
  • मध्यम – इसमें तीन सप्ताह लगते हैं तथा
  • निम्न – चार से छः सप्ताह के भीतर सारे केश झडना

५. काली तरंगों का जाल : काली तरंगें सिर की त्वचा के ऊपर एक जाल बनाती है जिससे केश झडने की प्रक्रिया को गति मिलती है ।

६. काली तरंगें केश के अग्र भाग से भी प्रेषित होती हैं ।

५. आध्यात्मिक उपचार

कुछ समय के उपरांत अनुपमा को पता चला कि एस.एस.आ.एफ.के मीरज सेवाकेंद्र में साधकत्ववृद्धि कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है । उसे उस कार्यशाला में सम्मिलित होने की तीव्र इच्छा थी । ऐसा हुआ कि एक साधक जिसका कार्यशाला में सम्मिलित होने का नियोजन हुआ था, वे किसी महत्वपूर्ण आध्यात्मिक कार्य के कारण कार्यशाला में नहीं जा पाए एवं अनुपमा का नाम उनके स्थान पर सम्मिलित कर लिया गया । अनुपमा अत्यधिक प्रसन्न थी और मानसिक रूप से गुरुदेव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने लगी ।

अगली बाधा अपने माता-पिता से कार्यशाला में जाने हेतु अनुमति लेने की थी ।

५.१ एस.एस.आ.एफ.के मीरज सेवाकेंद्र में जाने हेतु अनुपमा का तैयार होना

‘‘मेरे माता-पिता ने मुझे कार्यशाला में जाने की अनुमति नहीं दी । मैं रोने लगी । मैंने प.पू. डॉक्टरजी से प्रार्थना की । मुझे उनके शब्द सुनाई दिए । वे धीरे से बोले, ‘तुम क्यों रोती हो ? ऐसी प्रार्थना करो कि माता-पिता के मन तथा बुद्धि पर आया काली शक्ति का आवरण नष्ट हो जाए ।’ मैंने उत्कंठापूर्वक प्रार्थना की, तत्काल माता-पिता ने मुझे कार्यशाला में सम्मिलित होने की अनुमति दी । उस समय उन्होंने मुझे अपने साथ औषधियां रखने तथा उनका नियमित सेवन करने का आग्रह किया । ’’

अगली बाधा अनुपमा के लिए अगले १५ दिनों की औषधियों प्राप्त करना था । औषधि विव्रेता के पास उसके संग्रह में अनुपमा के लिए आवश्यक औषधि नहीं थी । साथ ही, अगला दिन रविवार था, जब सारी दुकानें बंद थीं । कार्यशाला में जाने से पूर्व अनुपमा को औषधि मिलने की आशा अत्यल्प थी । औषधि विव्रेता ने चमत्कारिक रूप से अगली सुबह रविवार होने पर भी औषधि देने के लिए हामी भर दी । उसने केवल अनुपमा के लिए दुकान खोली । अंतिमतः औषधि मिलने के कारण, उसके पिता ने आध्यात्मिक कार्यशाला तथा साधकत्ववृद्धि शिविर में जाने हेतु उसे अनुमति दे दी ।

५.२ मीरज में साधकत्ववृद्धि कार्यशाला

‘‘इस कार्यशाला से दो माह पूर्व मेरे सिर पर केश की कुछ लटें ही शेष थीं । कार्यशाला के २-३ दिनों में ही मुझे स्वयं में अत्यधिक परिवर्तन दिखा । दो माह पश्‍चात पहली बार मुझे अपने केशरहित सिर पर असंख्य छोटे-छोटे केश दिखने लगे । मैंने तुरंत गुरुदेवजी के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त की । मुझे जब औषधि लेने अथवा सिर पर तीर्थ लगाने का विस्मरण होता था, तब कार्यशाला में सहभागी अन्य साधक मुझे उसका स्मरण करवाते थे ।

कार्यशाला के अंतिम दिन में प.पू. डॉक्टरजी ने आध्यात्मिक उपचार सत्र आरंभ किए । अनुपमा थोडी डर गई; क्योंकि पिछली बार वर्ष २००३ में जब प.पू. डॉक्टरजी ने आध्यात्मिक उपचार सत्र में वह सम्मिलित हुई थी, तब उसके भीतर विद्यमान अनिष्ट शक्ति प्रकट हो गई थी । प.पू. डॉक्टरजी के नेत्रों में देखते ही उसमें विद्यमान मांत्रिक प्रकट हो गया । इससे उसकी अस्वस्थता बढ गई ।

ऐसा इसलिए हुआ; क्योंकि अनिष्ट शक्ति तम प्रधान होती है तथा वह किसी संत अथवा सात्त्विक वातावरण से आनेवाली उच्च सात्त्विकता को सहन नहीं कर सकती । जैसे बर्फ आग की उपस्थिति में पिघलने लगता है, यहां भी वैसे ही होता है । इसके संदर्भ में हमने अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच इत्यादि) के खंड में विस्तृत विवरण दिया है । संदर्भ हेतु देखें : भूतावेश का प्रकटीकरण २९.५.२००५ को सायं. ६ बजे प.पू. डॉक्टरजी ने उपाय करना प्रारंभ किया । उनके नेत्रों में देखने पर उसे कष्ट नहीं हुआ । उस सत्र के घटनाचक्र का विवरण अनुपमा के शब्दों में इस प्रकार हैं ।

मैं प.पू. डॉक्टरजीके चरणों पर ध्यान केंद्रित कर नामजप कर रही थी । उस समय मुझे अपने सिर में जडताका अनुभव होने लगी । नेत्रोंसे अश्रु प्रवाहित होने लगे । प.पू. डॉक्टरजी के चरणों के अंगूठे* की ओर देखते समय मुझे कष्ट होने लगा । कुछ समय उपरांत मेरे सिर की जडता बढ गई । ऐसा अनुभव होने लगा कि मेरा सिर खिंच रहा है । मुझे अपने माथे के केश की लटें भूमि पर गिरती दिखीं तथा लगा जैसे कोई मुझे हिला रहा है । प.पू. डॉक्टर जी के उपाय सायं. ६ बजे प्रारंभ हुए । रात्रि ८ बजे हमें वापसी की यात्राके लिए वाहन पकडना था; अतः आश्रम से निकलना अपरिहार्य था । ७.४५ बजे से सहसाधक मुझे हिलाकर जागृतावस्थामें लाने के प्रयास कर रहे थे; परंतु मुझमें विद्यमान मांत्रिक १ घंटेसे अधिक समय से प्रकट था । इसलिए मुझे पूर्वस्थिति में आने में कठिनाई हो रही थी । व मेरे जाने का समय हुआ तब उपचार का आधा सत्र शेष था । प.पू. डॉक्टरजी के चरणों में मैं कृतज्ञता व्यक्त करके उठी । प्रकटीकरण की अवस्थासे पूर्वस्थिति में आते समय ३ मिनट तक मेरी दृष्टि धूमिल हो गई । कुछ समय उपरांत मुझे स्पष्ट दिखने लगा । जब मैं निकल रही थी तब सहसाधक बोले, ‘‘गुरुदेव तुम्हारे साथ ही हैं, तुम भयभीत न हो । ऐसी प्रार्थना करो कि गुरुदेवजी के चल रहे उपचार सत्रों का तुम्हें लाभ हो ।’’

* संतोंके चरणों के अंगूठे से चैतन्य सर्वाधिक मात्रामें प्रक्षेपित होता है ।

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५.३ घर के लिए यात्रा करते समय भी केश झडने पर आध्यात्मिक उपचार होते रहना

‘‘यात्रा में भी सिर भारी लग रहा था । वेदना के कारण सिर फटा जा रहा था तथा उसमें से भाप निकल रही थी । मुंबई के लिए बस से यात्रा करते समय मेरा दाहिना हाथ मुड गया और ऐसा अनुभव हो रहा था कि गुरुदेवजी सूक्ष्मरूप से मुझ पर उपाय कर रहे हैं । रात ११ बजे के उपरांत मुझे कुछ ठीक लगने लगा ।’’

सिर में तीव्र पीडा होना तथा सिर से भाप निकलना, दाहिने हाथ का मुड जाना, ये इस बात के लक्षण थे कि परम पूज्य डॉक्टरजी के उपचार सत्रोंका लाभ हो रहा था । यह सब घर वापस आने हेतु बस पकडने के लिए आधे उपचार सत्र को छोडकर आने पर भी हो रहा था । ये कष्ट वास्तव में अनुपमा में विद्यमान मांत्रिक को हो रहा था ।

जब उसके माता-पिता ने उसके सिर पर नवीन केश देखे तो व अत्यंत आनंदित हुए । मुंबई पहुंचने के उपरांत दो दिनों तक अनुपमा के सिर में संवेदना होती रही । उसने प्रवचन आयोजन करने तथा दान एकत्रित करने की सेवा को जारी रखी ।

 ‘‘२ सप्ताह में मेरे सिर पर नवीन पक्के केश उगने लगे । माता-पिता सबसे कहने लगे कि ‘‘र्इश्वर की कृपा से हमारी पुत्री के केश वापस आ गए ।’’

५.४ परम पूज्य डॉक्टरजी द्वारा किए गए आध्यात्मिक उपचार ने कैसे कार्य किए ?

परम पूज्य डॉक्टरजी के चरणों से सगुण तथा निर्गुण चैतन्य प्रक्षेपित हो रहा था; क्योंकि वे एक सर्वोच्च स्तर के संत हैं । इन तरंगों के कारण केश की जडों के चारों ओर काली आकृति तथा काले गैस के गुब्बारे नष्ट हो गए । इस कारण उनसे प्रक्षेपित होनेवाली काली तरंगों से निर्मित काला जाल नष्ट हो गया । तदुपरांत केश की जडों में चैतन्य का प्रवाह हुआ । इससे वे पुनर्जीवित हो गए । साथ ही केशों में वृद्धि हेतु अनुकूल तथा पूरक वातावरण निर्मित हुआ । केश वृद्धि उद्दीप्त हुई और अनुपमा के केश अल्प कालावधि में ही आ गए ।

६. स्थिर होते जाना

अनुपमा का जीवन पुनः सामान्य हो गया । वर्ष २००५ में उसने होटल मैनेजमेंट में स्नातक की पढाई हेतु अपना नामांकन करवाया । उसकी साधना नियमित हो रही है । उसके केश पूर्ववत हो गए हैं । इस लेख के आरंभ में दिया गया उनका छायाचित्र आध्यात्मिक उपचारों के उपरांत केश पुनः उगने के बाद के हैं । इस अनुभूति के कारण उसकी र्इश्वर के प्रति श्रद्धा दृढ हो गई, इसलिए वह कृतज्ञ है ।’

हमारी आध्यात्मिक यात्रा में, हम सभी के जीवन में बाधाएं आती हैं, जो हमारी श्रद्धा की परीक्षा लेतीं हैं । कठिन परिस्थितियों में भी साधक दृढ कैसे रह सकता है, अनुपमा का प्रकरण इसी का एक उदाहरण है ।