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१. उपहार देने एवं लेने का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य – प्रस्तावना

उपहार देने एवं प्राप्त करने में एक प्रकार से हम सभी चाहे किसी भी संस्कृति से होंलिप्त हैं। । संभवतः हमने जीवन भर उपहार लिए एवं प्राप्त किए हो, तब भी हो सकता है कि हम उपहार देने एवं प्राप्त करने के आध्यात्मिक प्रभाव को पूर्णतया नहीं जानते । इस लेख में, हमने उपहार देने एवं प्राप्त करने के विभिन्न पहलुओं का आध्यात्मिक दृष्टिकोण से वर्णन किया है। ।

२. जब हम उपहार देते अथवा लेते हैं तब आध्यात्मिक स्तर पर क्या होता है ?    

देने के कृत्य से अन्यों का विचार करने में सहायता मिलती है । जब हम अन्यों के लिए सोचते हैं एवं उन्हें स्वयं से पहले रखते हैं, उस समय हम स्वयं संबंधी अपने विचार एवं इससे उत्पन्न अहं को भी घटाते हैं ऐसा विशेष रूप से तब होता है जब देने का यह कृत्य अपेक्षा के बिना किया गया हो । उसी प्रकार, जब हम उपहारों को चाहे हम उसे पसंद करते हों अथवा नहीं, कृतज्ञता के साथ स्वीकार करते हैं, तब हम अपने विचारों को न्यून करते हैं एवं फलस्वरूप हमारा अहं भी क्षीण होता है । यह उपहार देने एवं प्राप्त करने का आध्यात्मिक लाभ है ।

यद्यपि, कर्म के आध्यात्मिक सिद्धांत के अनुसार, जब हम उपहार देते अथवा स्वीकार करते हैं :

  • हम अन्य व्यक्ति के साथ या लेन-देन का हिसाब निर्माण कर रहे होते हैं अथवा उसे पूरा कर रहे होते हैं ।
  • उपहार के प्रकार एवं उसके देने के पीछे के उद्देश्य के अनुसार हम पुण्य अथवा पापार्जन करते हैं। ।

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कर्म के आध्यात्मिक सिद्धांत प्रारब्ध एवं लेन-देन के नियम इस लेख में वर्णित है ।

‘लेन देन’ का निर्माण, चाहे सकारात्मक हो अथवा नकारात्मक एवं पुण्यकारक हो या पापकारक, यह हमें जन्म एवं मृत्यु के चक्र में ही उलझाए रखता है । इसलिए, अन्य शब्दों में यदि कोई उपहार देकर पुण्यार्जन करता है, तो उसे इस जन्म अथवा अगले जन्म में उस व्यक्ति से उसी मात्रा में सुख प्राप्त करना ही पडता है। । जबतक हम अपने सभी संचित कर्म पूर्ण नहीं करते, तबतक हम जन्म एवं मृत्यु के चक्र से मुक्त नहीं हो सकते एवं अपने जीवन के वास्तिवक उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकते ।

२.१ क्या यह संभव है कि उपहार देते अथवा प्राप्त करते समय लेन-देन का हिसाब अथवा पुण्य/पाप निर्माण न हों ?

हां, उपहारों के आदान-प्रदान से लेन-देन अथवा पुण्य/पाप की निर्मिति न हो यह संभव है ।

  • हम सभी में ईश्वरीय तत्व होता है, जिसे आत्मा कहते हैं । जब हम इस अनुभूति में मग्न हो जाते हैं एवं अपने भीतर ईश्वर को तत्परता से अनुभव करते हैं, तब इस अवस्था में हमारे द्वारा किए गए किसी भी कार्य से लेन-देन अथवा पुण्य/पाप की निर्मिति नहीं होती ।
  • यदि हमारा ‘नामजप अखंड एवं गुणात्मक रूप से उच्चतम स्तर का हो रहा हो तो पुनः, हमारे द्वारा किए गए किसी भी कार्य से लेन-देन अथवा पुण्य/पाप की निर्मिति नहीं होती ।
  • जब हम इस भाव के साथ उपहार देते अथवा प्राप्त करते हैं कि हमारे भीतर के ईश्वर ही उपहार प्रदान अथवा प्राप्त कर रहे हैं तथा वे ही उपहार प्राप्तकर्ता / दाता हैं ।
  • जब हम बिना अपेक्षा के उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं ।

चूंकि व्यावहारिक स्तर पर, हम सभी लोगों के लिए उपर्युक्त बातें प्रत्येक समय अनुभव करना बहुत कठिन है । इसलिए, प्रायः सभी स्थितियों में जब हम उपहार प्रदान/प्राप्त करते हैं तो लेन-देन का हिसाब निर्मित अथवा पूर्ण होता है। ।

३. भेंट करने के लिए किस प्रकार के उपहार का चयन करना चाहिए ?

सामाजिक दायित्वों के कारण, यह ज्ञात होते हुए भी की लेन -देन का हिसाब निर्मित होता है एवं पुण्यार्जन/पापार्जन होता है, हमें उपहार देने पडते हैं। । उपहारों का चयन करते समय आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से, निम्नलिखित कुछ पहलुओं को हम ध्यान में रख सकते हैं। :

  • ज्ञान का उपहार: ऐसे उपहार जो अध्यात्म एवं साधना का ज्ञान प्रदान करनेवाले हों, वे अपने प्रियजनों को दिए जानेवाले उच्चतम स्तर के उपहार होते । । (यह महत्वपूर्ण है कि वह ज्ञान, साधना के ६ मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार हों)। । निम्न सारणी अन्य प्रकार के उपहारों के साथ इस प्रकार के उपहार के महत्व की तुलना दर्शाती है ।
    उपहार के प्रकार प्राप्तकर्ता के लिए समय के संदर्भ में महत्व
    पुष्प कुछ घंटें
    खाद्य पदार्थ (चाकलेट, केक आदि) कुछ दिन
    वस्त्र कुछ माह
    इलेक्ट्रोनिक उपकरण कुछ वर्ष
    आभूषण अनेक वर्ष
    आध्यात्मिक ज्ञान युक्त पुस्तक इस जन्म एवं आगामी जन्मों तक
  • सात्त्विक उपहार विरुद्ध असात्त्विक उपहार : सात्त्विक उपहार देना सर्वदा सबसे उत्तम है;क्योंकि यह व्यक्ति की सात्विकता में वृद्धि करके आध्यात्मिक स्तर पर व्यक्ति की सहायता करता है । सात्त्विक उपहार हैं अध्यात्मविषयक पुस्तकें, आध्यात्मिक उपचार के साधन जैसे SSRF की अगरबत्तियां, सात्त्विक पदार्थ से निर्मित जप माला, ईश्वर के नामजप की चक्रिका (CD) इत्यादि । सात्त्विक उपहार प्रायः व्यक्ति की अंतर्मुखता बढाते हैं जो आध्यात्मिक उन्नति के लिए आवश्यक है। । राजसिक एवं तामसिक उपहार प्रायः व्यक्ति का ध्यान बाह्य जगत पर केंद्रित करने में वृद्धि करते हैं एवं उसे आध्यात्मिक उन्नति के विचार से भी दूर रखते हैं।

यहांतक कि उपहार हेतु प्रयोग आनेवाले वेष्टन (wrapping) एवं सजावट उपहार की सात्त्विक अथवा तामसिक प्रकृति में वृद्धि कर सकते हैं। । उदाहरण के लिए:

  • वेष्टन (wrapping paper) के रंग के संबंध में
    • पीले, श्वेत, नीले रंग अधिक सात्त्विक हैं ।
    • लाल, गुलाबी एवं भूरे राजसिक
    • हरे एवं लाल रंग रज-तमप्रधान
    • काले एवं धूसर तामसिकहैं
  • प्रयुक्त कागज की रचना के संबंध में, कृत्रिम सामग्रियों की तुलना में प्राकृतिक सामग्रियां अधिक सात्त्विक होती हैं।
  • सजावट के संबंध में, नीचे दिए गए चित्र में हम आपको उपहार पर प्रयोग होनेवाली सजावटों के दो नमूने दिखाते हैं । प्रत्येक पर एक मिनट के लिए दृष्टि डालें एवं देखें कि आपको कैसा अनुभव होता है और कौनसी सजावट आपको अधिक सात्त्विक लगती है । उत्तर इस लेख के अंत में दिया हुआ है।

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कृपया संदर्भ हेतु खंड – तीन सूक्ष्म मूलभूत तत्व एवं हमारी जीवन शैली  देखें

४. लेन देन के हिसाब की मात्रा क्या निर्धारित करती है ?

इसका मुख्य पहलू यह है कि उपहार देनेवाला व्यक्ति कितने प्रतिशत धन प्राप्तकर्ता को प्रदान करता है, इसी से उनके मध्य निर्मित हुए लेन देन की मात्रा निर्धारित होती है ।

निम्न रेखाचित्र यह वर्णन करता है कि, किसी व्यक्ति के द्वारा किसी अन्य को उपहारस्वरूप दिए गए धन की मात्रा से उनके मध्य लेन-देन की मात्रा का निर्धारण किस प्रकार होता है ।

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प्रायः हम सभी विकसित छठवीं इंद्रिय से युक्त नहीं होते । इस कारण हम कभी नहीं जानते कि हम कोर्इ नया लेन-देन निर्माण कर रहे हैं अथवा पुराना पूरा कर रहे हैं । अतः हमें पुण्य अथवा पाप के पहलुओं पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है । पुर्ण्याजन एवं पार्पाजन दो महत्वपूर्ण पहलुओं पर निर्भर करते है :

उपहार के प्रकार के अनुसार, जैसे सात्विक, राजसिक अथवा तामसिक, उपहार देनेवाला व्यक्ति पुण्य अथवा पार्पाजन करता है । यह उपहार देने से उत्पन्न होनेवाले लेन -देन   से अलग है।

१. उपहार देने का उद्देश्य : यदि उपहार देने का उद्देश्य अन्य व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति है, तो कोई लेन-देन निर्माण नहीं होता । इस प्रकार के उपहार का उदाहरण अध्यात्म विषयक पुस्तक होगी जो साधना के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुरूप हो, जो प्रत्यक्ष आध्यत्मिक उन्नति में योगदान देती है । किसी उद्देश्य से दिए गए उपहार का परिणाम लेन देन का निर्माण अथवा उसके भुगतान के रूप में होगा । यहां, कोई पुण्य अथवा पार्पाजन नहीं होता । यद्यपि, ऐसे उपहार भेंट कर व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से उन्नत होगा ।

२. दिए हुए उपहार के प्रकार :

सात्त्विक उपहार जैसे देवता का सात्त्विक चित्र जो आध्यात्मिक उन्नति में आवश्यक योगदान नहीं करता, इसका परिणाम पुण्यार्जन के स्वरूप में होगा । ऐसा इसलिए क्योंकि अध्यात्मविषयक पुस्तक के समान, देवता का चित्र व्यक्ति को साधना एवं तत्पश्चात उसकी आध्यात्मिक उन्नति होने के लिए अगले चरणों की मार्गदर्शन नहीं कर सकता । तुलनात्मक स्तर पर, यह +३० होगा ।

राजसिक उपहार जैसे वस्त्र, इत्र, उपन्यास, इलेक्ट्रोनिक खेल, आदि से पापार्जन होता है । तुलनात्मक स्तर पर, यह -१० पापार्जन होगा । तामसिक उपहार जैसे मदिरा(शराब), तेज़ स्वर में संगीत (हेवी मेटल म्यूजिक) आदि से पापार्जन होगा । तुलनात्मक स्तर पर, यह -३० पापार्जन होगा ।

५. सर्वोच्च उपहार क्या है ?

सर्वोच्च उपहार, एक व्यक्ति को ईश्वर द्वारा दिया जा सकता है । यह जीवन का उपहार है, जिसमें व्यक्ति साधना (छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार) करने का अवसर प्राप्त करता है एवं ईश्वर की कृपा संपादित करता है ।

साधक के दृष्टिकोण से, गुरु की कृपा सर्वोच्च उपहार है, यह उसे ईश्वर प्राप्ति के पथ पर आगे ले जाती है जो उसके जीवन का मूल उद्देश्य है ।

सजावट के गांठ (बो) पर किए गए सूक्ष्म-प्रयोग का उत्तर : सजावट‘ अ’ सजावट ‘आ’ से अधिक सात्त्विक है ।