अस्थियां (चिता-भस्म) विसर्जित करने का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य क्या है ?

सारांश

अपने प्रियजनों का अग्निसंस्कार करने के उपरांत उनकी अस्थियां (चिता-भस्म)हम किस प्रकार विसर्जित करते हैं, इस बात से उनके मृत्योपरांत जीवन में उन्हें लाभ भी हो सकता है अथवा उनकी आगे की यात्रा में बाधा भी आ सकती है । आध्यात्मिक शोध द्वारा ज्ञात हुआ है कि केवल जल में अस्थि-विसर्जन करने से ही हमारे पूर्वजों को लाभ होता है । अस्थियां इकट्ठा करने से लेकर उसे विसर्जित करनेतक की उचित पद्धतियों का आध्यात्मिक दृष्टिकोण इस लेख में स्पष्ट किया है ।

१. प्रस्तावना

आजकल अंतिम संस्कार के रूप में शव गाडने (दफनाने)की तुलना में अग्निसंस्कार करने का प्रचलन बढा है । चिता अथवा विद्युतदाहिनी में किए जानेवाले अग्निसंस्कारों से देह पूर्णतः नष्ट नहीं होती । इसके अवशेष को अस्थियां कहते हैं, जो परिजनों को एक कलश में दी जाती है । अस्थियां प्राप्त करने से लेकर उसे विसर्जित करने की संपूर्ण प्रक्रिया आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । हम कौनसी पद्धति अपनाते हैं, इस बात से यह निर्धारित होता है कि हम अपने प्रियजनों के मृत्योपरांत जीवन की आगे की यात्रा में सहायता करते हैं अथवा उन्हें भूलोक से बद्ध करने के उत्तरदायी होते हैं; तब भी सामान्यतया जो परिजन अस्थियां प्राप्त करते हैं, वे अस्थी-विसर्जन की उचित पद्धति से अनभिज्ञ होते हैं ।

अग्निसंस्कार, गाडना तथा गिद्धों द्वारा शरीर खाया जाना आदि का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य क्या है ? इस लेख में हमने स्पष्ट किया है कि किस प्रकार अनिष्ट शक्तियां मृतदेह पर आक्रमण कर सूक्ष्म-देह की मृत्योत्तर प्रगति में बाधा डाल सकती हैं । अग्निसंस्कारों के उपरांत बची अस्थियां व्यक्ति का अंतिम अवशेष होती है । इसलिए अस्थियों के स्पंदन मृत पूर्वज के स्पंदनों से मेल खाते हैं ।

हम जानते हैं कि पहचाना न जानेवाला अपघटित (decomposed) मृतदेह को भी चिकित्सकीय दृष्टि से डीएनए जांच जैसी तकनीक (techniques) से पहचाना जा सकता है; क्योंकि दांत अथवा केश का एक छोटा सा अवशेष भी व्यक्ति से यथार्थत: मेल खाता है । इसी प्रकार सूक्ष्म तथा बुद्धि अगम्य स्तर पर अस्थियों में विद्यमान मृतदेह के अवशेष के एक छोटे से कण के स्पंदन तथा तरंगें भी व्यक्ति के स्पंदन तथा तरंगों से मेल खाती हैं ।

ये स्पंदन सामान्यतया नकारात्मक स्वरूप के होते हैं । ५०% जनसंख्या का आध्यात्मिक स्तर ३०% से कम होने के कारण उनके देह से प्रक्षेपित स्पंदन सूक्ष्म स्तर पर रज-तम युक्त होते हैं । साथ ही १०० % जनसंख्या के अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) से प्रभावित होने के कारण देह तथा अस्थियों से प्रक्षेपित स्पंदन तामसिक स्वरूप के होते हैं । परिणामस्वरूप सूक्ष्म स्तर पर वे हमारे लिए कष्टदायक होते हैं ।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से त्रिगुण; सत्त्व, रज, तम – इस लेखका संदर्भ लें ।

समान स्पंदनों के कारण मृत पूर्वज और उसकी अस्थियों के मध्य एक सूक्ष्म बंधन होता है । इन स्पंदनों तथा सूक्ष्म बंधन का लाभ उठाकर अनिष्ट शक्तियां सूक्ष्मदेह की मृत्योत्तर यात्रा में बाधाएं उत्पन्न करती हैं । मृत्योत्तर यात्रा में बाधा उत्पन्न कर अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) सूक्ष्म देह को पकडकर अंतत: उसे अपने नियंत्रण में ले लेती हैं । ऐसा करने से अनिष्ट शक्तियों के लिए अपनी इच्छानुसार सूक्ष्मदेह को कष्ट देना अथवा उसको दूसरों को कष्ट देने जैसे विकृत कृत्यों हेतु विवश करना संभव होता है । अधिकतर ऐसे प्रसंगों में पूर्वज पृथ्वी से बंधे होने के कारण वे अपने ही वंशजों को कष्ट देने लगते हैं ।

मेरे मृत प्रियजन और अन्य पूर्वज मुझे कष्ट क्यों देना चाहते हैं ?– इस लेख का संदर्भ लें ।

अग्निसंस्कार के उपरांत अस्थियां प्राप्त करने से लेकर उसे विसर्जित करने के लिए आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक लाभदायी पद्धति कौनसी है, इस पर किया आध्यात्मिक शोध हम इस लेख में प्रस्तुत कर रहे हैं । मृत पूर्वजों को मृत्योत्तर जीवन में गति मिले और उनके जीवित परिजनों पर न्यूनतम नकारात्मक प्रभाव हो, यही इसका प्राथमिक उद्देश्य है ।

२. अस्थियां विसर्जित करनेतक अस्थी-कलश कहां रखें ?

जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया गया है,  संतों के अतिरिक्त अन्य किसी भी व्यक्ति की अस्थियां, सामान्यतया रज-तम युक्त होती हैं । इन्हें स्पर्श करने से हमारे रज-तम में वृद्धि होकर हमें कष्ट होने की आशंका रहती है । इसलिए अस्थियां एकत्र करने के उपरांत उसे तुरंत विसर्जित करना आवश्यक है । अस्थियां घर में लाने से भी मृत पूर्वज की सूक्ष्म-देह की आसक्ति बढती है और उसे मृत्योत्तर जीवन में शीघ्रता से आगे ले जाने की अपेक्षा भूलोक में ही बद्ध कर देती है ।

किसी कारणवश यदि अस्थि-विसर्जन तुरंत करना संभव न हो, तो बंद किया अस्थि-कलश घर के बाहर अथवा किसी वृक्ष पर लटकाकर रखना उचित होगा ।

३. अग्निसंस्कार के पश्‍चात अस्थी-कलश कितने समयतक रख सकते हैं ?

यदि अग्निसंस्कार चितापर किए गए हैं, तो सामान्यतया रक्षा तीसरे दिन इकट्ठा की जाती है; क्योंकि चिता के अंगारे पूर्णतः ठंडे होने में तीन दिन लगते हैं । यदि अग्निसंस्कार विद्युतदाहिनी (crematorium) में किया हो, तो रक्षा दूसरे ही दिन उपलब्ध हो जाती है । अग्निसंस्कार की पद्धति कोई भी हो, अस्थियों का विसर्जन तुरंत करने से रज-तम के नकारात्मक प्रभाव से बचा जा सकता है ।

कुछ प्रसंगों में जहां कोई संबंधी विदेश में होने के कारण अंतिम संस्कार में उपस्थित नहीं रह पाता, तो वह अस्थी-विसर्जन के कार्यक्रम में सम्मिलित होना चाहता है; परंतु यहां भी हमें शीघ्र विसर्जन करने से पूर्वज को मिलनेवाले आध्यात्मिक लाभ और उससे स्वयं को होनेवाले कष्ट से बचने के लाभ तथा संबंधियों के भावनात्मक तुष्टीकरण के बीच तुलना कर निर्णय करना चाहिए ।

४. आध्यात्मिक दृष्टि से अस्थी-कलश से अस्थियां विसर्जित करने की उचित पद्धति कौन सी है ?

४.१ अस्थियों का जल में विसर्जन

अग्निसंस्कार के उपरांत आध्यात्मिक दृष्टि से अवशेष निबटान का सर्वोत्तम उपाय अस्थियों का जल विसर्जन ही है । इसके निम्नलिखित कारण हैं :

१. अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) के लिए अस्थियों तथा सूक्ष्म-देह पर नियंत्रण कर उनका दुरुपयोग करना सरल होता है । विशेष रूप से अस्थियां भूमि पर एक साथ मिल जाएं, तो उनके लिए यह और भी सरल हो जाता है । जल में अस्थी-विसर्जन करने से अस्थियां जल में बिखर जाती हैं, जिससे नियंत्रण पाने के लिए अनिष्ट शक्तियों को वह एकत्रित रूप में नहीं मिल पाती ।

२. जल सर्वसमावेशक होता है अत: वह अस्थियों में विद्यमान मृतदेह के शेष स्पंदनों और सूक्ष्म देह से संबंधित पंचमहाभूतों, जैसे पृथ्वी, तेज, वायु आदि को अवशोषित करता है । इससे भूलोक में सूक्ष्म-देह की अपनी स्थूलदेह से बची आसक्ति समाप्त हो जाती है । परिणामस्वरूप सूक्ष्म-देह के भूलोक में अटके रहने और उस पर अनिष्ट शक्तियों द्वारा आक्रमण किए जाने की आशंका बहुत ही क्षीण हो जाती है ।

३. व्यक्ति के स्वभावदोषों (पापकर्मों)के कारण अस्थियों में रज-तम स्पंदन बढते हैं । मृतक की अस्थियां जल में विसर्जित करने से पापकर्म, अर्थात उनसे संबंधित रज-तम के स्पंदन जल में धुल जाते हैं ।

४. समुद्र-जल अस्थियोंके निबटान का हेतु उत्तम माध्यम है; क्योंकि अन्य सभी प्रकार के जल की अपेक्षा समुद्र के जल में सर्वसमावेशकता सर्वाधिक होती है । अन्य प्रकारों में पवित्र नदियों का जल सर्वोत्तम है । पवित्र नदियां, वे नदियां हैं जिनके जल में सत्त्वगुण की मात्रा अत्यधिक होती है; उदा. भारत की गंगा जैसी नदियां जिनका जल अत्यधिक प्रदूषित होने के उपरांत भी सर्वाधिक सात्त्विक है । सामान्यत: बहता जल सर्वोत्तम है; क्योंकि वह अस्थियों को इस प्रकार से बिखेर देता है कि अनिष्ट शक्तियों के लिए रक्षा अस्थियों के माध्यम से सूक्ष्म-देह पर नियंत्रण प्राप्त कर पाना असंभव सा हो जाता है ।

४.१.१ रक्षा समुद्र में विसर्जित करने के उपरांत कलश का क्या करें ?

कलश में अस्थियां एकत्रित की जाती हैं, इसलिए कलश भी अस्थियों के स्पंदनों से आवेशित हो जाता है । अस्थी-कलश रखने अथवा आगे उसका उपयोग करने से कष्ट होने की संभावना बढती है; क्योंकि ऊपर स्पष्ट किए अनुसार अधिकांश लोगों की अस्थियां कष्टदायक होती हैं । अतः अस्थियों के साथ कलश का भी विसर्जन करना सर्वोत्तम है ।

४.२ अस्थियां गाडना (दफनाना)

कुछ सभ्यताओं में अनिसंस्कार के उपरांत अस्थियों को पात्र सहित गाड दिया जाता है (दफना दिया जाता है) । उनका यह भी कहना है कि देह ईश्‍वर का मंदिर है और इसलिए अग्निसंस्कारों की अपेक्षा इसे गाडना (दफनाना)चाहिए ।

जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया गया है, अस्थियों को एक पात्र में गाडने-से वह अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच इ.)के लिए एक सहज लक्ष्य बन जाती है और उनके लिए मृत पूर्वज की सूक्ष्म-देह पर नियंत्रण करना और भी सरल हो जाता है । आध्यात्मिक स्तर पर अस्थियों का सूक्ष्मदेह पर होनेवाला दुष्परिणाम शव को गाडने के समान ही होता है, बस उनकी प्रबलता थोडी कम होती है । मृतदेह अथवा अस्थियों को गाडना (दफनाना)एक अत्यंत अनुचित कृत्य है । शताब्दियों से की गई शव और अस्थियों को गाडने की इन विधियों और आनेवाली शताब्दियों में की जानेवाली विधियों की संख्या का विचार करने पर यह स्पष्ट है कि इन अनुचित कृत्यों के माध्यम से उत्पन्न सूक्ष्म रज-तमात्मक स्पंदनों की वृद्धि का सामना सभी को करना पडेगा । जब-जब पृथ्वी के कुल रज-तम में वृद्धि होती है तो प्राकृतिक आपदाएं, युद्ध, आतंकवाद, सामाजिक असंतोष आदि में वृद्धि होती है ।

४.३ आभूषणों में अस्थियां रखना

कुछ लोग बाल के गुच्छे, सूखे हुए अंन्त्येष्टि में प्रयुक्त पुष्प, अस्थियां आदि पदक (लॉकेट), कर्णफूल, कंगन इत्यादि में रखकर अंत्येष्टी अवशेष आभूषण (क्रीमेशन ज्वेलरी) बनाते हैं । ऐसा करनेसे हम पूर्वजों को निम्न प्रकार की हानि पहुंचाते हैं :

  • सांसारिक आसक्ति बढने से मरणोत्तर जीवन में उनके आगे की यात्रा में बाधा आती है, जिससे वे भूलोक में बद्ध हो जाते हैं । अस्थियों को धारण करने से मृत पूर्वज की सूक्ष्म-देह में अपने वंशज तथा अपने पूर्वजीवन से उच्च स्तरीय आसक्ति निर्मित हो जाती है ।
  • अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण की आशंका बढती है ।

अंत्येष्टी अवशेष आभूषण (क्रीमेशन ज्वेलरी) लिए भी हानिकारक है क्योंकि :

  • हम अपने आप को अस्थियों में विद्यमान रज-तम के घनिष्ठ सान्निध्य में दीर्घकाल के लिए असुरक्षित छोड देते हैं ।
  • ऐसा करने से हम पूर्वज की सूक्ष्म-देह के साथ-साथ, अस्थियों के माध्यम से उसपर नियंत्रण प्राप्त करनेवाली अनिष्ट शक्तिके आक्रमणों तीव्र की आशंका से स्वयं को असुरक्षित रखते हैं ।

४.४ अवशेषों को विमान से अथवा मृतक के प्रिय स्थान पर बिखेरना

अस्थियों का विसर्जन शांतिपूर्वक और मृतक को आदर दर्शाने हेतु किए गए किसी आडंबर के बिना ही करना सर्वोत्तम है । जिससे मृतक की सांसारिक आसक्ति न्यूनतम रहे ।

५. अस्थी-विसर्जन कौन कर सकता है ?

अस्थी-विसर्जन कोई भी कर सकता है । सामान्यत: मृतक का सगा संबंधी यह करता है । इसे केवल एक व्यक्ति द्वारा किया जाना ही उत्तम है, जिससे स्पर्श सीमित और न्यूनतम हो ।

६. अस्थी-कलश किस पदार्थ से बना होना चाहिए ?

अस्थी-कलश के उत्पादक विविध प्रकार के उत्पाद बनाते हैं । इनमें विभिन्न पदार्थों से बने, विविध आकार-प्रकार तथा कलाकृतियों के पात्र उपलब्ध होते हैं ।

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आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से अस्थी-कलश का चयन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए :

  • पदार्थ : अस्थियां एकत्रित एवं सुरक्षित रखने के लिए साधारण मिट्टी से बना पात्र उत्तम होता है । सिरेमिक, कांच, चीनी मिट्टी (पोर्सेलीन)जैसे अन्य पदार्थों से बना अस्थी-कलश न लें । मिट्टी से बना कलश जल में विसर्जित करने पर पूर्णतः घुल जाता है और इस प्रकार वह जल को प्रदूषण मुक्त रखता है । इसमें पृथ्वीतत्त्व भी अधिक होता है । अस्थियों में भी पृथ्वीतत्त्व प्रमुखता से होता है । दोनों के एक ही पंचमहाभूत से बने होने से उनके स्पंदन एक दूसरे से टकराते नहीं । इसलिए मिट्टी से बना अस्थी-कलश अधिक लाभदायी है ।
  • कलाकृति : प्रत्येक प्रकार की कलाकृति सात्त्विक, राजसिक अथवा तामसिक हो सकती है । आध्यात्मिक रूप से एक विशिष्ट स्तर तक उन्नत व्यक्ति, जो कला अथवा कलाकृति की पवित्रता को समझ सकता है, वही व्यक्ति अस्थी-कलश के सात्त्विक अथवा कष्टदायक स्पंदनों को पहचान सकता है । इसलिए अच्छा होगा कि अस्थी-कलश पर कोई कलाकृति न हो । यदि कलाकृति रज-तम प्रधान होगी, तो उससे अस्थियों में विद्यमान रज-तम और बढेगा । इसी प्रकार कलाकृति कष्ट की तीव्रता और मृत पूर्वज की सूक्ष्म-देह के आगे की यात्रा में बाधाएं और बढा सकती है ।
  • आकार : अस्थीकलश विविध आकार तथा प्रकार के बनाए जाते हैं । सामान्यतया वे घनीय (cubical), बेलनाकार (cylindrical), पिरामिड जैसे इत्यादि आकार के होते हैं । उपर्युक्त प्रकार के तीक्ष्ण कोणयुक्त आकारों में बने अस्थी-कलश असाधारण रूप से विपरीत स्पंदन उत्पन्न करते हैं जो कि रज-तम प्रधान होते हैं । इससे सूक्ष्म-देह के रज-तम में भी वृद्धि होती है । आध्यात्मिक शोध से ज्ञात हुआ है कि साधारण नियमित गोलाकार पात्र का प्रयोग ही सर्वोत्तम है क्योंकि इससे रज-तम स्पंदनों को बढानेवाला कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होता ।

कुछ अस्थी-कलश उत्पादक अंत्येष्टी अवशेष आभूषण (क्रीमेशन ज्वेलरी) का विज्ञापन करते हैं । इन आभूषणों के पदकों (लॉकेटों) तथा कंगन (ब्रेसलेट) में परिजन थोडी अस्थियां रखते हैं । इन पदकों(लाकेटों) में आप्तजन बालों के गुच्छ (लॉक ऑफ हेयर),  एक सूखा हुआ अंत्येष्टी में प्रयुक्त पुष्प अथवा शवाधान (दफन) स्थल की मिट्टी भी रखते हैं । आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से मृत पूर्वज की सूक्ष्म-देह के लिए तथा ऐसे आभूषण धारण करनेवाले व्यक्ति के लिए भी यह अत्यंत घातक है । अस्थियां क्यों नहीं रखी जानी चाहिए, इसके पूर्ण स्पष्टीकरण हेतु सूत्र क्र.४ देखें

एकत्रित करने से लेकर विसर्जन करने तक पात्र को श्‍वेत सूतीवस्त्र से बंद करें ।

७. मेरे घर के पालतू प्राणियों की अस्थियों का मैं क्या करूं ?

उपर्युक्त कारणों को ध्यान में रखते हुए घर के पालतू प्राणियों की अस्थियां भी जल में विसर्जित करें ।

कुछ लोग इच्छा व्यक्त करते हैं कि उनके पालतू कुत्ते अथवा बिल्ली की अस्थियां उनकी अपनी अस्थियों के साथ गाडी (दफनाई)जाए । आध्यात्मिक शोध से ज्ञात हुआ है कि यह अत्यंत घातक है; क्योंकि इससे उनकी आसक्ति दृढ होती है । जिससे उनके भूलोक में ही अटके रहने की आशंका रहती है । साथ ही मनुष्य की तुलना में पालतू प्राणियों की अस्थियां अधिक तम प्रधान होती है ।