HIN_Going-Into-the-Light

हममें से अधिकांश लोगों ने इस अवधारणा के बारे में सुना होगा, जहां व्यक्ति को ऐसा अनुभव होता है कि, वह एक सुरंग में है और सुरंग के अंत में वह प्रकाश में आगे बढ रहा है | यह दृश्य उस भावना से साध्मर्य दर्शाता है जब दुख में डूबा व्यक्ति अपनी किसी कठिन समस्या के अंत में मिलनेवाले समाधान अथवा एक सुखद अंत को देखता है |

हमने, ‘एक सुरंग के अंत में प्रकाश’ (लाइट एट द एंड ऑफ ए टनल) इस मुहावरे का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से क्या अर्थ है, यह जांचने का निश्चय किया | अधिकांशतः यह आध्यात्मिक दृष्टि से निम्न दो प्रसंगों में प्रयुक्त होता है :

१. जब अनिष्ट शक्ति (भूत, पिशाच,राक्षस आदि), किसी व्यक्ति अथवा घर को प्रभावित करती है, तब प्राय: आध्यात्मिक क्षेत्र के अधिकारी व्यक्ति जैसे पुजारी अथवा माध्यम को बुलाया जाता है । उनके द्वारा अपनार्इ जानेवाली सामान्य आध्यात्मिक तकनीक है, कष्ट देनेवाली अनिष्ट शक्ति को ‘प्रकाश में जाने’ के लिए कहना । कष्ट देनेवाली शक्ति कोई भूलोक से बद्ध पूर्वज हो सकते हैं जिन्हें आगे की गति नहीं मिल रही अथवा ये एक अनिष्ट शक्ति हो सकती है | इस कारण ही पुजारी अथवा माध्यम का उस सूक्ष्म शक्ति को प्रकाश की ओर जाने के लिए बताने का उद्देश्य उसे भगवान, चैतन्य अथवा उच्च सकारात्मक लोकों की ओर गतिमान करना है |

२. कभी कभी, जब लोगों को मृत्युके निकट होने के अनुभव होते हैं (near death experiences (NDE’s)),उस समय वे भी स्वयं को एक सुरंग जिसके अंत में प्रकाश है, में यात्रा करते पाते हैं |

लोगों को दिखनेवाले इस ‘प्रकाश’ का पता लगाने के लिए हमने इन दोनों घटनाओं पर आध्यात्मिक शोध के माध्यम से जांच की । हमें जो निष्कर्ष प्राप्त हुए वे निम्नलिखित हैं :

समष्टि आध्यात्मिक स्तरका अर्थ है, समाजके हितके लिए आध्यात्मिक साधना (समष्टि साधना) करनेपर प्राप्त हुआ आध्यात्मिक स्तर; जब कि व्यष्टि आध्यात्मिक साधनाका अर्थ है, व्यक्तिगत आध्यात्मिक साधना (व्यष्टि साधना) करनेपर प्राप्त आध्यात्मिक स्तर । वर्तमान समयमें समाजके हितके लिए आध्यात्मिक साधना (प्रगति) करनेका महत्त्व ७०% है, जब कि व्यक्तिगत आध्यात्मिक साधनाका महत्त्व ३०% है ।
  • जिन लोगों के मन में वास्तव में ईश्वर प्राप्ति की इच्छा है, उन्हें दिव्य प्रकाश निश्चित रूप से दिखाई देता है | जिनका आध्यात्मिक स्तर ५० प्रतिशत (समष्टि) अथवा ६० प्रतिशत (व्यष्टि) से अधिक है, वे वास्तव में अनगिनत गुणों से अथवा अपने अल्प अहंकार के कारण दिव्य प्रकाश देखने में सक्षम है | ५० प्रतिशत (समष्टि) अथवा ६० प्रतिशत (व्यष्टि) आध्यात्मिक स्तर से अधिक होने के कारण, वे मात्र दिव्य प्रकाश देखते ही नहीं, अपितु अंत में उस दैवी स्वर्गीय प्रकाशतक पहुंच भी पाते हैं | निम्न आध्यात्मिक स्तर उदाहरणस्वरूप ४० प्रतिशतवाले व्यक्ति की ईश्वर प्राप्ति हेतु आध्यात्मिक प्रगति करने की तीव्र इच्छा हो तो मृत्यु के समय वे दिव्य प्रकाश देख सकते हैं | इस प्रसंग में वे दिव्य प्रकाश देख तो सकते हैं, परंतु वास्तव में वे स्वर्गलोकतक पहुंच नहीं पाते |
  • हममें से शेष लोग, मृत्यु के समय, किसी भी प्रकाश को देखने में सक्षम नहीं है । इसके विपरीत जैसे ही मृत्यु होती है, व्यक्ति को सामान्यतः अंधेरे ही दिखार्इ देता है | यद्यपि ‘मत्यर्लोक’ जो जिससे व्यक्ति मरणोपरांत यात्रा करता है, बैंगनी रंग का है; अधिकांश सूक्ष्म देहों को इसमें से यात्रा करते समय अंधकार ही दिखार्इ देता है । इसका कारण यह है कि, सूक्ष्म-देह पर असंतुष्ट इच्छाओं, स्वभाव दोष, अहंकार और कर्इ बार अनिष्ट शक्ति का काला आच्छादन (आवरण) होता है । यह उनके द्वारा आंखें बंद करने जैसा ही है, इसलिए वे मर्त्यलोक का वास्तविक रंग नहीं देख पाते ।
  • वे लोग जिन्हें ईश्वर-प्राप्ति की विशुद्ध इच्छा न होने पर भी प्रकाश दिखाई देता है, वास्तव में वे सूक्ष्म-मांत्रिक द्वारा उत्पन्न भ्रम पैदा करनेवाले प्रकाश को देखते हैं । उच्च आध्यात्मिक शक्ति के कारण सूक्ष्म-मांत्रिक, प्रकाश का भ्रम तथा उसके साथ ही प्रकाश से प्रक्षेपित शांति और आनंद के भ्रामक अनुभव भी उत्पन कर सकते हैं । ये भ्रम उनकी आध्यात्मिक शक्ति और काली शक्ति द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं । इस प्रक्रिया के माध्यम से वे सूक्ष्म-देहों को प्रकाश से लुभाकर उन्हे अपना दास बना लेते हैं | पृथ्वी से बद्ध पूर्वजों का आध्यात्मिक स्तर सामान्यतः न्यून होता है और साथ ही अनेक आसक्तियां और अपूर्ण इच्छाएं होती हैं । इसका अर्थ यह है कि, मृत्यु के समय वे सामान्यतः दिव्य प्रकाश नहीं देख सकते । दिवंगत पूर्वजों को प्रकाश में जाने के लिए प्रभावी ढंग से कहना अर्थात उन्हें भ्रम निर्माण करनेवाले सूक्ष्म-मांत्रिक की ओर जाने के लिए कहना है |
  • कथित तौर पर दिखार्इ देनेवाली यह सुरंग मर्त्यलोक में है | SSRF के साधक अपनी अति जागृत छठवीं इंद्रिय के कारण, न केवल सुरंग देख पाते हैं, वरन् उसका वर्णन करने में भी सक्षम है |

कोई यथार्थ में दिव्य प्रकाश देखता है अथवा नहीं, यह सुनिश्चित करने का क्या उपाय है ? पृथ्वी पर अपने समय का उपयोग साधना करने में लगाना ही सर्वोत्तम उपाय है | साधना के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार ही साधना करना आवश्यक है अन्यथा आध्यात्मिक उन्नति में गतिहीनता अथवा हानि भी हो सकती है |