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हमारा सुझाव है कि इस लेख को भलीभांति समझ पाने के लिए आप निम्न लेखों से परिचित हो जाए :

1. प्रस्तावना

अन्न जीवन की मूलभूत आवश्यकता है और दैनिक जीवन में आवश्यक पोषण तथा ऊर्जा की पूर्ति करता है । अन्न के पोषक गुणों के विषयमें अत्यधिक शोध हो जाने के कारण हम उससे भलीभांति परिचित हैं । अपने व्यक्तिगत अनुभव के कारण कुछ खाने के उपरांत मिलनेवाले मानसिक संतोष से भी हम अवगत हैं; परंतु भोजनपूर्व की जानेवाली प्रार्थना जैसे सामान्य कृत्य के विषय में तुलनात्मक दृष्टि से अत्यल्प अध्ययन (शोध) किया गया है ।

आज हमारी भाग-दौड भरी जीवनशैली में, हममें से कुछ लोगों को भोजन के समय प्रार्थना करना एक अनावश्यक कृत्य लगेगा, जिसके लिए हमारे पास न तो समय है न ही धैर्य । अन्य कुछ लोगों के लिए, यह एक पूर्णतया अनजाना अनुभव हो सकता है ।

आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में भोजनपूर्व प्रार्थना करने के प्रभाव समझने के लिए हमने प्रगत छठवीं ज्ञानेंद्रिय के माध्यम से आध्यात्मिक शोध किया और भोजनपूर्व प्रार्थना करने और प्रार्थना किए बिना ही भोजन करने से क्या होता है, इसका तुलनात्मक अध्ययन किया ।

२. प्रार्थना किए बिना भोजन करने के परिणाम – एक आध्यात्मिक शोध

सूक्ष्म ज्ञान के आधार पर निम्न चित्र SSRF की साधिका (पू.) श्रीमती योया वाले ने प्रगत छठवीं इंद्रिय द्वारा बनाया है ।

(पू.) योया वाले के पास सूक्ष्म स्तर का देख पाने की क्षमता है और वे साधना तथा विशुद्ध सत्य की सेवा (सत्सेवा) के रूप में सूक्ष्मज्ञान पर आधारित चित्र बनाती हैं ।

सूक्ष्मज्ञान पर आधारित निम्न चित्र प्रार्थना किए बिना भोजन करने के परिणाम दर्शाता है ।

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सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र से हमें निम्न सूत्रों का ज्ञान होता है:

  • ईश्‍वरीय चैतन्य अन्न की ओर आकर्षित होता है । उसका सेवन करने पर, अन्न ग्रहण करनेवाले व्यक्ति के भी सर्व ओर ईश्‍वरीय चैतन्य का सुरक्षाकवच निर्मित होता है ।
  • भोजनपूर्व प्रार्थना न करने तथा र्इश्वर का चिंतन न करने से, व्यक्ति के सर्व ओर कष्टप्रद शक्ति का आवरण निर्मित होता है । यह कष्टप्रद शक्ति आगे अन्न पर भी आवरण लाती है और भोजन के साथ शरीर में प्रवेश करती है ।
  • परिणामस्वरूप हमारे आंतरिक अंग तथा मन पर कष्टप्रद शक्ति का आवरण आता है और बिना प्रार्थना किए भोजन करने के अहंकार के कारण हृदय चक्र (अनाहत-चक्र) में कष्टप्रद शक्ति का वलय निर्मित होता है । प्रार्थना न करने से मन कार्यरत रहता है, जिससे विविध प्रकार के विचार तथा बहिर्मुखता उत्पन्न होती है ।

इसलिए जब व्यक्ति प्रार्थना किए बिना अन्नग्रहण करता है, तो उसकी सूक्ष्मदेह में कष्टप्रद शक्ति प्रवेश करती है, जिससे कष्ट बढता है ।

साथ ही अन्नग्रहण करते समय यदि व्यक्ति ऊंचे स्वर में बातें करता है, तो उसकी बहिर्मुखता बढती है और रज-तम के स्पंदन अधिक आकर्षित होते हैं । इससे व्यक्ति की ऊर्जा (शक्ति)का व्यय होता है और यही नकारात्मक स्पंदन पूरे दिन व्यक्ति के साथ रहते हैं ।

३.भोजनपूर्व प्रार्थना करने पर आध्यात्मिक शोध

आर्इए अब देखते हैं भोजनपूर्व प्रार्थना करने से क्या होता है, इस संदर्भ में (पू.)योया वाले द्वारा बनाया गया सूक्ष्मज्ञान पर आधारित अन्य एक चित्र।

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सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित इस चित्र से हमें निम्नलिखित सूत्र ध्यान में आते हैं ।

  • प्रार्थना करने से भाव जागृत होता है और र्इश्वर से आंतरिक सान्निध्य होता है । इससे अन्न तथा अन्न ग्रहण करनेवाले व्यक्ति की ओर ईश्‍वरीय चैतन्य आकर्षित होता है ।
  • अन्न में ईश्‍वरीय शक्ति कार्यरत होती है और व्यक्ति की सूक्ष्मदेह में पहुंचकर उसके सर्व ओर सुरक्षाकवच निर्मित करती है ।
  • परिणामस्वरूप, अन्न ग्रहण करने पर शरीर में विद्यमान प्राणशक्ति में वृद्धि होती है ।

इसलिए भोजनपूर्व प्रार्थना करना आध्यात्मिक दृष्टि से लाभप्रद है । भोजन से पहले व्यक्ति निम्न प्रार्थनाएं कर सकता है :

  • ‘‘हे र्इश्वर, यह अन्न आपका दिया हुआ प्रसाद है इस भाव से मुझसे ग्रहण होने दीजिए एवं इससे मुझे ईश्‍वरीय शक्ति और ईश्‍वरीय चैतन्य प्राप्त होने दीजिए ।
  • ‘‘हे र्इश्वर, यदि इस अन्न में काली शक्ति हो, तो कृपया उसे नष्ट कीजिए और अन्नकणों में ईश्‍वरीय चैतन्य भर दीजिए ।
  • ‘‘हे र्इश्वर, भोजन करते समय आपके नामजप का सुरक्षाकवच मेरे सर्व ओर निर्माण कीजिए ।

४. सारांश – भोजनपूर्व प्रार्थना

भोजनपूर्व प्रार्थना करना एक ऐसा सरल कृत्य है, जिससे हम र्इश्वर के समीप जा सकते हैं । चैतन्य एवं सुरक्षा प्राप्त कर शारीरिक कार्यों के लिए प्राणशक्ति प्राप्त कर सकते है । इससे दैनिक जीवन के भोजन करने जैसे कृत्यों द्वारा भी हम अखंड साधना कर सकते हैं ।

भोजन के साथ यदि हम र्इश्वर का नामजप भी करें, तो इससे हमें अधिक लाभ मिलता है ।