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. प्रस्तावना

संस्कृति तथा संदर्भ के अनुसार, चुंबन विभिन्न संवेदनाओं को जैसे प्रेम, उमंग, स्नेह, सम्मान, अभिवादन, मित्रता एवं शुभकामना इत्यादि अभिव्यक्त करता है । साथ ही संस्कृति, सम्बन्ध एवं संदर्भ के अनुसार एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के होंठ, गाल, माथा एवं हाथ का चुंबन लेता है और ये सभी कृत्य एक भिन्न सामाजिक महत्त्व रखते हैं । आजकल, विशेषतः पश्चिमी संस्कृति में गाल पर चुंबन अभिवादन का सामान्य रूप है ।

अभिवादन पर आध्यात्मिक शोध की इस कडी में, हम आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में चुंबन के प्रभाव देखेंगे ।

२. अभिवादन विषय की पृष्ठभूमि

आरंभ में, हम आपसे विनती करेंगे कि आप हमारे लेख अभिवादन का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से सुपरिचित हो जाएं । इससे आप को प्रस्तुत लेख समझने हेतु आवश्यक पृष्ठभूमि मिलेगी । इस लेख में यह स्पष्ट किया गया है कि जब अभिवादन में स्पर्श समाहित होता है, तो कैसे उसके माध्यम से हम सूक्ष्म-शक्तियों के आदान-प्रदान के लिए प्रवृत्त होते हैं । आध्यात्मिक शोध द्वारा हमें पता चला है कि अधिकांश लोग एक सीमातक अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित होते हैं । परिणामस्वरूप, स्पर्श अथवा आलिंगन द्वारा दो लोगों के मध्य सूक्ष्म-शक्तियों का आदान-प्रदान आध्यात्मिक दृष्टि से हानिकारक हो सकता है । हम में से अधिकांश लोग इस हानिकारक प्रभाव को नहीं समझ पाते; क्योंकि हमारे पास इसके लिए आवश्यक छठवीं इंद्रिय की क्षमता नहीं होती ।

. स्पर्शयुक्त अभिवादन शैली संबंधी सूचना

जब अभिवादन स्पर्श युक्त हो, तो निम्नलिखित बातों का ध्यान रख सकते हैं । स्पर्श रहित अभिवादन की तुलना में, स्पर्श सहित अभिवादन में आध्यात्मिक अथवा सूक्ष्म-शक्तियों का आदान-प्रदान १०० प्रतिशत बढ जाता है । (नकारात्मक शक्तियों के प्रकार के अनुसार, एक-दूसरे की आंखों में एकटक देखना भी सूक्ष्म-शक्तियों के आदान-प्रदान को बढावा देता है ।

अभिवादन करते दो लोगों के मध्य का संपर्क अभिवादन कर रहे लोगों के मध्य शक्ति के अंतरण की सुगमता अभिवादन का उदाहरण
त्वचा से त्वचा शक्ति का अंतरण सुगम हस्तिमलाप, गले लगाना
त्वचा से मुख त्वचा से त्वचा की तुलना में अधिक सुगम हाथ अथवा गाल पर चुंबन
मुख से मुख अधिकतम शक्ति अंतरण मुख से मुख पर चुंबन

४. चुंबन पर आध्यात्मिक शोध

उपरोक्त सारणी में बताए अनुसार, मुख से मुख पर चुंबन सूक्ष्म-शक्तियों के आदान-प्रदान की सरलतम एवं अधिकतम बढावा देनेवाली पद्धति है । सामान्यतया अनिष्ट शक्तियां व्यक्ति के रंध्रों (orifices) से उदा. मुख, नाक, कान इत्यादि से प्रवेश करती हैं । भोजन ग्रहण करना वह सरलतम पद्धति है, जिससे अनिष्ट शक्तियां व्यक्ति को प्रभावित करती हैं ।

आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में, मुख को अशुद्ध रिक्ति माना गया है । इसके दो कारण हैं :

  • पहला, मुख में आपतत्त्व की प्रधानता होती है । आपतत्त्व की एक विशेषता यह है कि उसमें नकारात्मक एवं सकारात्मक ऊर्जा को संजोए रखने की क्षमता होती है । (अधिकांश लोग नियमितरूप से साधना नहीं करते तथा सांसारिक वस्तुओं की ओर अधिक आकर्षित रहते हैं । बिना आध्यात्मिक उद्देश्य के सांसारिक वस्तुओं से जुडाव व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन उत्पन्न और आकर्षित करता है । इससे व्यक्ति के अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित होने की आशंका बढ जाती है ।) मुख ऐसा रंध्र है, जहां नकारात्मक शक्ति एकत्रित हो सकती है विशेषतः आपतत्त्व की प्रधानता के कारण । परिणामस्वरूप व्यक्ति के मुख का सम्पर्क त्वचा अथवा दूसरे व्यक्ति के मुख से होता है, निश्चितरूप से अनिष्ट शक्तियों का आदान-प्रदान होता है ।
  • मुख को अशुद्ध रिक्ति मानने का दूसरा कारण यह है कि मुख श्वसन तथा पाचन तंत्र का मार्ग है । अतएव इन शरीर तंत्रों द्वारा अनिष्ट शक्तियों का प्रवेश हो अथवा निष्कासन, सभी मुख से होकर निकलता है । मार्ग में एक व्यक्ति से दूसरे में स्थानांतरित होने के पूर्व इन तंत्रों की अनिष्ट शक्तियां मुख में एकत्र होती है ।

हस्तमिलाप के विपरीत, मुख से दूसरे व्यक्ति के मुख को चूमना, बहुत गहरी यौन उत्कंठा उत्पन्न करता है । सामान्यतया यह दूसरे व्यक्ति के प्रति एक भावनात्मक प्रतिसाद उत्पन्न करता है, जिसके परिणामस्वरूप मन अधिक अस्थिर हो सकता है । मन की किसी भी प्रकार की अस्थिरता का लाभ अनिष्ट शक्तियां उठा सकती हैं; क्योंकि उन में व्यक्ति की भावनाओं को भडकाकर उसे और हानिकारक रूप में भावुक बनाने की क्षमता होती है ।

नीचे दिए सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र में किसी व्यक्ति द्वारा दूसरे के गाल पर चूमने से होनेवाला सूक्ष्म-शक्तियों का आदान-प्रदान दर्शाया गया है । इस विशिष्ट प्रकरण में दोनों में से एक अनिष्ट शक्तियों द्वारा आवेशित है, जबकि दूसरा अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित है । SSRF द्वारा किए आध्यात्मिक शोध के अनुसार विश्व की ३० प्रतिशत जनसंख्या  अनिष्ट शक्तियों द्वारा आवेशित है । लगभग सभी प्रकरणों में आवेशित व्यक्ति को यह पता ही नहीं रहता कि वह अनिष्ट शक्तियों के नियंत्रण में है ।

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ये चित्र दृश्य से संबंधित प्रगत छठवीं इंद्रिय से संपन्न साधिका (पू) श्रीमती योया वाले ने बनाया है ।

निम्नलिखित सारणी में उपर्युक्त सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र के विभिन्न पहलू विस्तृत रूप से दर्शाए गए हैं । निम्नलिखित सारणी को भलीभांति समझने हेतु कृपया चक्र संबंधी लेख पढें ।

क्रमांक स्पष्टीकरण
१. स्त्री के भूतावेशित होने के कारण, उस के शरीर के चारों ओर काली शक्ति का मोटा काला आवरण है; परन्तु छठवीं इन्द्रिय के अभाववश उसे चूमनेवाला इन नकारात्मक स्पंदनों को अनुभव नहीं कर सकता ।
१ अ. अनाहत चक्र पर नकारात्मक शक्ति का वलय उत्पन्न होकर सक्रिय होता है ।
१ आ. स्त्री के अनाहत चक्र से निकलता नकारात्मक शक्ति का घना प्रवाह सामान्य व्यक्ति के अनाहत चक्र में अवशोषित होता है ।
१ इ. इसके परिणामस्वरूप नकारात्मक शक्ति का घना वलय सामान्य व्यक्ति के अनाहत चक्र में उत्पन्न होता है ।
१ ई. नकारात्मक शक्ति के कणस्त्री के मुख से उस के गाल को चूमनेवाले व्यक्ति तक पहुंचे ।
१ उ. इस सब के परिणामस्वरूप सामान्य व्यक्ति के शरीर के चारों ओर नकारात्मक शक्ति का आवरण उत्पन्न हो गया ।
१ ऊ. नकारात्मक शक्ति का वलय स्त्री के मन के चारोंओर उत्पन्न हुआ ।
२. नकारात्मक शक्ति का काला घना आवरण फैलकर निकट के वातावरण में प्रक्षेपित हुआ ।
२ अ. काली शक्ति की तरंगें नकारात्मक शक्तिसे आवेशित स्त्री से प्रक्षेपित हुई ।
२ आ. काली शक्ति का आवरण सामान्य व्यक्ति के शरीर के चारों ओर उत्पन्न हुआ ।
२ इ. काली शक्ति सामान्य व्यक्ति के मन को घेर लेती है ।
३. आवेशित व्यक्ति के मन में मोहिनी शक्ति का वलय उत्पन्न एवं सक्रिय हुआ, इससे स्त्री वास्तविकता से अधिक आकर्षक दिखने लगी
४. मायावी शक्ति के वलय का प्रक्षेपण एवं प्रसारण हुआ जिसने दोनों को घेर लिया । वस्तुओं को वास्ताविकता से परेदिखाने के लिए नकारात्मक शक्तियों द्वारा मायावी शक्ति उत्पन्न की जाती है । इस कारण यद्यपि आवेशित व्यक्ति को चूमना पुरुष के लिए आध्यात्मिक दृष्टि से हानिकारक है, तथापि स्त्री को चूमकर उसे अच्छा लगता है ।

दूसरे व्यक्ति को चूमने से समान्यतया नकारात्मक तरंगें उत्पन्न होती हैं, जिससे वातावरण की अनिष्ट शक्तियां आकर्षित होती हैं । अभिवादन की सभी शैलियों में, चुंबन वास्तव में सर्वाधिक तम प्रधान तरंगें उत्पन्न करनेवाली पद्धति है । आवेशित व्यक्ति को चूमने का नकारात्मक परिणाम अनेक दिनों तक बना रहता है, उदा. निराशा, नकारात्मक विचार, अत्यधिक विचार इत्यादि । प्रभावित व्यक्ति आध्यात्मिक विश्व से अनभिज्ञ होता है और यह समझ नहीं पाता कि यह आध्यात्मिक आयाम के कारण हो रहा है ।

इस नियम के कुछ अपवाद हैं

  • प्रेम के प्रकार के अनुसार: परिजनों, अपने जीवनसाथी तथा मां द्वारा बच्चे को चूमने से कुछ मात्रामें सकारात्मक तरंगें उत्पन्न हो सकती हैं । यह सकारात्मकता प्रेम के प्रकार पर निर्भर करती है कि प्रेम अपेक्षा सहित है अथवा अपेक्षा रहित । इसी कारण मां द्वारा बच्चे को चूमने पर, उसके प्रेम तथा बच्चे के प्रति सदभाव के कारण सकारात्मक तरंगें उत्पन्न होने की संभावना अधिक होती है । इस के विपरीत मां और बच्चे का सम्बन्ध तनावपूर्ण हो, तो वही सकारात्मक परिणाम नहीं मिलता ।
  • आध्यात्मिक स्तर के अनुसार: उपरोक्त उदाहरण के साथ ही, यदि कोई आवेशित व्यक्ति ६० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर के व्यक्ति को चूमता है, तो आवेशित व्यक्ति पर उपचारी परिणाम होगा । इसका कारण यह है कि ६० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर के व्यक्ति से सकारात्मक सत्त्वप्रधान तरंगें प्रक्षेपित होती हैं, जिनमें आध्यात्मिक उपचारी क्षमता होती है ।

यदि हम सदभाव के साथ मित्रों और परिचितों को चूमते हैं, तो सदभाव नगण्य रह जाता है; क्योंकि ऐसे में चुंबन सामान्यतया नियमित हस्तमिलाप की भांति होता है । ऐसे अवसरों पर भावनाएं इतनी ऊपरी होती हैं कि सकारात्मक तरंगें उत्पन्न नहीं हो पाती और कुल परिणाम नकारात्मक तरंगें होने की संभावना अधिक होती है ।

५. चुंबन के हानिकारक आध्यात्मिक प्रभावों से बचना

इस लेख का उद्देश्य हमारे दैनिक क्रियाकलापों के आध्यात्मिक परिणामों से अवगत कराना है न कि भयभीत करना । हम पर हानिकारक प्रभाव डालनेवाली बातों की जानकारी होने से हम उस की रोकथाम के उपाय अपना सकते हैं ।

निम्नलिखित सूत्रों पर ध्यान दे सकते हैं :

  • सर्वाधिक सुरक्षित आध्यात्मिक विकल्प है, लोगों का अभिवादन चूमकर अथवा किसी भी प्रकार के स्पर्श से करने की अपेक्षा नमस्कार से करना ।
  • यदि किसी को चूमना हम टाल नहीं सकते, तो यह कर सकते हैं :
    • निरंतर ईश्वर का नामजप करने से एक सूक्ष्म सुरक्षा-कवच बनता है, जिस से नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव न्यूनतम हो जाता है ।
    • सुरक्षा के लिए प्रार्थना करने से भी सुरक्षा-कवच दृढ होने में सहायता होती है ।
    • काली शक्ति के आदान-प्रदान के प्रभाव से संबंधित लोगों की रक्षा होने हेतु प्रार्थना करना ।