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१. स्वास्थ्य के लिए नामजप की भूमिका

SSRF अपने प्रारंभ से यह संदेश निरंतर देता आ रहा है कि जीवन की समस्याओं के मूल कारण शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक स्तर के होते है । SSRF द्वारा किया गया आध्यात्मिक शोध यह दर्शाता है कि जीवन की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं सहित सभी समस्याओं के मूल कारणों में आध्यात्मिक कारणों का योगदान ८०% तक हो सकता है । जिन समस्याओं का मूल कारण आध्यात्मिक आयाम का हो, उन पर साधना आौर अन्य आध्यात्मिक उपचारी विधियों द्वारा मात करना सर्वश्रेष्ठ मार्ग है । वर्तमान युग में, अपने जन्मजात धर्म एवं पंथ के अनुसार ईश्वर का नामजप करना ही मूल साधना  है । नामजप शारिरीक, मानसिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से कल्याणकारी है ।

देखें हमारा संदर्भ लेख आधुनिक चिकित्सा विज्ञान अथवा षधियों की मर्यादाएं तथा आध्यात्मिक उपचारी विधियों की आवश्यकता

२. आध्यात्मिक उपचारात्मक विधि द्वारा, रोग से पीडित अंग का स्वस्थ हो जाना 

रोग के मूल कारण को समझना, उसके लिए उत्तरदायी आध्यात्मिक कारण एवं उन आध्यात्मिक कारणों की प्रतिशत मात्रा, यह सब आध्यात्मिक अथवा सूक्ष्म-आयाम से संबंधित होने के कारण परिमाण का अंश है,जिसे समझ पाना कठिन है । इसके अतिरिक्त उस व्यक्ति की उपलब्धता, जो सूक्ष्म-आयाम को समझ सके तथा हमें इसके उपचार बतलाए, सदैव संभव नहीं है । अतः मनुष्य यह सदैव समझ नहीं पाता कि वास्तव में कौनसा अंग पीडित है, कौनसा  आध्यात्मिक उपचार (नामजप, मुद्रा, तथा न्यास) करना आवश्यक है, जिससे वह अंग स्वस्थ हो एवं रोग को विशिष्ट सीमातक रोक पाना संभव होगा । स्वास्थ के लिए नामजप  इस लेख में शरीर के अंग एवं संबंधित बीज मंत्र तथा नामजप बताए गए हैं । किसी विशिष्ट रोग के लिए उचित मुद्रा कौनसी है तथा संबंधित चक्रों पर कौनसा न्यास करना आवश्यक है, इस विषय में भी जानकारी उपलब्ध है । रोगी निर्धारित आध्यात्मिक उपचारों के लाभ उठाने के साथ-साथ, अपने उपचार के लिए आधुनिक चिकित्सा की भी सहायता अवश्य लें ।

३. देह के अंगो से संबंधित देवताओं के नामजप

जब आध्यात्मिक उपचार हेतु नामजप विशेष रूप से आवश्यक हो, तब एक आध्यात्मिक सिद्धांत समझना आवश्यक है । शरीर का प्रत्येक अंग र्इश्वर के विशिष्ट तत्त्व द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जिसे देवतातत्त्व कहा जाता है । जब किसी का कोर्इ अंग आध्यात्मिक कारण से किसी रोग से प्रभावित हो जाता है, तब उस अंग एवं रोग से संबंधित किसी विशिष्ट देवता का, जो उस अंग एवं रोग से संबंधित है, उनका नामजप करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं । उस देवतातत्त्व में निहित चैतन्य से वह अंग आध्यात्मिक स्तर पर सशक्त होकर व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है ।

रोग के लिए दिया नामजप जितना अचूक होगा, उतने ही परिणाम शीघ्र और व्यापक मात्रा में मिलते हैं ।

. नामजप की उपचारी क्षमता को कैसे बढाया जाए

  • एकाग्रता से नामजप करना : एकाग्रता से नामजप करने से व्याधिग्रस्त कोशिकाओं के सर्व ओर सात्त्विक स्पंदनों का सुरक्षा -कवच निर्मित होता है । कुछ समय पश्चात रोग के पुनः-पुनः होने की संभावना न्यून हो जाती है ।
  • भावपूर्ण नामजप करना : भाव सहित नामजप करने से शरीर के अंगों में र्इश्वरीय शक्ति जागृत होती है । इसके परिणामस्वरूप अंगों की कोशिकाओं में चैतन्य भर जाता है । इस प्रकार आध्यात्मिक सकारात्मकता बढने से कीटाणुओं के रूप में विद्यमान कष्टदायक स्पंदन नष्ट हो कर उस अंग की कोशिकाएं पुनर्जीवित हो उठती हैं ।
  • प्रार्थनासहित नामजप करना : नामजप करते समय पुन:-पुन: प्रार्थना करने से नामजप का प्रभाव कर्इ गुना बढ जाता है । व्याकुलता और भाव से प्रार्थना करने पर ही ब्रह्मांड में विद्यमान उस विशिष्ट देवता के स्पंदन व्यक्ति की ओर आकर्षित होते हैं । ये र्इश्वरीय स्पंदन व्यक्ति की चेतना में व्याप्त हो जाते हैं, जिससे रोग के कष्टदायक स्पंदन नष्ट होते हैं । भावपूर्ण प्रार्थना के बिना किया गया नामजप गुणात्मक नहीं होता इस कारण नामजप केवल संख्यात्मक होने से रोगी को सीमित मात्रा में ही लाभ ही होता है ।