नामजप और ध्यान में क्या अंतर है ?

१. ध्यान और नामजप – प्रस्तावना

वर्तमान समय में मनःशांति, तनावमुक्ति, एकाग्रता आदि के लिए अधिकांशतः ध्यान का अभ्यास करने हेतु कहा जाता है । इस लेख में हम ध्यान और नामजप के अंतर को समझेंगे । साथ ही यह भी समझेंगे कि वर्तमान समय में ध्यान करना क्यों कठिन है और जो साधक साधना में प्रगति करना चाहते हैं उनके लिए नामजप अत्यधिक महत्वपूर्ण क्यों है ।

२. नामजप और ध्यान की परिभाषा

इस लेख में हमने ‘ध्यान’ शब्द का उपयोग अति जाग्रत अथवा चेतनावस्था, निर्विचार अवस्था के संदर्भ में किया है । इस अवस्था की अनुभूति अत्यधिक प्रयासों द्वारा की जा सकती है ।

नामजप, र्इश्वर के नाम का निरंतर उच्चारण करना है ।

३. ध्यान और नामजप में तुलना

निम्न सारणी दर्शाती है कि वर्तमान कलियुग में ध्यान की तुलना में नामजप श्रेयस्कर क्यों है :

ध्यान नामजप
१. साधना की मर्यादाएं अ. कितने व्यक्ति इसे कर सकते हैं ? कुछ अनेक
आ. यह दिन में कितने समय तक किया जा सकता है ? कुछ घंटों तक अनेक घंटों तक
इ. कारण ध्यान के कुछ बंधन  होते हैं क्योंकि व्यक्ति को एक विशेष स्थान पर बैठ कर अपनी श्वास पर ध्यान केंद्रित करना होता है और अपने मन को ध्यान में लगाना होता है । नामजप करने में कोई भी बंधन नहीं होता, व्यक्ति कहीं भी हो, नामजप कर सकता है ।
२. न्यूनाधिक लाभ होने के कारण १. व्यक्ति ध्यान करते हुए सत्सेवा नहीं कर सकता  । १. व्यक्ति नामजप करते हुए सत्सेवा कर सकता है ।
२. अंतर्मन पर कोई नया संस्कार निर्मित नहीं होता जैसे कि नामजप में होता है । इसी कारण से ध्यान द्वारा गत कई जन्मों के संस्कारों को अचेतन मन से निकालने में तथा उसके शुद्धिकरण में अधिक समय लगता है । २. अंतर्मन में नामजप का संस्कार निर्मित होता है जिससे गत कई जन्मों के संस्कार नष्ट हो जाते हैं और मन के शुद्धिकरण में अल्प समय लगता है ।
३. इसके द्वारा र्इश्वर के आंतरिक सान्निध्य में रहना संभव होता है परंतु कलियुग में कुछ लोग ही ऐसा कर पाते हैं । ३. इसके द्वारा सतत र्इश्वर के आंतरिक सान्निध्य में रहना संभव और सरल है ।

४. ध्यान की तुलना में नामजप करने के व्यावहारिक लाभ

ध्यान की तुलना में नामजप के व्यावहारिक लाभ के विषय में नीचे दिए गए सूत्रों में विस्तृत विश्लेषण किया गया है :

निर्विघ्न साधना : ध्यान में हमें विशेष स्थिति में बैठना होता है । यदि हमें पीठ में दर्द हो, तो उस स्थिति में बैठना कठिन हो जाएगा । नामजप हेतु किसी भी प्रकार का बंधन नहीं है । साथ ही, ध्यान का अभ्यास करते समय ध्यानावस्था में जाने में समय लगता है किंतु नामजप में ऐसा आवश्यक नहीं है ।

साधना में निरंतरता : ध्यान पूरे दिन नहीं किया जा सकता,  नामजप पूरे दिन किया जा सकता है । ईश्वरीय तत्त्व से एकरूप होने हेतु सतत साधना करना आवश्यक होता है ।

रूचि और अरूचि घटते जाना : भोजन करते समय हम नामजप कर सकते हैं । जब हमारा मन पूर्ण रूप से जप में मग्न हो जाता है, तो हम भूल जाते हैं कि हम क्या खा रहे हैं, जिससे हमारी रूचि और अरूचि घटने में सहायता होती है । यदि हम प्रत्येक कृत्य करते समय नामजप करते रहें, तो हमारे मन पर निर्मित सर्व संस्कार न्यून हो सकते हैं और यह सब ध्यान करने से नहीं होता ।

सतत जाग्रत अवस्था, अर्थात सहजावस्था अथवा र्इश्वर की अनुभूति : ध्यान करने वाला साधक ध्यानावस्था के उपरांत जाग्रत अवस्था में आ जाता है क्योंकि उसमें स्थूल आयाम के प्रति आकर्षण होता है । दूसरी ओर निरंतर नामजप करता हुआ साधक सतत ‘जाग्रत अवस्था’ में ही रहता है, जो एक प्रकार से अखंड ध्यानावस्था है ।

स्थूल जगत के प्रति आकर्षण : अंतर्मन में पूर्व जन्मों के संस्कारों के कारण ही हम स्थूल आयामों से आकर्षित होते हैं । ध्यान की अवस्था में अंतर्मन के ये संस्कार निकलते नहीं अपितु मात्र दबा दिए जाते हैं । नामजप के द्वारा ये संस्कार अत्यधिक मात्रा में नष्ट हो जाते हैं ।  

सूक्ष्म विचारों का प्रकट होना : मन को निर्विचार करना अर्थात अंतर्बाह्य कहीं भी ध्यान न देना । यद्यपि इस अवस्था में सूक्ष्म संस्कार कुछ क्षण के लिए उभरते हैं । दूसरी ओर, जब हम र्इश्वर का नामजप एकाग्रता से करते हैं, तब अन्य विचारों के विक्षेपण के कारण अथवा भक्ति केंद्र की निर्मिति होने के कारण ये सूक्ष्म संस्कार नहीं उभरते । इसलिए नामजप निर्विचार मन से अधिक श्रेयस्कर है ।

आध्यात्मिक अनुभूतियां और आध्यात्मिक स्तर : ध्यानावस्था में आने वाली अनुभूतियां किसी के आध्यात्मिक स्तर को नहीं दर्शाती । नामजप के द्वारा प्राप्त अनुभूतियां यह दर्शाती है । उदाहरण हेतु, ध्यानावस्था से प्राप्त निर्विचार अवस्था यह नहीं दर्शाती कि व्यक्ति को आत्म साक्षात्कार हो गया है, जबकि निरंतर अपनेआप होनेवाला नामजप यह दर्शाता है कि आध्यात्मिक स्तर ४०% है ।

सत्य अथवा भ्रामक अनुभूतियां : नामजप द्वारा होने वाली अनुभूतियां सत्य होती हैं क्योंकि यह र्इश्वर के नाम के साथ एकरूप होने के फलस्वरूप होती है । ध्यानावस्था में होनेवाली शून्य अथवा निर्विचार अवस्था की अनुभूति मायावी है क्योंकि इस अनुभूति के विषय में व्यक्ति अनभिज्ञ होता है । जब कोई नामजप करता है, तब सतर्कता के कारण वह वास्तव में उसका अनुभव करता है ।

विभिन्न स्तरों को अनुभव करना : ध्यानावस्था में हम एक जडता (प्रेतवत अवस्था) अनुभव करते हैं, नामजप से हम चैतन्य अनुभव करते हैं ।

कृत्रिम और सहज अवस्था : ध्यान कृत्रिम अवस्था है, नामजप से हम प्राकृतिक अवस्था प्राप्त कर र्इश्वर के संधान में रहते हैं ।

अहं:
नामजप और ध्यान में क्या अंतर है ?

अहं अति बलशाली एवं कठोर होता है । अतः निम्नलिखित कारणों से ध्यान के माध्यम से इसे नष्ट करना अत्यंत कठिन होता है ।

  • ध्यान के माध्यम से र्इश्वरीय तत्व से एकरूप होना सरल नहीं होता, क्योंकि यह विचार और अनुभव कि वह र्इश्वर से विभक्त है, सदैव दृढ बना रहता है । यह धारणा कि “मैं र्इश्वर से अलग हूं” अहं है ।
  • ‘‘मैं ध्यान करता हूं’’, ‘‘मैं ध्यानावस्था में जा रहा हूं’’ ऐसे विचार आना बहुत ही सरल है । इससे स्वयं का, मन एवं देह का भान बढता ही है साथ ही यह विचार भी कर सकता है कि वह विशेष और अद्वितीय है, जिससे अहं बढेगा ।
  • नामजप करते समय, र्इश्वर का भान अधिक होता है । र्इश्वर की ही कृपा से हम नामजप कर पा रहे हैं इसकी भी अनुभूति होती है । फलतः, साधना करने का अहंकार नहीं होता, और अहंकार का क्षय होता है ।

नामजप अनिष्ट शक्तियों से हमारी रक्षा करता है : ध्यान की अवस्था में मन निर्विचार हो जाता है । इस अवस्था में कोई अनिष्ट शक्ति हमें कष्ट दे सकती है । दूसरी ओर, जब हम नामजप करते हैं तब हमारे सर्व ओर एक सुरक्षा कवच का निर्माण होता है जो अनिष्ट शक्तियों से हमारी रक्षा करता है ।

साधना में पूर्णता : नामजप किसी भी और समस्त कृत्यों के साथ किया जा सकता है, अर्थात साधना के अन्य पहलू भी साथ में हो सकते हैं । उदाहरण हेतु, कोर्इ भाव जागृति करने, निरपेक्ष प्रेम (प्रीति) हेतु प्रयास करने, स्वभावदोष और अहं के बारे में पढकर उनके निर्मूलन करने इत्यादि हेतु प्रयास कर सकता है । यह महत्वपूर्ण है क्योंकि हमें सारे दायित्त्व जैसे घर, बच्चे, नौकरी आदि देखते हुए साधना करनी है ।

५. सारांश – ध्यान और नामजप

वर्तमान समय में अधिकांश लोग ध्यान साधना स्वयं में एक मनोवैज्ञानिक सुधार लाने की तकनीक के रूप में करते हैं, ना कि आध्यात्मिक प्रगति हेतु साधना के रूप में । यही कारण है कि ध्यान के माध्यम से जो लाभ होने चाहिए वे मात्र मनोवैज्ञानिक स्तर के ही रह जाते हैं ।

ऊपर दी गयी तुलना के आधार पर आज के युग में आध्यात्मिक प्रगति हेतु र्इश्वर का नामजप श्रेयस्कर है ।

यदि आप पहले से ही आध्यात्मिक प्रगति के हेतु से ध्यान साधना कर रहे हैं, तो हमारा सुझाव है कि आप उसे नामजप की साधना के साथ कीजिए । र्इश्वर के किस नाम का नामजप करना चाहिए, इस विषय में अधिक जानकारी के लिए पढें लेख : र्इश्वर के किस नाम का जप करें ।