SSRF द्वारा प्रकाशित प्रकरण अध्ययनों का मूल उद्देश्य है, उन शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के विषय में पाठकों का दिशादर्शन करना, जिनका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक हो, तो यह ध्यानमें आया है कि सामान्यतः आध्यात्मिक उपचारों का समावेश करने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं । SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को चालू रखने का परामर्श देता है । पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचारी पद्धति का पालन करें ।

सार

भारत निवासी अपर्णा गुडे फार्मसी स्नातक हैं । किशोरावस्था के आरंभिक काल से वे दीर्घकालीन अर्धशीर्षी (माइग्रेन) से पीडित थीं । उन्होंने सभी प्रचलित औषधियों का प्रयोग किया, परंतु कोई लाभ नहीं हुआ । अंतत: अध्यात्मशास्त्र शोध संस्थान (SSRF) के माध्यम से उन्हें यह ज्ञात हुआ कि उनके अर्धशीर्षी (माइग्रेन) का मूल कारण अनिष्ट शक्ति (राक्षस, भूत, पिशाच आदि) द्वारा किया आक्रमण है । अनेक आध्यात्मिक उपचारी विधियों को अपनाने के उपरांत ही उनका सिरदर्द नियंत्रण में आया । इस प्रकरण के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि कैसे अनिष्ट शक्तियों ने सूक्ष्म व्यवस्था निर्माण कर अर्धशीर्षी (माइग्रेन) उत्पन्न किया । साथ ही यह समझाया गया है कि योजनाबद्ध रूप से किस प्रकार आध्यात्मिक उपचारों को खोजा और संचालित किया जाता है । रोग दूर करने के लिए उपचार इस प्रकार खोजे जाते हैं जिससे सूक्ष्म व्यवस्था के हानिकारक परिणाम नष्ट हों और अंतत: रोग समूल नष्ट हो जाए ।

दीर्घकालीन अर्धशीर्षी (माईग्रेन) - आध्यात्मिक उपचार

१. अपर्णा की दीर्घकालीन अर्धशीर्षी (माइग्रेन) की समस्या

१३ वर्ष की आयु में अपर्णा के सिर में दर्द आरंभ हुआ । सिर के पिछले भाग में जहां मेरुतंत्र और मस्तिष्क जुडते हैं, वहां से वेदना आरंभ होती, तत्पश्‍चात तीव्र गति से वह दाईं अथवा बाईं ओर बढती और समय-समय पर अपना स्थान परिवर्तित करती रहती । ऐसा नियमित रूप से १५ दिनों  में होता रहता । यह वेदना ३ दिनों तक निरंतर बनी रहती, साथ में जी मितलाना और उल्टियां भी होतीं । तनिक भी आहट अथवा प्रकाश से सिर का दर्द और बढ जाता । इसकी तीव्रता इतनी अधिक होती कि उन्हें लेटे ही रहना पडता और कुछ भी करने में असमर्थ रहती । जब अपर्णा को अर्धशीर्षी (माइग्रेन) की वेदना होती, तबउन्हें बहुत शीघ्र क्रोध आता और उन्हें अपनी मां से अधिक ध्यान औरसहयोग की अपेक्षा रहती ।

 

२. दीर्घकालीन अर्धशीर्षी (माइग्रेन) पर प्राथमिक उपचार

दीर्घकालीन अर्धशीर्षी (माईग्रेन) की समस्या का निवारण करने हेतु अपर्णा ने अनेक डॉक्टरों के निर्देशों के अनुसार नोवालजीन, मायग्रेनिल, एंटासिड (अम्लतारोधी औषधियां) चिंताशामक औषधियां (anti-anxiety agents) जैसे आल्प्राजोलाम जैसी दवाईयां लीं, परंतु उनसे कोई लाभ नहीं हुआ । अपर्णा पर विभिन्न उपचार पद्धतियां जैसे होमियोपैथी के भी उपचार किए गए, परंतु उससे सिरदर्द में सीमित लाभ मिलता ।

३. दीर्घकालीन अर्धशीर्षी (माइग्रेन) में थोडी राहत

अर्धशीर्षी (माइग्रेन) का सिरदर्द आरंभ होने के सात वर्ष उपरांत, वर्ष १९९७ में अपर्णा किसी परिचित के माध्यम से SSRF से जुडीं । उन्होंने SSRF के मार्गदर्शन के अनुसार शीघ्र साधना आरंभ की । उन्होंने कुलदेवता का नामजप तथा इसके साथ ही मृत पूर्वजों के कारण उत्पन्न कष्टों के निवारण हेतु दत्तात्रेय देवता का नामजप भी आरंभ किया । तब उन्हें साधना के अच्छे परिणाम भी अनुभूत हुए । तीव्र अर्धशीर्षी (माइग्रेन) की बारंबारता (frequency) घट गई । अब १५ दिनों के स्थान पर दो-तीन माह में केवल एक बार ही दर्द होता; परंतु उसकी तीव्रता उतनी ही थी

४. अर्धशीर्षी (माइग्रेन) की तीव्रता बढना

अपर्णा साधना में समर्पित हो गईं । वह अध्यात्म समझने में लोगों की सहायता करतीं और अध्यात्म के प्रसार में भी सक्रिय हो गईं । वर्ष २००४ में जैसे ही अपर्णा ने समाज में अध्यात्म प्रसार की अपनी साधना की गति बढाई, उन पर अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच  इ.) के आक्रमण भी बढने लगे ।

ये आक्रमण उन्हें अध्यात्म प्रसार करने से रोकने हेतु किए जा रहे थे; क्योंकि अध्यात्म प्रसार के परिणाम स्वरूप समाज में सात्त्विकता बढती है । सात्त्विकता बढने से तम प्रधान अनिष्ट शक्तियों को बहुत असुविधा होती है; क्योंकि अनिष्ट शक्तियां सात्त्विक वातावरण में नहीं रह सकतीं ।

अचानक बिना किसी कारण के उनके सिरदर्द की तीव्रता बढ गई । अब सिरदर्द ५-६ दिनों तक बना रहता जबकि उसकी पुनरावृत्ति उतनी ही थी । एक आक्रमण बहुत ही तीव्र था ।

‘‘अप्रैल २००४ में, मैं उत्तर भारत में अध्यात्मप्रसार करने हेतु SSRF के वाराणसी स्थित केंद्र में थी । वहां मुझे सबसे तीव्र सिर दर्द हुआ । यह निरंतर १३ दिनों तक बना रहा और लक्षणों की तीव्रता घट ही नहीं रही थी । मैं अत्यंत व्यथित थी और आश्रम के साधक मेरी देखभाल कर रहे थे । १४ वें दिन अचानक मुझे यह सूझा कि मुझे प.पू. डॉक्टर आठवलेजी से बात करनी चाहिए । मैंने उनसे दूरभाष पर बात की । हमारे वार्त्तालाप के पहले ५ मिनटों में ही मेरा सिरदर्द पूर्णतया दूर हो गया और मेरी  दिनचर्या पूर्ववत हो पाई ।’’

संतों में अत्यधिक सत्त्व गुण और चैतन्य होता है । जबकि अपर्णा एक तम प्रधान अनिष्ट शक्ति से अत्यधिक पीडित थीं । जब कोई व्यक्ति प्रत्यक्ष में, दूरभाष अथवा विचारों के माध्यम से संतों के संपर्क में आता है, तो उच्चकोटि की सात्त्विकता के संपर्क में आता है । आगे वह सात्त्विकता उस व्यक्ति में संक्रमित होती है । इससे उस व्यक्ति की सात्त्विकता भी कुछ समय के लिए बढ जाती है ।

सात्त्विकता की वृद्धि अपर्णा को निम्नलिखित पर विजय प्राप्त करने हेतु पर्याप्त थी,

  • उस पकड पर, जो अपर्णा को कष्ट देनेवाली अनिष्ट शक्ति की उस पर थी
  • उसके कारण हो रहे अत्यंत पीडादायी सिरदर्द पर

५. अर्धशीर्षी (माइग्रेन) का आध्यात्मिक विश्‍लेषण

SSRF के सूक्ष्म-संवेदी विभाग के साधकों ने अपनी प्रगत छठवीं इंद्रिय से यह निदान किया कि सिरदर्द सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक अर्थात अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच  इ.) के कारण हो रहा था । मांत्रिक ने अपर्णा के पूरे शरीर में काली शक्ति के केंद्र बनाए थे जो नीचे दिए सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र में दर्शाए गए हैं ।

दीर्घकालीन अर्धशीर्षी (माईग्रेन) - आध्यात्मिक उपचार

इन केंद्रों की सहायता से पाताल से आती काली शक्ति का प्रवाह पूरे शरीर में बना रहता । सूक्ष्म मांत्रिक ने अपर्णा के सिर के पीछे, दोनों पैरों के तलवों और एडी पर सू्क्ष्म-रेखाचित्र (यंत्र) लगाए थे । ये सूक्ष्म यंत्र काली शक्ति ग्रहण और प्रक्षेपित करने के लिए विशेषरूप से सिद्ध किए गए थे । पैरों के सूक्ष्म यंत्र सू्क्ष्म आसुरी अलंकारों के रूप में थे, जिन्हें सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित निम्न चित्र में दर्शाया गया है ।

दीर्घकालीन अर्धशीर्षी (माईग्रेन) - आध्यात्मिक उपचार

अपर्णा के तलवों पर लगे सूक्ष्म यंत्रों से सूक्ष्म मांत्रिक पाताल के निचले स्तरों से संपर्क बनाए रखता था । इन यंत्रों के माध्यम से यह मांत्रिक कंटीली झाडी के रूप में काली शक्ति प्रक्षेपित करता था ।

सूक्ष्म मांत्रिक ने विभिन्न काली शक्ति के केंद्रों के माध्यम से अर्धशीर्षी (माइग्रेन) उत्पन्न करने के लिए रक्त वाहिकाओं के चारों ओर सर्पिलाकार कुंडल (spiral coils) बनाए थे । नीचे दिए सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र में हमने प्रगत छठवीं इंद्रिय वाले साधक ने अपर्णा के रक्ताभिसरण तंत्र (circulatory system) में क्या देखा, यह दर्शाया है ।

दीर्घकालीन अर्धशीर्षी (माईग्रेन) - आध्यात्मिक उपचार

नीचे दिए सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र में दर्शाया गया है कि मस्तिष्क की रक्त वाहिनियों को भी उसी प्रकार प्रभावित किया गया था ।

दीर्घकालीन अर्धशीर्षी (माईग्रेन) - आध्यात्मिक उपचार

काली शक्ति के सर्पिलाकार कुंडल शक्तिशाली, लचीले और काले रंग के थे । ये कुंडल बारी-बारी से रक्त वाहिनियों को आकुंचित और प्रसरित करते जिससे वाहिका संकीर्णन (vasoconstriction) होता । वाहिका संकीर्णन अर्थात रक्त वाहिकाओं के संकुचन की क्रिया । जब रक्त वाहिनी संकुचित होती हैं तब रक्त प्रवाह में रुकावट अथवा धीमी गति से रक्त प्रवाह होता है । इस वाहिका संकीर्णन का प्रभाव सिर के भाग में अधिकतम था । जिसके कारण अपर्णा तीव्र सिरदर्द अनुभव करती और उसे रक्त वाहिकाओं का फडकना अनुभव होता । यह पीडा असहनीय थी और उसकी तीव्रता बढती-घटती रहती थी ।

छठवीं इंद्रिय की सहायता से किए सूक्ष्म-विश्‍लेषण से यह ज्ञात होता है कि अपर्णा के मस्तिष्क से स्रवित होनेवाले प्रोस्टाग्लैंडिन का उपयोग नकारात्मक शक्ति के संचय केंद्र के रूप में किया जा रहा था, जो काली शक्ति प्रक्षेपित करते रहते थे । प्रोस्टाग्लैंडिन रासायनिक दूतों की भांति कार्य करते हैं । वे वहीं कार्य करते हैं, जहां उनका संश्‍लेषण होता है । उनके अनेक कार्यों में एक कार्य है, दाहकता का प्रतिसाद कार्यरत करना और ज्वर तथा वेदना उत्पन्न करना  ।

नीचे दिए सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र में यह दिखाया गया है कि कैसे मस्तिष्क भाग के प्रोस्टाग्लैंडिन को काली शक्ति से भर दिया गया । क्योंकि वे मस्तिष्क संग्राहकों (Brain Receptors) पर अपना प्रभाव डालते हैं, फलस्वरूप वे अर्धशीर्षी (माइग्रेन) की वेदना को और भी बढाते है ।

दीर्घकालीन अर्धशीर्षी (माईग्रेन) - आध्यात्मिक उपचार

६. अपर्णा के अर्धशीर्षी (माइग्रेन) पर आध्यात्मिक उपचार

आध्यात्मिक उपचारों का मूलभूत सिद्धांत है प्रभावित व्यक्ति में सत्त्व गुण बढाना आरंभ करना जिसके फलस्वरूप, उसी समय तमोगुण घटने लगे ।

अनिष्ट शक्तियों द्वारा किए किसी भी प्रकार के आक्रमणों पर साधना अधिक दीर्घकालीन, परिणामकारक और प्रभावी उपचार है । साधना तभी परिणामकारक होती है जब वह अध्यात्म के छ: मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार हो और उसमें नियमित रूप से गुणात्मक और संख्यात्मक वृद्धि हो । इससे व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर बढता है और सूक्ष्म सत्त्व गुण भी बढता है ।

'सूक्ष्म जगत' अथवा 'सूक्ष्म आयाम' शब्द की व्याख्या SSRF उस विश्व के रूप में करता है जो पंच-ज्ञानेन्द्रियों, मन एवं बुद्धि के परे है । यह 'सूक्ष्म-विश्व', देवदूतों, अनिष्ट शक्तियों एवं स्वर्ग आदि के अनदेखे संसार से संबंधित है जिसे केवल छठी इंद्रिय द्वारा ही समझा जा सकता है ।

साधना और आध्यात्मिक उपचार समानार्थी शब्द नहीं हैं । साधना से व्यक्ति आध्यात्मिक प्रगति करता है; जबकि आध्यात्मिक उपचारों से किसी विशिष्ट कष्ट को दूर किया जाता है । आध्यात्मिक उपचार के कारण थोडे समय के लिए राहत मिलती है । आध्यात्मिक उपचार करने से साधना से उत्पन्न शक्ति का उपयोग आध्यात्मिक आयाम अथवा सूक्ष्म आयाम की शक्तियों के आक्रमण का विरोध करने के लिए न होकर आध्यात्मिक स्तर बढाने के लिए होता है ।

सौभाग्य से अपर्णा की पृष्ठभूमि पहले से ही नियमित साधना की थी । साथ में प.पू. डॉक्टर आठवलेजी के मार्गदर्शन और उनकी देखरेख में अपर्णा के अर्धशीर्षी (माइग्रेन) पर आध्यात्मिक उपचार हो रहे थे । सर्वप्रथम उन्होंने सिरदर्द के लक्षणों में राहत के लिए आध्यात्मिक उपचार किए, उसके उपरांत सरदर्द के मूल कारण को दूर करने के लिए उपचार किए ।

१. अनुक्रमिक अंकों का जप : उन्होंने प्रथम  ५ मिनट तक उसे ५ से क्रमशः  १०, १५, २० से ५० तक अंक दोहराते हुए जप करने के लिए कहा । यह विशेष रूप से अपर्णा के प्रकरण में आध्यात्मिक उपचारी जप था । इससे अपर्णा को शीघ्र राहत मिली और उसका सिरदर्द स्थिर होकर उसकी तीव्रता घट गई । नीचे दिए रेखाचित्रों से अर्धशीर्षी (माइग्रेन) पर अंक जप करने से पहले का (रेखाचित्र १) और पश्‍चात का (रेखाचित्र २) परिणाम स्पष्ट होता है ।

दीर्घकालीन अर्धशीर्षी (माईग्रेन) - आध्यात्मिक उपचार

२. मुद्रा : जब अपर्णा का सिरदर्द स्थिर हुआ, तब प.पू. डॉ. आठवलेजी ने अपर्णा को कुछ विशेष मुद्रा करने के लिए कहा । मुद्रा करते समय नामजप भी करना था । मुद्रा करना अर्थात कोई स्थिति जैसे हाथ की सभी उंगलियों को एकत्रित कर उन्हें दोनों भौहों के मध्य रखना आदि ।

‘‘यह करने से मेरा सिरदर्द और भी घटने लगा क्योंकि विशेष मुद्रा करने के कारण मेरे सिर में जो काली शक्ति थी वह घटने लगी । इन उपचारों से मेरा सिरदर्द १० प्रतिशत घट गया ।”

३.  पैरों के लिए मुद्रा :

‘‘उसके पश्चात उन्होंने मेरे पैरों में स्थित केंद्रों के लिए कुछ विशेष आध्यात्मिक उपचार सुझाए । यहां पर नामजप के साथ हाथों की विशेष मुद्रा द्वारा सकारात्मक शक्ति को काली शक्ति के केंद्रों पर एकाग्र किया । इन उपचारों की परिणामकारकता से सूक्ष्म कंटीली झाडी ही नष्ट हुई और प्रोस्टाग्लैंडिन द्रव का स्त्राव (secretion) भी पाया गया । इसके कारण तुरंत ही पीडा पूर्ण रूप से घट गई ।’’

नीचे दिए गए आलेख (chart) में मुद्रा का प्रभाव दिखाया गया है

दीर्घकालीन अर्धशीर्षी (माईग्रेन) - आध्यात्मिक उपचार
“अब मेरी नियमित औषधियां बंद हो गई हैं । तबसे मुझे सिरदर्द नहीं हुआ है; तथापि यदि भविष्य में उत्पन्न हो जाए, तो मुझे उस पर कैसे मात करना है, यह ज्ञात हो गया है क्योंकि कौन से आध्यात्मिक उपचार करने हैं, यह मैंने सीख लिया है ।”

७. अर्धशीर्षी (माइग्रेन) पर कुछ सर्वसामान्य आध्यात्मिक उपचार पद्धति

उपरोक्त उपचारपद्धति विशेषरूप से अपर्णा के लिए थी । सभी प्रकरण समान नहीं होते और प्रत्येक प्रकरण में जहां अर्धशीर्षी (माइग्रेन) का मूल कारण अनिष्ट शक्ति अथवा पूर्वज हो, वहां एक ही सर्वसामान्य उपचार लागू करना कठिन होगा ।

फिर भी अर्धशीर्षी (माइग्रेन) यदि औषधियों से न्यून न हो रहा हो तो निम्नलिखित उपचार कर सकते हैं ।

१.  साधना आरंभ करें । हमने वह साधना सुझाई है, जिसमें अध्यात्म के छ: मूलभूत सिद्धांतों का समावेश है । इस विषयमें ‘अपनी आध्यात्मिक यात्रा आरंभ करें ’, इस विषय के लेख में अधिक जानकारी पा सकते है ।

२. पूर्वजों के कष्ट से सुरक्षा पाने के लिए ॥श्री गुरुदेव दत्त ॥ यह सुरक्षात्मक नामजप करना

३. नमक मिश्रित जल के उपचार करना

४. अनिष्ट शक्तियों के कारण होनेवाले सिरदर्द के लिए नामजप

यह सब प्रतिदिन नियमित रूप से करना होगा । सूत्र क्र. ३ और सूत्र क्र. ४ कुछ माह पश्‍चात सिरदर्द पूर्णरूप से समाप्त हो जाने पर बंद कर सकते हैं । परंतु सूत्र क्र. १ और सूत्र क्र. २ जीवनभर करें तो लाभदायक होगा क्योंकि वही भूतों से होनेवाले आक्रमण से हमारी सुरक्षा कर सकते हैं । इस प्रकरण में भूतों के आक्रमण से पीडित होने की आशंका इस बात से स्पष्ट होती है कि यह सिरदर्द किसी वैद्यकीय उपचार से ठीक नहीं हुआ था ।

नियमित साधना और नियमित रूपसे नामजप करने से हमारे जीवन की ८० प्रतिशत समस्याएं जिनका मूल आध्यात्मिक स्वरूप का हो, उनसे हमारी सुरक्षा होती है । इससे भी अधिक, हमें साधना के लाभ होते हैं, जिनके विषय में विस्तार से चिरंतन सुख के लिए आध्यात्मिक शोध इस लेख में दिया गया है ।