आध्यात्मिक उपचार पद्धति संबंधी अधिकतर पूछे जानेवाले प्रश्न

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> जो दूसरों से उपचार करवाना चाहते हैं, उनके लिए

प्रश्न : उपाचारक को कैसे चुनें ?

सबसे अच्छा है, स्वयं पर नियमित साधना के माध्यम से उपचार करें तथा स्वयं ही आध्यात्मिक उपचार करें । तथापि किसी को उपचारक की सहायता आवश्यक लगे, तो निम्न बातें आध्यात्मिक उपचारक  चुनते समय ध्यान में रखें :

  • उपचारक का आध्यात्मिक स्तर ५० प्रतिशत से अधिक होना चाहिए ।
  • सबसे अच्छा है ऐसे उपचारक को चुनें जिसे धन तथा यश की कामना न हो, अपितु जो अंतर्मन से लोगों की समस्याएं सुलझाने में सहायता करना चाहता है ।
  • उपचारक किसी संत अथवा गुरु के मागदर्शन में साधना कर रहा हो । (कृपया ध्यान दें, किसे हम गुरु अथवा संत मानें इसके लिए आवश्यक मार्गदर्शक सूत्र हैं ।) यदि कोई ऐसा उपाचरक मिलता है, जो इन सब मापदंडों को पूरा नहीं करता है तो बहुत अधिक संभावना है कि उसके माध्यम से अनिष्ट शक्ति हम पर उपाचार करे ।

उपरोक्त मापदंडों के साथ, ऐसा उपचारक चुनना अच्छा रहेगा, जिसमें निम्न विशेषताएं भी हों ।

वैसे यह जानना कि उपचारक इन सभी मापदंडों को पूरा करता है अथवा नहीं, केवल जागृत छठवीं ज्ञानेंद्रिय की क्षमता के माध्यम से ही संभव है । इसलिए यह सामान्य मनुष्य की क्षमता के परे है । साधना के छ: मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार साधना करने से हम छठवीं ज्ञानेंद्रिय विकसित तथा जागृत कर सकते हैं ।

प्रश्न : क्या शुल्क देना उचित है ?

आध्यात्मिक उपचार के लिए शुल्क देना उचित ही है । परंतु उपाचारक उतना ही शुल्क ले जिससे उसके जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हो सके अथवा इसके माध्यम से वह आध्यात्मिक उपचार पद्धतियों का, विशेषकर साधना का प्रसार कर सके ।

उपचारक के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है कि उसका लक्ष्य धन अथवा यश की प्राप्ति न हो ।

प्रश्न : यदि आध्यात्मिक उपचार ठीक से न हुआ, तो क्या मुझे किसी प्रकार से हानि हो सकती है ?

इसका छोटा सा उत्तर है हां । यह निम्न प्रकार से हानिप्रद हो सकता है :

जो उपचारक यश और धन के पीछे रहते हैं और जिनका आध्यात्मिक स्तर भी न्यून होता है, उनके अनिष्ट शक्तियों के निशाने पर रहने की आशंका अधिक होती है ।

उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियां उपचारक के इन दोषों और आसक्ति का लाभ लेकर उन्हें प्रभावित तथा आविष्ट करती हैं । यह आवेशन छल से तथा सूक्ष्म रूप से किया जाता है और उपचारक को इसकी तनिक भी भनक नहीं लग पाती कि वह अनिष्ट शक्तियों द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है । अत:यह किसी के ध्यान में नहीं आता । उपचारक को आविष्ट करने के उपरांत, आरंभ में वे अपने ही आध्यात्मिक बल द्वारा उस व्यक्ति के, जिस पर उपचार किए जा रहे हैं, उसके रोग के लक्षण न्यून कर देती हैं । ऐसा करने से उपचारक पर लोगों में श्रद्धा निर्मित होती है, परंतु साथ ही वे उस व्यक्ति में काली शक्ति भी संक्रमित कर देती हैं ।

यदि उपाचारक की छठवीं ज्ञानेंद्रिय विकसित नहीं है तो वह सूक्ष्म जगत के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं में भेद नहीं कर सकता । इसलिए हो सकता है कि उपचारक सोचता हो कि वह दिव्य आत्माओं द्वारा शक्ति को दिशा दे रहा है,परंतु वास्तव में वह दिव्य आत्माओं का स्वांग कर रही अनिष्ट शक्तियों की काली शक्ति से उपचार कर रहा होता है । इसलिए आरंभ में श्रद्धा उत्पन्न करने हेतु रोगी के लक्षण ठीक होते हुए दिखाई देने पर भी उसके दूरगामी प्रभाव बहुत हानिप्रद होते हैं ।

प्रश्न : यदि हमारा कोई प्रिय व्यक्ति अपनेआप पर उपचार करने से मना कर रहा हो, तो उसके आध्यात्मिक उपचार के लिए क्या करना चाहिए ?

यदि कोई व्यक्ति आध्यात्मिक उपचार न करने के अपने मत पर अटल हो, तो उसको समझाना बहुत कठिन होता है । तथापि जब हमारे प्रिय व्यक्ति यह उपचार करने के लिए तैयार न हों, तो हम निम्न सूत्र अपने ध्यान में रख सकते हैं:

  • आध्यात्मिक उपचारों के सिद्धांत पर लेख पढें, जिससे कि हम उन्हें आध्यात्मिक उपचारों का आधारभूत शास्त्र समझा सकें । उन्हें बुद्धि के स्तर पर समझाएं कि उन्हें आध्यात्मिक उपचार क्यों करने चाहिए । यह उनकी अनिच्छा पर मात करने के लिए संभवत: किसी प्रकार उनकी सहायता कर सकता है ।
  • प्रार्थना करें कि उसकी बुद्धि पर किसी भी प्रकार का अनिष्ट शक्तियों का काला आवरण आया हो, तो वह नष्ट हो जाए, जिससे वह आपका सुझाव सुनें । आविष्ट अनिष्ट शक्तियां कई बार व्यक्ति की बुद्धि पर काली शक्ति का आवरण लाती हैं और उसकी निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित करती हैं ।
  • साधारण नियम ऐसा है कि उन्हें अधिक से अधिक तीन बार, तीन अलग-अलग समय पर समझाकर देखें । इसके उपरांत सब उन पर निर्भर होगा ।
  • स्मरण रहे कि किसी का सुनना अथवा न सुनना, अंतत:प्रत्येक के प्रारब्ध के अनुसार होता है । यदि किसी का प्रारब्ध तीव्र है,तो अधिकांश प्रकरण में उन्हें सुनने का विचार नहीं आएगा, जिससे उन्हें कई वर्ष कष्ट भोगना पडेगा । हम सभी अपनी-अपनी आध्यात्मिक यात्रा पर हैं तथा हम किसी को आध्यात्मिक प्रगति करने में सहायता कर सकें तो हमें करनी चाहिए । सामनेवाला व्यक्ति यदि बार-बार विनती करने पर भी नहीं सुने, तो अच्छा है कि हम परिस्थिति के प्रति साक्षी भाव अपनाएं (यह कठिन हो सकता है) क्योंकि नहीं सुनने का कारण अधिकतर हमारे प्रिय व्यक्ति के प्रारब्ध में ही न सुनना तथा कष्ट भोगना होता है ।

> अपनेआप पर आध्यात्मिक उपचार करना

प्रश्न : आध्यात्मिक उपचारों के परिणामों की व्याख्या कैसे करें ?

जब तक किसी के पास अतिंद्रिय संवेदीक्षमता अथवा अति प्रगत छठवीं इंदिय न हो, तबतक आध्यात्मिक उपायों के विशिष्ट परिणामों को समझना अत्यंत कठिन है । इसका कारण यह है कि प्रगत छठवीं इंद्रिय के अभाव में, हमें आध्यात्मिक उपायों से जो अनुभव आते हैं उनके पीछे का वास्तविक कारण समझ पाना कठिन होता है । उदा. दो व्यक्तियों को विभूति के उपाय करने से लाभ हुआ है, परंतु दोनों के अनुभव पूर्णतः भिन्न होते हैं ।

  • अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित व्यक्ति कष्ट अनुभव कर सकता है । प्रत्यक्ष में व्यक्ति में आविष्ट अनिष्ट शक्ति को ये कष्ट होते हैं, क्योंकि विभूति से प्रक्षेपित चैतन्य अनिष्ट शक्ति की नकारात्मकता से युद्ध आरंभ करता है ।
  • जब व्यक्ति अनिष्ट शक्ति से प्रभावित नहीं होता, तब विभूति के चैतन्य से निकलनेवाले सकारात्मक स्पंदनों से उसे हल्कापन लगता है ।

अन्य बात यह है कि उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियां लंबे समय तक चैतन्य का सामना कर पाती हैं तथा इससे ऐसा प्रतीत होता है कि उन पर उपचार का प्रभाव नहीं हो रहा है । उपचारों के भ्रामक प्रभाव दिखाकर, वे व्यक्ति के मन में उपचारों के प्रभावी होने अथवा न होने के संदर्भ में झूठा आभास उत्पन्न करती हैं ।

प्रश्न : मुझे कैसे पता चलेगा कि उपाय ठीक से हुआ है अथवा नहीं ?

जब हम आध्यात्मिक उपचार आरंभ होने तथा लक्षण न्यून होने में गहरा परस्पर संबंध देखते हैं तब हम अनुमान लगा सकते हैं कि उपचार से लाभ हुआ है । उदा. कोई व्यक्ति (spasms) से पीडित है । जब उसने नामजप आरंभ किया, तो मरोड तुरंत न्यून हो गया । जब उसने नामजप बंद किया, तो मरोड फिर से पडने लगे । यह समस्या वह कई वर्षों से झेल रहा था और किसी भी प्रकार के चिकित्सीय उपचार से उसे सहायता नहीं मिली । यहां मरोड एकदम से चला जाता है और मरोड न्यून होने के पीछे अन्य कोई कारण भी नहीं बताया जा सकता ।

कुछ प्रसंगों में, उपचार के प्रभाव अधिक सूक्ष्म और व्यक्तिगत स्तर के हो सकते हैं, जहां व्यक्ति अपने जीवन में गुणात्मक सुधार तथा नकारात्मक विचारों में न्यूनता अनुभव करता है ।

अधिकतर लोग मात्र लक्षणों के ठीक हो जाने में ही रुचि रखते हैं । वे इस बात से सचेत नहीं होते कि उन्हें अनिष्ट शक्तियां अथवा पूर्वज कष्ट दे रहे हैं, जो उनके कष्टों के मूल कारण हैं । अनिष्ट शक्तियों को नष्ट करना रोग के लक्षणों को दूर करने से कहीं अधिक कठिन है, जैसे कि पामा (एग्जिमा) अथवा स्पास्म जो उनके द्वारा निर्माण किए जाते हैं । साधना ही समस्या के मूल कारण, अर्थात अनिष्ट शक्ति की समस्या को दूर करने का एकमात्र स्थायी उपचार है ।

प्रश्न : प्रतिदिन मुझे कितने समय आध्यात्मिक उपचार करने चाहिए ?

उत्तर : आध्यात्मिक उपचारों के लिए कितना समय देना है,यह उपचारों के प्रकार से निर्धारित होता है । सबसे अच्छा आध्यात्मिक उपचार है साधना करना । साधना में वृद्धि होकर शीघ्र राहत पाने के लिए अन्य उपचार भी कर सकते हैं ।

सुझाव यह है कि कष्ट के लक्षणों की तीव्रता के आधार पर आध्यात्मिक उपचार कुछ समय के लिए प्रतिदिन किए जाएं ।

  • मंद कष्टों में, १-२ घंटे एक ही सत्र में अथवा अनेक सत्र में भी आध्यात्मिक उपचार (साधना अथवा अन्य प्रकार) कर सकते हैं ।
  • कष्ट मध्यम हो तो, ३-४ घंटे अथवा अधिक करना चाहिए ।
  • कष्ट तीव्र हो तो उपचार प्रतिदिन अधिक से अधिक समय करें ।

मंद, मध्यम तथा तीव्र कष्ट के लक्षणों के उदाहरण के लिए मुझे कैसे पता चलेगा कि मुझे आध्यात्मिक उपचार की आवश्यकता है ? यह संदर्भ लेख पढें

प्रश्न : आध्यात्मिक उपचार मैं कितने समय तक करती रहूं ?

उत्तर : लक्षण समाप्त हो जाने के उपरांत उपचार २-४ महीनों तक आरंभ रखने चाहिए । जैसा कि संक्रमित ब्रोंकाइटिस (श्‍वसन शोथ, कंठ सूजन) में खांसी के बंद हो जाने का अर्थ यह नहीं होता कि फेफडों से रोग नष्ट हो गया है । जिन कीटाणुओं के कारण ब्रोंकाइटिस होता है तथा खांसी होती है, हो सकता है कि वे पूर्णतः नष्ट न हुए हों । अतः रोग नष्ट करने के लिए जो जीवाणुनाशक औषधि (एंटिबायोटिक) बताई जाए, उसे बताए अनुसार उतने दिन तक लेनी होती है । उसी प्रकार, लक्षण न दिखाई देने पर भी अनिष्ट शक्ति का प्रभाव रहता है, अत: पूर्णत: ठीक होने के लिए उपचार आरंभ रखना आवश्यक है । रोग को ठीक होने में कितना समय लगा, इसपर  ठीक होने के उपरांत भी कितने समय तक उपचार आरंभ रखना है, निर्भर करता है । जितना अधिक समय ठीक होने में लगा उतना ही अधिक समय ठीक होने के उपरांत भी उपाय करने की आवश्यकता होती है ।

प्रश्न : स्वस्थ होने में कितना समय लगता है ?

उत्तर : आध्यात्मिक कारणों से होने वाले कष्टों को ठीक होने में कुछ क्षणों से लेकर कई महिनों अथवा वर्षों तक का समय लग सकता है । उदाहरण के लिए पूर्वजों के कष्ट के कारण चकता की खुजली होने पर तीर्थ अथवा गोमूत्र लगाने से तुरंत राहत मिल सकती है । यदि धूम्रपान करने का संस्कार कुछ व्यक्ति की रुचि के कारण (मानसिक) और कुछ अनिष्ट शक्ति से आविष्ट होने के कारण (आध्यात्मिक) है, तो उस पर मात करने के लिए एक वर्ष तक भी साधना करनी पड सकती है । स्वस्थ होने में लगने वाला समय कुछ सूत्रों पर आधारित है ।

  • रोगी के प्रारब्ध की तीव्रता
  • साधना की तीव्रता
  • उपचारक का आध्यात्मिक बल
  • व्यक्ति पर आक्रमण अथवा उसे आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति का बल
  • व्यक्ति में जितने स्वभावदोष होंगे, उसे स्वस्थ होने में उतना अधिक समय लगता है । क्योंकि अनिष्ट शक्तियां क्रोध, भय, भावनात्मकता इन स्वभावदोषों का उपयोग कर मन में काली शक्ति का केंद्र निर्माण करती हैं जिससे वह सरलता से प्रवेश कर सकें ।

प्रश्न : क्या विश्वास और श्रद्धा महत्त्व रखती है ?

हां, श्रद्धा से लाभ अधिक होता है । संदर्भ हेतु पढें लेख क्या बिना श्रद्धा के नामजप करने से लाभ होता है ?