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१. प्रास्ताविक

ईश्‍वर की सेवा, अर्थात शाश्‍वत सत् की सेवा । गुरुकृपायोग की अष्टांग साधना का यह तीसरा चरण है । ईश्‍वर की सेवा केवल एक कर्म के रूप में नहीं, अपितु सत्सेवा का ध्येय रखकर की जाए, तो इस सेवा से अत्यधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है । केवल करना है अथवा वचन दिया है, इस हेतु से की गई यंत्रवत (mechanical) सेवा से अपेक्षित आध्यात्मिक लाभ नहीं होता । सत्सेवा ईश्‍वर की सेवा है, यह ध्यान में रखते हुए प्रत्येक कृत्य साधना के दृष्टिकोण से करना चाहिए । पूरी लगन और मन से ईश्‍वर की सेवा परिपूर्ण करने का प्रयास होना चाहिए । संक्षेप में, ईश्‍वरीय कृपा संपादन करने हेतु प्रत्येक कृत्य को आध्यात्मिक दृष्टि से करना ही सत्सेवा है ।

२. नामजप करने और सत्संग में उपस्थित रहने की तुलना में सत्सेवा अधिक महत्त्वपूर्ण क्यों है ?

साधना में नामजप का महत्त्व ५ प्रतिशत, सत्संग का महत्त्व ३० प्रतिशत एवं सत्सेवा का महत्त्व १०० प्रतिशत है । सत्सेवा इतनी महत्वपूर्ण क्यों है ? इसका कारण यह है कि सत्सेवा करने से साधक साधना के आठों चरणों का अभ्यास कर पाता है । उदाहरणार्थ, सत्सेवा करते समय साधक नामजप एवं प्रार्थना कर सकता है । ईश्‍वर की सेवा करते समय साधक सत के संग में ही होता है । ईश्‍वरीय कार्य में योगदान देने से सेवानुसार साधक के समय, तन, मन तथा धन का त्याग होता है । ईश्‍वर की सेवा भाव वृद्धि का अवसर प्रदान करती है ।

अन्य साधकों के साथ सामूहिक सत्सेवा करने से हमें अपने स्वभावदोष तथा अहं के पहलुओं का भान होकर हमें उनके निर्मूलन हेतु प्रयत्न करने का अवसर मिलता है । सामूहिक सत्सेवा करने से साधक एक दूसरे के समीप आते हैं और व्यापकत्व में वृद्धि होती है ।

व्यावहारिक जीवन में कर्म करते समय कुछ पाने की अपेक्षा होती है, अपितु निरपेक्ष भाव से की गई सत्सेवा का फल अत्यधिक सुंदर होता है जिसे आनंद कहते है ।

३. कार्य तथा सत्सेवा में अंतर

किसी भी साधारण व्यावहारिक कर्त्तव्य और सत्सेवा में लक्षणीय भिन्नता है । यदि हम नौकरी अथवा कोई अन्य कार्य करते हैं तो कार्य पूर्ण होने पर हमें निश्‍चित लाभ की अपेक्षा होती है । उदाहरणार्थ महिने के अंत में यदि वेतन न मिलता तो अधिकतर लोग प्रतिदिन नौकरी पर न जाते ।

अधिकतर यह अहं होता है कि मैं काम करता हूं, तो मेरे प्रयत्नों से मेरी पहचान बनें । परंतु सत्सेवा में विपरीत होता है । सत्सेवा में कर्तापन की भावना नहीं होती क्योंकि ईश्‍वर ही सेवा करवा रहे हैं एवं हम केवल माध्यम हैं, ऐसी धारणा मन में जागृत रहती है । आध्यात्मिक प्रगति होने पर यह धारणा अधिक दृढ होकर ईश्‍वर के प्रति भाव अथवा भक्ति में वृद्धि होती है ।

ईश्‍वरीय कार्य में सहयोग बढने से व्यक्ति का ईश्‍वर से संबंध अधिक गहरा होने लगता है । ऐसे व्यक्ति के व्यावहारिक कर्त्तव्य तथा कार्य में व्यस्त होने पर भी उसमें सकारात्मक शक्ति का संक्रमण होता है । दिनभर व्यस्त होने के पश्‍चात भी यदि सत्सेवा कर रहा हो, तो उसे किसी भी प्रकार से थकान नहीं लगती ।

४. सत्सेवा का लाभ

१. दैवी चैतन्य प्राप्त होना : ईश्‍वरीय सेवा के कारण हम सत्सेवा की कालावधि में सत् में रहते हैं । हम ईश्‍वरीय कार्य करते हैं, इसलिए ईश्‍वर हमें दैवी चैतन्य प्रदान करते हैं । दैवी चैतन्य से रज-तम घटकर सात्त्विकता में वृद्धि होती है, जो प्रत्येक साधक का ध्येय है ।

२. दैवी गुणों का विकास : समय का पालन, नियोजन कौशल्य, सेवाभाव आदि गुणों का विकास होता हैं ।

३. अन्यों की इच्छा को प्रधानता देना : दूसरों के भिन्न व्यक्तित्व के कारण उत्पन्न होने वाली प्रतिक्रियाओं पर नियंत्रण रख हम दूसरों की इच्छाओं को महत्त्व देना सीखते हैं । सत्सेवा में अन्यों के मत को महत्त्व देने से हमें दूसरों से सीखने का और उनके दृष्टिकोण समझने का अवसर प्राप्त होता है । इसके परिणामस्वरूप अहंभाव न्यून होने में सहायता होती है ।

४. अडचनों पर उपाय योजना : अन्यों को कौनसी समस्याएं हैं और उन्होंने क्या उपाय योजना की, यह सीखने को मिलता है ।

५. अहं न्यून होना : साधक को जब यह भान होता है कि प्रार्थना करने से और कर्त्तापन न लेने से सेवा अच्छी होती है, तो उसका अहं न्यून होता है ।

६. संगठित भाव विकसित होना : अन्य साधकों को साधना में सहायता करने का अवसर प्राप्त होता है । जब हम दूसरों की सहायता करते हैं तब स्वयं पर से ध्यान हटाकर हम दूसरों पर ध्यान देना सीखते हैं । इससे दूसरों से निकटता और साथ ही व्यापकता आती है परिणामस्वरूप अहं न्यून होता है ।

७. अन्यों की चूकों से सीखना : अन्यों की चूकों से सीखकर हम हमसे होनेवाली चूकों को न्यून करना सीखते हैं ।

८. प्रेरणा मिलना : अन्य साधक अडचनों पर मात कर कैसे ईश्‍वर की सेवा करते हैं, यह देख हमें अपनी साधना वृद्धिंगत करने की प्रेरणा मिलती है ।

९. साधना-वृद्धि में सहायक : अध्यात्मप्रसार की सेवा से एकरूपता बढने का अवसर मिलता है । इससे शीघ्र आध्यात्मिक प्रगति होती है ।

५. सर्वोत्तम सत्सेवा कौनसी है ?

ईश्‍वर प्राप्ति के अनेक मार्ग हैं । अध्यात्मप्रसार सर्वोत्तम सत्सेवा है ।

कुछ सरल बातें जो हम कर सकते हैं :

  • अपने मित्रों तथा सगे-संबंधियों को SSRF के आध्यात्मिक लेखों अथवा लिंक संबंधी संपत्र (इ-मेल)भेजना
  • सत्संग एवं कार्यशाला के लिए कार्यस्थल की तैयारी में सहायता करना तथा सत्संग के उपरांत स्वच्छता करना
  • जालस्थल की सत्सेवा में अपने संगणकीय कौशल का उपयोग करना
  • SSRFके मार्गदर्शनानुसार साधना करते समय सीखने हेतु मिले सूत्र और अपने अनुभव अन्य लागों में बांटना
  • अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त अन्य भाषा का ज्ञान हो, तो SSRFके लेखों के भाषांतर की सेवा करना
  • SSRFके आश्‍चर्यजनक ईश्‍वरीय ज्ञान संबंधी लेखों के विषय में सोशल मीडिया द्वारा जागृति करना
  • आनंद प्राप्ति हेतु अध्यात्म के छ: मूलभूत सिद्धांतानुसार नियमित और आवश्यक साधना करने हेतु अन्यों को प्रोत्साहित करना

६. सत्सेवा करते समय साधकों को हुई अनुभूतियां

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१. कुछ मास पूर्व मैं एक साधक के साथ अपने एक सहकर्मचारी के घर उनसे मिलने गया । उस सहकर्मचारी ने हमें SSRFके जालस्थल के प्राविधिक (technical) सुधार हेतु सहायता करने की इच्छा दर्शाई । मुझे ऐसे लगा जैसे गुरुतत्व ने हमारी सहायता करने हेतु उन्हें भेजा है क्योंकि तांत्रिक दृष्टि से हमें जो सुधार करने थे उस क्षेत्र में उनका अच्छा अनुभव था । हमारी पूरी बातचीत के समय मुझे ईश्‍वर के अस्तित्व का अनुभव हो रहा था और मेरी भावजागृति हो रही थी । मेरे सहयोगी साधक का भी भाव जागृत हुआ । हमने उनके अध्यात्मसंबंधी कुछ प्रश्‍नों का समाधान भी किया । सेवा के लिए कितना समय दे पाएंगे ? ऐसा पूछने पर उन्होंने अपना पूर्ण अतिरिक्त समय देने का आश्‍वासन दिया । दूसरे दिन उन्होंने मेरे सहयोगी साधक को पिछले दिन हमारे साथ बिताए समय में हुई अपनी अनुभूति बताई ।

उन्होंने बताया कि उनके मन में अध्यात्मसंबंधी जो भी प्रश्न आए, उन प्रश्‍नों को पूछे बिना ही मेरे द्वारा उनके प्रश्‍नों का समाधान होता गया । उन्हें यह अनुभूति इतनी आश्‍चर्यजनक लगी कि हमारे जाने के पश्‍चात अनुभूति के प्रभाव से बाहर आने में उन्हे कुछ समय लगा । -श्री. शॉन क्लार्क, ऑस्ट्रेलिया

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२. कुछ दिन पहले SSRFका सत्संग था । सत्संग में मुझे सेवा की कालावधि प्रतिदिन १-२ घंटे बढाने के लिए कहा गया । उस सत्संग में मुझे ऐसे लगा जैसे ईश्‍वर मुझे कुछ प्रदान कर रहे हैं, जिससे मुझे शक्ति एवं ऊर्जा मिले । उस सप्ताह सत्सेवा हेतु मैं प्रतिदिन न्यूनतम १ घंटा सेवा कर पाया ।

सत्सेवा के उस सप्ताह के उपरांत मुझे बोध हुआ कि उस सत्संग से मुझे बहुत आंतरिक शक्ति मिली है । पहले की भांति, कोई भी मानसिक अथवा बौद्धिक संभ्राति मुझे अस्थिर न कर सकी । सत्सेवा की कालावधि बढाना संभव होने से, उस दिन मुझे और शांति का अनुभव हुआ । साथ ही अध्यात्म अथवा आध्यात्मिक आयाम विषयक शंकाएं एवं संदेह जो मुझे वर्षों से त्रस्त कर रहे थे, सभी अकस्मात ही दूर हो गए ।

इतने दिनों से मुझे अपने निकट रखकर ईश्‍वर ने जो कृपा मुझ पर की उसके लिए मैं ईश्‍वर चरणों में कृतज्ञ हूं । मुझे कई बार बताने पर भी मैं कई वर्षों से अपेक्षित सेवा नहीं कर रहा था । अब मैं अधिक से अधिक सेवा करने का प्रयास करूंगा ।

३. SSRF के एक साधक को बोलते समय तुतलाने की समस्या थी । उन्हें बचपन से यह समस्या थी और उसका कोई उपाय नहीं था । साधना के प्रभाव से और अध्यात्मसंबंधी प्रवचन देना, सत्सेवा है यह स्वीकारने से वे सत्संग में कई जिज्ञासुओं के समक्ष बिना तुतलाए बोल सके । अधिकांशतः न तुतलाने वाले लोग भी बडे जनसमुदाय के समक्ष बोलते समय असुरक्षितता अनुभव करते हैं क्योंकि बडे जनसमुदाय के समक्ष बोलते समय उन्हें भय होता है कि कहीं उनसे चूक न हो जाए । तुतलाने की समस्या जो जन्म से सता रही थी, उस पर केवल सत्सेवा से मात करना, यह उसके लिए चमत्कार से कम नहीं था ।

निष्कर्ष

सत्सेवा शीघ्र आध्यात्मिक प्रगति का माध्यम है, अर्थात साधक के लिए आवश्यक गुणों का संवर्धन करने का अवसर प्रदान कर, मन, बुद्धि और अहं का लय करने में सहायक है ।

यह साधक पर निर्भर है कि वह सत्सेवा के प्रत्येक अवसर का लाभ उठाकर उससे अधिक फल कैसे प्राप्त करे । ईश्‍वरीय कार्य तो किसी के भी माध्यम से पूर्ण होता ही है । इसलिए साधक इस अहं से बचे कि उसके बिना सत्सेवा अपूर्ण रह जाएगी और स्वयं को सतत यह भान करवाता रहे कि यदि वह सत्सेवा ना भी करे तो अन्य कोई भी साधक उसे पूर्ण करेगा ।

जब साधक गुरुकार्य में माध्यम बनने का प्रयास करता है, तब दैवी गुरुतत्व सक्रिय होकर उस साधकतक पहुंचता है ।

प्रिय पाठक एवं साधक, SSRF का अनुरोध है कि यदि आपने नामजप करना तथा सत्संग मे आना आरंभ किया है, तो स्वाभाविक रूप से अगले चरण हेतु आप सत्सेवा करने का प्रयास कर इस लेख में दी गई अनुभूतियों को स्वयं अनुभव करने का प्रयास करें ।

यदि आप सत्सेवा करना चाहतें हैं तो कृपया Login facility से हमें संपर्क करें ।