वैश्विक तापमान में वृद्धि के विविध कारण (ग्लोबल वार्मिंग) – एक आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य

वैश्विक तापमान में वृद्धि के विविध कारण (ग्लोबल वार्मिंग) – एक आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य

वर्तमान समय में तापमान-वृद्धि, वातावरण परिवर्तन तथा प्राकृतिक आपदाओं की बढी हुई मात्रा विश्व अनुभव कर रहा है । आध्यात्मिक शोध के अनुसार तापमान-वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) का मूल कारण है, ब्रह्मांड में निर्धारित कालावधि के उपरांत होनेवाले चक्रीय परिवर्तन । वैश्विक तापमान-वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) के जो परिणाम आज तक हमने अनुभव किए हैं, वास्तव में वह एक विध्वंसक आपात्काल का प्रारंभ है, जिस की तीव्रता आगामी ५-१० वर्षों में और भी बढेगी । मनुष्य द्वारा प्रकृति के साथ अनुचित व्यवहार करने से चक्रीय परिवर्तनों का यह विध्वंसक स्वरूप और भी बिगड सकता है । मनुष्य अपनी घटती आध्यात्मिक चेतना के कारण अनिष्ट शक्तियों के प्रभाव से सुरक्षा प्राप्त करने की क्षमता खो बैठा है । वर्तमान में जो अनुचित आचरण हम देख रहे हैं, वह इसी का परिणाम हैं । हमारे आध्यात्मिक दृष्टि से प्रदूषित मन को, शुद्ध मन में परिवर्तित करने का एकमात्र उपाय है साधना । यह लेख समझने के लिए, कृपया पढें :

  • सत्त्व, रज और तम, ब्रह्मांड के तीन मूलभूत सूक्ष्म घटक
  • पांच मूलभूत तत्त्व (पंचमहाभूत)
  • ब्रह्मांड की आयु तथा उसमें होनेवाले चक्रीय परिवर्तनसंबंधी आध्यात्मिक शोध

विषय सूची

१. वैश्विक तापमान-वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग)  के परिणाम : प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता में वृद्धि

पिछले एक दशक से हम पूरे विश्व में प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता में वृद्धि होते देख रहे हैं । कभी प्रसारमाध्यमों द्वारा तथा हममें से कुछ ने प्रत्यक्ष अनुभव द्वारा प्रकृति के इस भयावह सामर्थ्य को अनुभव किया है । कुछ समय पूर्व दक्षिण-पूर्वी एशिया एवं जापान में आई सुनामी, पाकिस्तान, हैती तथा चीन में हुए भूकंप, साथ ही कटरिना एवं उत्तर और मध्य अमरीका में आई अन्य चक्रवात आदि द्वारा हुए प्राकृतिक संकट देखे हैं । इन की तीव्रता के कारण हुआ अभूतपूर्व विध्वंस तथा जन-हानि हमारे मन पर अंकित हो गई है ।

वैश्विक तापमान-वृद्धि(ग्लोबल वार्मिंगसे संबंधित तथ्य International Strategy for Disaster Reduction, और संयुक्त राष्ट्रसंघ की शाखा Centre for Research on the Epidemiology of Disasters से प्राप्त आंकडों के रूप में हमारे पास उपलब्ध है । इससे पता चलता है कि गत दो दशकों में प्राकृतिक आपदाओं की संख्या बढती जा रही है ।ग्लोबल वार्मिंग- १९०० से २०११ तक सूचित की गई प्राकृतिक आपदाएं

विश्वविख्यात वैज्ञानिक संस्थानों ने भी इस बात का स्वीकार किया है कि पृथ्वी का तापमान बढता जा रहा है । IPCC जो कि संयुक्त राष्ट्रसंघ की मौसम परिवर्तनसंबंधी समिति है, उस ने २००७ में कहा है कि पिछली शताब्दी में पृथ्वी का तापमान तीन चौथाई सेल्सियस बढ गया है । इसमें भी वैश्विक तापमान में अधिकांश वृद्धि(ग्लोबल वार्मिंग)  पिछले कुछ दशकों में हुई है ।

कुछ राष्ट्रीय वैज्ञानिक संस्थान दावा करते हैं कि मानवीय गतिविधियां ही पिछले कुछ दशकों में हुई तापमान-वृद्धि के लिए अधिक मात्रा में उत्तरदायी हैं । आधुनिक वैज्ञानिक दावा करते हैं कि प्रतिवर्ष मानवीय गतिविधियों से वातावरण में मुक्त होनेवाली लाखों टन ग्रीनहाऊस गैस के कारण यह सब हो रहा है ।

परंतु प्रत्यक्ष में वैश्विक तापमान में हो रही इस वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) के क्या कारण हैं ? प्रतिदिन प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता क्यों बढती जा रही है ? इस बदलते जलवायु के लिए मानव किस प्रकार उत्तरदायी है ? क्या ग्रीनहाऊस गैसेस वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि का एक प्रमुख कारण हैं ? हमने बदलते जलवायु तथा प्राकृतिक आपदाओं की बढती तीव्रता के कारण ढूंढने के लिए आध्यात्मिक शोध किया ।

२. वैश्विक तापमान-वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग)  क्यों होती है ? वैश्विक तापमान-वृद्धि के मूलभूत कारण, जो प्राकृतिक आपदाओं तथा उनकी बढती तीव्रता के लिए उत्तरदायी हैं

SSRF द्वारा किए आध्यात्मिक शोध में (प्रगत छठी ज्ञानेंद्रिय द्वारा किए गए ) मौसम में हुए बदलाव (वातावरणीय परिवर्तन) तथा प्राकृतिक आपदाओं की बारंबारता एवं तीव्रता में हो रही वृद्धि के मूल कारणों को समझने के लिए तीनों आयामों का (शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक) विश्लेषण किया गया ।

ग्लोबल वार्मिंग - जलवायुमें परिवर्तनके मूल कारण

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निम्न सूत्र वैश्विक तापमान में वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) होने के तथा प्राकृतिक आपदाओं एवं बदलते मौसम के कारणों पर प्रकाश डालते हैं ।

२.१ वैश्विक तापमान-वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) एवं प्राकृतिक आपदाओं के मूलभूत कारण – चक्रीय परिवर्तन : ३० %

कई भूवैज्ञानिक दावा करते हैं कि प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता में और पृथ्वी के तापमान में वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) होने के कारण कुछ और नहीं, अपितु पृथ्वी पर नियमितरूप से होनेवाले चक्रीय परिवर्तन के परिणाम हैं । वे कहते हैं कि ऐसे ही चक्रीय परिवर्तन भूतकाल में हुए हैं, जिन के कारण हमने हिमयुग का अनुभव किया है और उससे बाहर भी आए हैं । आध्यात्मिक शोध द्वारा हमें ज्ञात हुआ है कि आज (२०११) में हम जो वैश्विक तापमान-वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) तथा प्राकृतिक आपदाएं देख रहे हैं, उनके मूल में ये चक्रीय परिवर्तन ३०% उत्तरदायी हैं ।

अध्यात्मशास्त्र शाश्वत एवं वैश्विक आध्यात्मिक नियमों के आधार पर ही चक्रीय परिवर्तनों से वैश्विक तापमान-वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) तथा वातावरणीय परिवर्तन के मूल कारणों का स्पष्टीकरण देता है । यहां हम अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से यह स्पष्ट करेंगे कि पृथ्वी पर ये चक्रिय परिवर्तन क्यों होते हैं ।

प्रकृति का नियम है कि जो भी वस्तु उत्पन्न होती है, वह कुछ समय तक रहकर अंत में नष्ट हो जाती है । इसे उत्पत्ति, स्थिति एवं लय का नियम कहते हैं । उदाहरण के रूप में, हिमालय पर्वतश्रृंखला की उत्पत्ति हुई, वह कुछ काल तक रहेगा और अंत में नष्ट हो जाएगा । इस का अर्थ यह है कि जब इस विश्व में किसी वस्तु की उत्पत्ति होती है, कुछ काल तक रहने के पश्चात यह अपेक्षा कर सकते है कि किसी एक क्षण वह नष्ट होगी । केवल निर्माता अर्थात ईश्वर ही चिरंतन एवं अपरिवर्तनीय हैं ।

नष्ट होने के अनेक मार्ग हैं, इसमें एक मार्ग है प्राकृतिक आपदाएं । नाश की इस चक्रीय प्रक्रिया में मानवजाति भी व्यवहार एवं आचरण द्वारा अपना योगदान देती है, जो युद्ध के रूप में सर्वनाश लाता है । इसकी मात्रा ७० % होती है ।

ग्लोबल वार्मिंग- ब्रह्मांड में होने वाले चक्रीय परिवर्तन

ब्रह्मांड के अस्तित्व का कालखंड चार युगों में विभाजित किया गया है । पहले युग में अर्थात सत्ययुग में सूक्ष्म का मूलभूत घटक सत्त्व अधिक था । जब वातावरण में सत्त्व की अधिकता होती है, तब चक्रीय परिवर्तन धीरे-धीरे होते हैं । जैसे ही युग आगे बढते गए, सत्त्व की मात्रा घटने लगी, जिसके परिणामस्वरूप चक्रीय परिवर्तनों की तीव्रता बढने लगी । कलियुग में जहां रज की अधिकता है, उत्पत्ति, स्थिति एवं लय के चक्रीय परिवर्तन नाटकीयरूप से होते हैं । यह सर्वनाश (लय) बढती प्राकृतिक आपदाओं तथा व्याधियों एवं युद्ध के माध्यम से होता है । हम कलियुग के इस लय के छोटे चक्र की अत्यंत घोर अवस्था में हैं । प्रत्येक छोटा चक्र सामान्यतः १००० वर्षों का होता है ।

यदि मानवजाति विश्व के रज-तम में वृद्धि करती है, तो चक्र की इस घोर अवस्था में और भी वृद्धि हो सकती है । इस का विवेचन खंड क्र.. में किया है ।

२.२ वैश्विक तापमान-वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) एवं प्राकृतिक आपदाओं का कारण – मनुष्यजाति एवं प्रकृति में संबंध : ७०%

मानवजाति एवं प्रकृति एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं । आध्यात्मिक शोध द्वारा यह ज्ञात हुआ है कि मानव मौसम को ९०% तक प्रभावित करता है तथा प्रकृति मानव द्वारा किए प्रभाव की प्रतिक्रिया के रूप में मात्र १०% ही प्रभावित करती है ।

२.२.१ वैश्विक तापमान-वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) संबंधी तथ्य : मानवजाति का निसर्ग पर प्रभाव

हमने अपनेआप से पूछा कि मानव प्रकृति को इतनी भारी मात्रा में कैसे प्रभावित करता है और हमें यह ज्ञात हुआ कि यह प्रभाव स्थूल, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर निम्न प्रकार से पडता है ।

> शारीरिक स्तर पर : १९%

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यह प्रभाव तब पडता है जब भारी संख्या में वृक्ष कटते हैं, तेल का रिसाव होता है तथा कारखानों से धुआं फैलता है इ. ।

> मानसिक स्तर पर : १९%

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जब हमने पूछा कि क्यों लोग हरित गृह प्रभाव (ग्रीनहाऊस इफेक्ट) में वृद्धि कर पृथ्वी को प्रदूषित करते हैं । इसका उत्तर यह है कि यह मनुष्यजाति के मन में है ।

5-HIN-Sattva-Raja-Tama-Chart-1हममें से प्रत्येक जीव तीन मूलभूत सूक्ष्म घटकों से (त्रिगुण) बना है । इन तीन मूलभूत घटकों के विविध अनुपात में होनेवाले संयोग पर व्यक्ति का मूल स्वभाव निर्भर करता है ।

व्यक्ति के व्यक्तित्व में विद्यमान गुण उदा. व्यवस्थितता, साफ-सुथरापन, प्रामाणिकता, शांत स्वभाव, उदारता, नम्रता आदि सत्त्वगुण की अधिकता दर्शाते हैं ।

तथापि वर्तमान विश्व में साधारण मनुष्य में तमोगुण अधिक मात्रा में होता है । स्वार्थीपन, लोभ, क्रोध, आक्रामकता, अधिकार जताना आदि स्वभावदोष इस के लक्षण हैं ।

इस प्रकार लोग पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों का बिना सोचे-समझे दुरुपयोग करते हैं ।

> आध्यात्मिक स्तर पर : २५%HIN-causes-of-global-warming-at-spiritual-level
धर्म वह है जिससे ३ उद्देश्य साध्य होते हैं :
१. समाज व्यवस्था को उत्तम बनाए रखना
२. प्रत्येक प्राणिमात्र की व्यावहारिक उन्नति साध्य करना
३. आध्यात्मिक स्तर पर भी प्रगति साध्य करना ।
- श्री आदि शंकराचार्य

किसी भी व्यक्ति का आचरण उस की आध्यात्मिक परिपक्वता अर्थात आध्यात्मिक स्तर पर निर्भर करता है ।

उदाहरण के रूप में, संत जिनका आध्यात्मिक स्तर ७०% हो; उसके लिए सभी प्राणिमात्र ईश्वर के ही रूप हैं इसलिए उनके प्रति मन में आदर तो रहता ही है, साथ ही वह सभी सजीव एवं निर्जीव वस्तुओं की ओर एक जैसे प्रेम से देखता है । इस के अतिरिक्त संतों का सभी मनुष्यमात्र के प्रति विद्यमान आध्यात्मिक प्रेम (प्रीति) अन्य लोगों को स्वयं में भी वैसी ही व्यापकता लाना सिखाता है । उसके लिए प्रेरणा देता है और प्रवृत्त भी करता है ।

इसके विपरीत जिन लोगों का आध्यात्मिक स्तर कम होता है (उदा. २०%) उनमें तीव्र अहंकार तथा स्वार्थी वृत्ति होने से, वे प्रकृति, मनुष्य तथा अन्य जीवों को कष्ट देकर अधिकतर समय केवल अपने लिए ही सुख जुटाने में लगे रहेते हैं । उनके आचरण तथा आध्यात्मिक भान के अभाववश विश्व में आज सर्वत्र अधर्म फैला हुआ है ।

इसके परिणामस्वरूप वातावरण में रज-तम की मात्रा में वृद्धि हो गई जिसे आध्यात्मिक प्रदूषण भी कहते है । सूक्ष्म अथवा आध्यात्मिक जगत की अनिष्ट शक्तियां (भूत, पिशाच, डायन आदि) मानवजाति के रज-तम में हुई इस वृद्धि का लाभ उठाती हैं । ऐसे रज-तम से युक्त लोंगों में प्रवेश कर वे उन्हें बडी सरलता से जानवरोंसमान आचरण करने के लिए विवश करती हैं । इससे समाज में रज-तम और भी बढ जाता है ।

इससे संबंधित यह लेख देखें : अनिष्ट शक्तियां व्यक्ति में प्रवेश कर उसे किस प्रकार प्रभावित करती हैं ?

२.२.२ वैश्विक तापमान-वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) संबंधी तथ्य : निसर्ग का मानवजाति पर होनेवाला प्रभाव : ७%

प्रकृति का मनुष्य पर होनेवाला परिणाम उसके द्वारा दिया गया मानव के अनिष्ट आचरण का प्रतिसाद ही है ।

> उदाहरण क्र. १ : समुद्र में बढते तैलीय प्रदूषण के कारण जल का वाष्पीकरण न्यून हो जाता है ।

> उदाहरण क्र. २ : यदि जल प्रदूषित हो जाता है, तो ऑक्सिजन छोडनेवाले वनस्पति नष्ट होने से पृथ्वी पर ऑक्सिजन की मात्रा न्यून हो जाती है ।

प्रकृति मनुष्यजाति के अनिष्ट आचरण को अन्य प्रकार से भी प्रतिसाद दे सकती है । वह किस प्रकार से प्रतिसाद देगी, यह मनुष्यजाति के अनिष्ट आचरण पर निर्भर होना आवश्यक नहीं है ।

२.२.३ वैश्विक तापमान-वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) संबंधी वस्तुस्थिति : रज-तम में वृद्धि होने से क्या होता है ?

जिस प्रकार धूल तथा धुएं से स्थूल स्तर पर प्रदूषण होता है, उसी प्रकार बुद्धिअगम्य सूक्ष्म स्तर पर रज-तम का प्रदूषण होता है । समाज में सर्वत्र फैले अधर्म एवं साधना के अभाव के कारण मानव में रज-तम बढ जाने से वातावरण में भी रज-तम बढ गया है ।

रज-तम बढने का अर्थ है, सूक्ष्म स्तर पर पूरे विश्व में बुद्धिअगम्य आध्यात्मिक प्रदूषण होना । जिस प्रकार हम जिस घर में रहते हैं, वहां की धूल-गंदगी समय-समय पर स्थूलरूप में निकालते रहते हैं, उसी प्रकार प्रकृति भी सूक्ष्म स्तर पर वातावरण में रज-तम के प्रदूषण को हटाने एवं स्वच्छ करने के लिए प्रतिक्रिया (प्रतिसाद) देती है ।

वास्तविकता यह है कि जब वातावरण में रज-तम का पलडा भारी हो है, तब यह अतिरिक्त रज-तम मूलभूत पांच वैश्विक तत्त्वों के माध्यम से (पंचमहाभूत) प्रभाव डालता है । इन पंचमहाभूतों के माध्यम से यह भूकंप, बाढ, ज्वालामुखी, चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि करता है । निम्न आकृति देखें ।

 

कृपया इसकी ओर ध्यान दें कि साधना का अर्थ है, पांच मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार की गई साधना । अधिक विवरण के लिए हमारे SSRF Classroom section का संदर्भ लें ।

मूलभूत पृथ्वीतत्त्व प्रभावित होने से उसकी परिणति भूकंप में होती है । मूलभूत आपतत्त्व प्रभावित होने से पानी में वृद्धि (बाढ आना अथवा अतिरिक्त हिमवर्षा होकर हिमयुग आना) अथवा न्यूनता (उदा. अकाल) होती है ।

उपर्युक्त आपदाओं को हम स्थूल नेत्रों से देख सकते हैं; इसलिए उनके अस्तित्व का हम स्वीकार कर सकते हैं । तथापि रज-तम बढने से मनुष्य के शरीर, मन तथा बुद्धि पर दीर्घकाल तक टिकनेवाले अनिष्ट परिणाम होते हैं । ये परिणाम सूक्ष्म एवं बुद्धिअगम्य होने से सुलभता से पहचान में नहीं आते और मनुष्य उन्हें तब पहचान पाता है, जब वे तीव्र मौसमीय परिवर्तन के रूप में सामने आते हैं । दुर्भाग्यवश इस स्थिति में अधिकतर परिवर्तन अपरिवर्तनीय होते हैं ।

२००९ की COP15 जैसी अंतरराष्ट्रीय शिखर परिषद में तथा उसके पश्चात विश्व के नेताओं द्वारा किए प्रयास वैश्विक तापमान-वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) को रोकने के लिए केवल स्थूल स्तर पर ही सहायक होते हैं । यहीं पर मानवजाति प्रकृति को प्रभावित करती है (अर्थात उपर्युक्त सारणी के वे १९% कारण जो SSRF के आध्यात्मिक शोध के अनुसार वैश्विक तापमान-वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) के कारण स्पष्ट करते हैं) । मानवजाति द्वारा प्रकृति पर डाला शेष प्रभाव, जो मानसिक तथा आध्यात्मिक स्तर पर होता है, जिसका कोई ज्ञान नहीं है और इसलिए उसका कोई उल्लेख नहीं किया है ।

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यदि हम मानसिक तथा आध्यात्मिक स्तर पर अपना आचरण नहीं बदलेंगे (कार्बन उत्सर्जन न्यून करने जैसे स्थूल प्रयासों के साथ), तो अगले दशक में हमें अनिवार्य रूप से वैश्विक तापमान-वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) , अभूतपूर्व प्राकृतिक आपदाएं, अचानक होनेवाले युद्ध का सामना करना होगा । केवल साधना ही प्रदूषित मन को शुद्ध मन में रूपांतरित कर सकती है ।

इसलिए हमें वैश्विक तापमान-वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) तथा प्राकृतिक आपदाओं के मूल कारणों को समझने एवं विश्व में हुए रज-तम के आध्यात्मिक प्रदूषण को समूल हटाने के लिए उचित कदम उठाना चाहिए । इसी मार्ग से हम वास्तव में मानवजाति के लाभ के लिए चिरंतन तथा सर्वसमावेशक कार्य कर सकते हैं । प्रत्येक व्यक्ति किस प्रकार से इसमें योगदान दे सकता है, इसके विषय में ‘‘मैं क्या कर सकता हूं’’? इस लेख में हमने स्पष्ट किया है ।

२.२.४ वैश्विक तापमान-वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) संबंधी तथ्य : अनिष्ट शक्तियों की भूमिका (भूत, प्रेत, पिशाच इ.)

वर्त्तमान में अच्छी एवं अनिष्ट शक्तियों में सूक्ष्म स्तर पर बुद्धिअगम्य घनघोर युद्ध चल रहा है । हमने यह स्पष्टरूप से हमारे अच्छी एवं बुरी शक्तियों में युद्ध तथा महायुद्ध एवं तृतीय विश्वयुद्ध’ में प्रतिपादित किया है ।

वर्त्तमान में अनिष्ट घटनाओं संबंधी समाचारों में हम जो देख रहे हैं, उसके पीछे प्रमुख भूमिका उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियों की है । उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियां मानवजाति में हुई रज-तम वृद्धि का अनुचित लाभ उठाकर लोगों को आवेशित करती हैं । उनके अन्यों से द्वेष करने जैसे स्वभावदोषों का लाभ उठाकर उन्हें अपने ही लोगों के विरूद्ध भयंकर कृत्य करने के लिए बाध्य करती हैं । इससे विश्व में रज-तम और भी बढ जाता है । अनिष्ट शक्तियों का सामना आध्यात्मिक स्तर पर करने के लिए छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार की गई परिणामकारक साधना ही एकमात्र उपाय है ।

३. वातावरण (ग्लोबल वार्मिंग) के ये अनिष्टकारी परिर्वतन कब अल्प होने लगेंगे ?

हमारे ‘महायुद्ध एवं तृतीय विश्वयुद्ध’ इस लेख में हमने कहा है कि जब तक मानवजाति अपना वर्त्तमान आचरण त्यागकर अधिक सात्त्विक जीवनपद्धति का अंगीकार कर छः आध्यात्मिक सिद्धांतों के अनुसार साधना नहीं करेगी, तब तक उसे अचानक आनेवाले संभावित महाभयंकर विपदाओं का सामना करना पडेगा ।

ये महाभयंकर संकट अभूतपूर्व प्राकृतिक आपदाओं तथा युद्ध के रूप में आएंगे । इससे जो विनाश होगा, वह इस ग्रह पर विद्यमान रज-तम से युक्त लोगों का सर्वनाश करने के लिए ही होगा । ये वातावरणीय परिवर्तन एवं वैश्विक तापमान वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) पूर्ववत होने से पहले उसकी तीव्रता और भी बढेगी ।

इस विनाश के स्वरूप की कल्पना हमारे पाठकों को हो, इसलिए कहना होगा कि एशिया में इ.स. २००४ में जो सुनामी आई उससे जो विनाश हुआ वह इस ग्रह के रज-तम का नाश करने के लिए होनेवाले विनाश का मात्र १/१००० भाग (अंश) था । प्रकृति (मौसम) २०२५ से पूर्ववत होना आरंभ होगा तथा इ.स.२०२५ से आगे के ५०-६० वर्षों में वह पूर्णतः पूर्ववत होगी ।

४. ग्लोबल वार्मिंग- जैविक आपदाएं

आध्यात्मिक शोध द्वारा अन्य एक विलक्षण वास्तविकता हमें ज्ञात हुई कि पृथ्वी पर आनेवाले एडस, एबोला तथा बर्ड फ्ल्यू जैसे भयंकर विषाणु (वायरस) संकट जैसी अधिकांश जैविक आपदाओं के पीछे उच्च स्तर की अनिष्ट शक्तियों का हाथ होता है । इ.स. २०२५ के उपरांत जब अच्छी एवं बुरी शक्तियों में चल रहे कलियुगअंतर्गत इस छोटे चक्र का युद्ध समाप्त होगा, तब ऐसे प्राणघातक विषाणु पृथ्वी पर प्रवेश नहीं करेंगे । जो जीवाणु उत्पन्न हुए हैं, वे यहीं रहेंगे और उन पर कुछ उपाय ढूंढना पड़ेगा

५. ग्लोबल वार्मिंग – सारांश

  • पृथ्वी के तापमान में वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग), वातावरणीय परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाएं हमें चेतावनी दे रहे हैं कि यह तो विश्व में बढते रज-तम का नाश करने की आध्यात्मिक प्रक्रिया की झलक है । आगे के १५-२० वर्ष चलनेवाली विनाश की इस प्रक्रिया में मनुष्य के आध्यात्मिक भान में भी वृद्धि होगी और वह ईश्वर के eनिकट पहुंचेगा ।
  • हमारे ‘विश्व के नागरिक होने के नाते मैं क्या कर सकता हूं ?’ इस लेख में हमने अनेक विकल्पों का विवरण दिया है, जिनका पालन कर हम वैश्विक तापमान-वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) और संभावित विनाशचक्र को रोकने के लिए प्रयत्न कर सकते हैं ।