१. घटना की पृष्ठभूमि

दत्तात्रेय देवता अथवा दत्त भगवान ईश्वर का एक रूप हैं तथा ब्रह्मांड में उनके कार्यों में से एक है पूर्वजों की सूक्ष्म देह से होने वाले कष्टों को दूर करना ।

एक उच्च स्तरीय संत के कथनानुसार १७ सितम्बर २०१५ को भारत के गोवा स्थित आध्यात्मिक शोध केंद्र एवं आश्रम में साधकों द्वारा दत्तमालामंत्र का पाठ आरंभ किया गया । दत्तमालामंत्र का पाठ करने का उद्देश्य था दत्तात्रेय देवता की कृपा तथा आध्यात्मिक संरक्षण हेतु उनका आवाहन करना । आश्रम के ध्यान मंदिर में लगभग २० से भी अधिक साधक एक सत्र में संस्कृत में दत्तमालामंत्र का पाठ करते हैं । प्रति सत्र २० से २४ बार इसका पाठ किया गया था तथा प्रत्येक सत्र १.५ घंटे चलता था । आरंभ के कुछ महीने यह पाठ सबेरे, दोपहर और सांयकाल इस प्रकार ३ सत्रों में प्रतिदिन भाव के साथ किया जाता था । सितम्बर २०१६ से साधक प्रतिदिन केवल १ सत्र में ही मंत्रजप करते हैं ।

१७ सितम्बर २०१५ को पाठ आरंभ होने के कुछ दिन पश्चात अर्थात नवंबर २०१५ में, यह देखा गया कि आश्रम के भूभाग की परिधि में चारों ओर कुछ पौधे उगने लगे । ध्यानमंदिर जिसमें पाठ किया जाता था उसके निकट स्थित भूभाग में सर्वाधिक पौधे दिखाई दिए । यहां के एक निवासी चिकित्सक डॉ. अजय जोशी (जो कि एक साधक भी हैं) ने उन पौधों की पहचान फिकस रेसीमोसा पौधे के रूप में की । इसे स्थानीय भाषा में गूलर का वृक्ष भी कहा जाता है । हिंदू संस्कृति के अनुसार, इस वृक्ष को पवित्र माना गया है तथा यह दत्तात्रेय देवता से संबंधित है (संदर्भ: श्री गुरुचरित्र, अध्याय १९) । अतः दत्तात्रेय देवता के मंदिरों के निकट गूलर के वृक्ष पाए जाना आम बात है । इस पौधे में अनेक चिकित्सीय गुण होने के कारण भी इसे जाना जाता है । (संदर्भ: easyayurveda.com)।

गूलर के वृक्ष के पुष्पों का परागण कुछ ततैयों द्वारा होता हैं । वे अंडे देने के लिए इस पर आते हैं । जब पक्षी गूलर का फल खाते हैं तब उनकी विष्ठा से बीजारोपण हो जाता है । यह कलम करने के अतिरिक्त, इन पौधों के उगने का मुख्य कारण है । (संदर्भ: gardentia.net)     

२. गूलर के पौधे उगने के विषय में जानकारी

यह चित्र आश्रम के ध्यानमंदिर से सटे भूभाग का है । यह चित्र नवंबर २०१५ से नवंबर २०१६ की अवधि में पौधों की संख्या में देखे गए अंतर को तथा प्रारंभिक अवस्था से इनकी वृद्धि  किस प्रकार हुई उसे दर्शाता है ।

यह चित्र गूलर के पौधों का है जिसे १ नवंबर २०१६ को दीवाली के दिन लिया गया । प्रत्येक बालकनी में प्रज्वलित दीपों के साथ, यह दृश्य देखने में बहुत ही सात्त्विक लग रहा था ।

सर्वप्रथम, यह देखा गया कि पौधे केवल आश्रम के भीतर स्थित भूभाग की परिधि में ही उगे थे ।  ये पौधे ध्यानमंदिर जहां मंत्र पाठ होता था उसकी भित्ति के बाहर की ओर स्थित भूभाग के केवल कोने पर ही सर्वाधिक घने थे । समय के साथ ये गूलर के पौधे उत्तर एवं पूर्व की दिशा में भी उगने लगे । अभी तक अनेक मास होने पर भी भूभाग की दक्षिण दिशा में बहुत कम गूलर के पौधे उगे थे । तदुपरांत सितंबर २०१६ में हमने देखा कि दक्षिण दिशा में भी अचानक ही गूलर के पौधे उगने लगे ।     

दिनांक उत्तरी क्षेत्र दक्षिणी क्षेत्र कुल
२८ सितंबर २०१६ १६ ६६ ८२
१३ नवंबर २०१६ १५ ३८ ५३
कुल नए पौधे ३१ १०४ १३५

नीचे दिए गए आलेख (चार्ट) में, हमने गूलर के सात्त्विक पौधे जो कि आश्रम के भूभाग में सभी स्थानों पर उग चुके थे, उनकी इस असामान्य उच्च विकास एवं वृद्धि दर को दर्ज किया ।

ऊपर दी गई संख्या कुलयोग को दर्शाती है जिसमें पुराने एवं नए पौधों की संख्या सम्मिलित हैं । कुछ पौधे मर गए एवं इसीलिए हमने दिसंबर-२०१५, मार्च-२०१६ एवं मई-२०१६ के माह में पौधों की संख्या में आई समग्र कमी को दर्ज किया । कृपया ध्यान दें कि इन पौधों की कोई विशेष देखभाल नहीं की गई थी तथा ये प्राकृतिक रूप से ही उगे हैं ।

नीचे दिए गए चित्रों को वार्इड एंगल लेंस से लिया गया हैं तथा ये चित्र आश्रम में स्थित भूभाग के हैं जिन्हें ३०-नवंबर-२०१५, ०३-अप्रेल-२०१६ और २६-नवंबर-२०१६ को लिया गया ।

३. गूलर के पौधे उगने संबंधी अवलोकन एवं टिप्पणियां

  • सर्वप्रथम, यह बात ध्यान देने के लिए महत्वपूर्ण है कि ऊपर के चित्रों में दिखने वाले गूलर के किसी भी पौधे को उगाने के लिए आश्रम के साधकों ने कोई भी प्रयास नहीं किए । आध्यात्मिक शोध दल की जानकारी के अनुसार गूलर के पौधे अपनेआप उगे । यहां तक कि इस भूमि को उपजाऊ नहीं माना जाता है और इस अवधि के दौरान अतिरिक्त मिट्टी भी नहीं डाली गई थी ।
  • ऐतिहासिक रूप से १० वर्ष पहले आश्रम का निर्माण होने के पश्चात से हमने आश्रम के भूभाग में किसी भी पौधे को उगते नहीं देखा । आप नीचे दिए गए चित्रों में देख सकते हैं कि पूरा भूभाग ४ तला भवनों से घिरा हुआ है तथा इसमें गहरी नींव है । इस चारों ओर से घिरे भूभाग में पक्षी कभी-कभी ही आते हैं तथा उनका यहां आसानी से आ पाना सुलभ नहीं है । गूलर के पौधे जिस स्थान पर उग रहे हैं वह स्थान किस प्रकार घिरा हुआ है, यह दर्शाने के लिए हमने आश्रम की संरचना के कुछ दृश्य नीचे दिए गए चित्रों में दिखाए हैं । पक्षियों की विष्ठा के कारण कुछ अन्य पौधों के साथ एक अथवा दो गूलर के पौधे उगना स्पष्ट भी होता है, किंतु पूरे भूभाग में चारों ओर २०२ पौधे (वे भी केवल गूलर के पौधे अन्य कोई भी नहीं) का उगना एक विशेष घटना है ।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि आश्रम के चारों ओर कुछ गूलर के पौधे हैं । इनमें से दो पौधे तो प्रवेशद्वार पर ही हैं जैसा कि हवाई दृश्य के चित्र में दिख रहा है । इनमें से किसी को भी उगाया नहीं गया, ये स्वयं अपने आप उगे हैं ।

  • पक्षियों द्वारा ध्यानमंदिर के ठीक समीप जानबूझकर तथा आश्रम के भूभाग की परिधि में सटीक रूप से अपनी विष्ठा करने का निश्चय करना, लगभग असंभव बात है । साथ ही प्रत्येक तले के ऊपर एक छज्जा है । यदि पक्षियों द्वारा उनकी विष्ठा गिराने वाली बात में कोई तथ्य होता तो हमें छज्जे पर भी कुछ विष्ठा गिरी दिखाई देती । किंतु छज्जे पर कहीं भी पक्षियों की कोई विष्ठा नहीं थी ।
  • प्रायः जून और जुलाई मास में नए पौधे उगते हैं । ये महीने भारत में वर्षा के प्रमुख महीने होते हैं । इसलिए वर्षा लगभग समाप्त होने पर सितंबर २०१६ में अचानक इतनी बडी संख्या में इन पौधों का उगना, एक विशेष घटना है ।
  • मानसून के समय, हमने यज्ञकुंड के ऊपर मंडप (कांच की छतरी) रख दी थी ताकि उसे वर्षा से तथा साथ ही पक्षियों की विष्ठा से बचाया जा सके । तब भी सितंबर २०१६ में छतरी के नीचे गूलर के पौधे उगने लगे ।

इस विशेष घटना पर कुछ अंतिम विवेचना

गूलर के इन पौधों के उगने तथा विकसित होने का संबंध दत्तमाला मंत्र के पाठ से है । यह भी कहा जा सकता है कि इस अद्वितीय घटना के पहले और पश्चात के अवलोकन करने पर उनका एकमात्र ज्ञात कारण दत्तमाला मंत्र का पाठ ही है । क्या एक उच्च स्तरीय संत के मार्गदर्शन में साधकों द्वारा संस्कृत में दत्तमाला मंत्र का पाठ करने में इस प्रकार की घटना निर्मित करने की शक्ति हो सकती है ? क्या इस विशिष्ट मंत्रपाठ से गूलर के पौधे, जो इस मंत्र के देवता तत्त्व अर्थात दत्तात्रेय देवता से निकट रूप से संबंधित है, की वृद्धि को प्रभावित किया जा सकता है ?

एक रोचक तथा आकर्षक तथ्य यह है कि इस अवधि में आश्रम स्थित भूभाग में केवल गूलर के पौधों को उगते देखा गया तथा अन्य किसी दूसरे पौधे को नहीं । यह देखते हुए कि इन गूलर के पौधों को जानबूझकर नहीं उगाया गया है किंतु ये जिस प्रकार विकसित हुए हैं वह बहुत उल्लेखनीय है । हम इस क्षेत्र में कार्यरत वनस्पतिशास्त्री तथा शोधकर्ताओं से इस घटना का वैज्ञानिक उद्देश्य हेतु विश्लेषण करने में हमारी सहायता करने के लिए अनुरोध करते हैं । हम संस्कृत साहित्य तथा धार्मिक ग्रंथों में निपुण विद्वानों व पंडितों से भी आवाहन करते हैं यदि उनके ध्यान में कोई ऐसा संदर्भ हो जिसमें किसी वनस्पति पर संस्कृत के मंत्रों से इस प्रकार विशेष प्रभाव पडा हो, तो उसकी जानकारी दें । आध्यात्मिक शोध दल इस घटना पर विश्लेषण करेगा तथा शीघ्र ही हमारे शोध का प्रकाशन किया जाएगा ।