Devices

१. प्रस्तावना

SSRF ने वर्ष २००७ में भविष्यवाणी की थी, “तृतीय विश्व-युद्ध वर्ष २०१५ में आरंभ होगा और वह लगभग ९ वर्षों अर्थात् २०२३ तक चलेगा । इस अवधि में खंडों में लडे जाने वाले सभी युद्ध परस्पर संबंधित होंगे । तथापि कदाचित यह विश्व को सहजता से स्पष्ट न हो । इस अवधि के समाप्त होते-होते परमाणुवीय शस्त्रों सहित सामूहिक विनाश करने वाले हथियारों का प्रयोग होगा ।” साथ ही, इस अवधि में विश्व को सुनामी, भूकंप, बाढ, और ज्वालामुखी विस्फोट जैसी प्राकृतिक आपदाओं की बडी घटनाओं का भी सामना करना होगा ।

स्रोत : SSRF द्वारा किया गया आध्यात्मिक शोध

वर्ष २००७ से २०१६ की ओर बढते हैं और जैसा कि हम जानते हैं कि हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जिसमें हम पुनः पुनः प्रलयकारी दुर्घटनाओं का सामना कर रहे हैं । सर्वाधिक गर्म वर्षों के नए कीर्तिमान बनाने के साथ जलवायु परिवर्तन एवं प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि के साथ वर्ष २०१६ में दुनिया भर में स्थिति गंभीर लग रही है, जैसे- सीरिया में चल रहा गृह-युद्ध, आतंकवादी संगठनों द्वारा बडे पैमाने पर की जा रही तबाही / बम विस्फोट, प्रवासी संकट, विश्व की महाशक्तियों द्वारा परमाणु हथियारों का अधिग्रहण एवं उनकी तैनाती और अन्य सरकारों द्वारा अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करने का प्रयत्न ।

फ्रांस के एक प्रसिद्ध द्रष्टा नॉस्त्रेदमस द्वारा की गईं भविष्यवाणियों से भी संकेत मिलता है कि तीसरा विश्व-युद्ध होगा । विभिन्न स्रोतों ने नॉस्त्रेदमस की भविष्यवाणियों की व्याख्या की है और अनुमान लगाया गया है कि तृतीय विश्व-युद्ध इतना भयानक होगा कि पहले दो विश्व-युद्ध बच्चों के खेल की भांति प्रतीत होंगे । आध्यात्मिक शोध और विभिन्न संतों से मार्गदर्शन के माध्यम से, हमने पाया है कि तृतीय विश्व-युद्ध शीघ्र घटित होनेवाला है और इसका प्रभाव सर्वव्यापी होगा ।

जिस प्रकार से कुछ भयानक घटनाओं का नियमित रूप से प्रकटीकरण हो रहा है, उससे लोग विश्व-युद्ध का अनुमान लगा रहे हैं । ‘तृतीय विश्व-युद्ध’ ये शब्द लोगों द्वारा अब गूगल पर खोजा जा रहा है और इसके कम होने के कोई संकेत नहीं दिखते । यह दिखाता है कि दुनिया भर के लोगों ने तृतीय विश्व-युद्ध की संभावना को इस प्रकार से देखना आरंभ कर दिया है जैसे कि अवश्य ही कुछ होने को है । फिर भी आश्चर्यजनक है कि तृतीय विश्व-युद्ध अथवा परमाणुवीय दुष्परिणामों से बचने संबंधित शब्दों के लिए अधिक नहीं खोजा जा रहा है ।

विकसित दुनिया में हममें से उन लोगों के लिए अब, संकट कुछ दूर मध्य पूर्वी देश अथवा अफ्रीका के महाद्वीप में अपतटीय है । तथापि, शीघ्र ही एक समय आएगा जैसा कि यह यूरोप में आरंभ हो रहा है कि हम जहां कहीं भी होंगे, संकट हमारी गलियों और हमारे द्वार तक पहुंच जाएगा । उस समय, यद्यपि बहुत देर हो चुकी होगी, लोग जीवनरक्षा के उपाय ढूंढेंगे । इस प्रकार के परिमाण के किसी भी युद्ध / उथल-पुथल के फलस्वरूप अभूतपूर्व मात्रा में जनहानि (मृत्यु) और संपत्ति का विनाश होगा ।

२. तृतीय विश्व-युद्ध के दुष्परिणाम

आध्यात्मिक शोध के माध्यम से, हमें इस अवधि के दुष्परिणामों के विषय में कुछ तथ्यों का पता चला है जो उस आपदा के विस्तार को दिखाएंगे जिसका हमें सामना करना होगा । निम्नलिखित पंक्तियां विश्व की स्थिति का वह चित्र है जिसका कि हम सभी को शीघ्र ही सामना करना पडेगा ।

  • सबसे पहले, जब वर्ष २०१८ में वास्तव में पतन होना आरंभ होगा । यह बहुत शीघ्रता से होगा ।
  • एक अनुमान के अनुसार विश्व की एक-तिहाई जनसंख्या (अर्थात, २ अरब से अधिक लोग) सामूहिक विनाश के परमाणु हथियार के कारण नष्ट हो जाएगी । लाखों अन्य लोगों की रेडियोधर्मी प्रदूषण एवं अन्य विविध, मुख्यतः परमाणुवीय अपशिष्ट से उत्पन्न, कारणों से मृत्यु हो जाएगी । कुल में से, दुनिया की लगभग आधी आबादी सीधे युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं के कारण अथवा उसके पश्चात के दुष्प्रभावों के कारण नष्ट हो जाएगी ।
  • आपातकालीन सेवाएं और सरकारी सहायता अनुपलब्ध रहेगी अथवा आपदा एवं विनाश की विस्तृत सीमा का सामना करने में लगभग असमर्थ हो जाएंगी ।
  • विश्व के आधारभूत ढांचे का ७० प्रतिशत नष्ट हो जाएगा । दुनिया भर के अधिकांश नगर पूरी तरह से नष्ट हो जाएंगे ।
  • चिकित्सा आपूर्ति की भारी कमी होगी और चिकित्सकों एवं चिकित्सालयों की उपलब्धता न्यूनतम होगी ।
  • रेडियोधर्मी अपशिष्ट – लोगों, पशुओं, मछली और भूमि को दूषित करेगा ।
  • रेडियोधर्मी अपशिष्ट के एक परिणाम के रूप में, औसत जल निकाय १२ महीनों के लिए दूषित रहेंगे । पीने के स्वच्छ पानी की कमी होगी और जल जनित रोग महामारी का कारण होंगे ।
  • १० वर्ष की अवधि* के लिए भोजन की कमी रहेगी ।
  • १० वर्षों* के लिए पेट्रोल की गंभीर कमी हो जाएगी; इस प्रकार यह मोटर चालित परिवहन के सभी रूपों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा ।
  • १० वर्षों* के लिए बिजली की गंभीर कमी रहेगी ।
  • लोग अवसाद, चिंता और दु: ख जैसी विभिन्न मानसिक बीमारियों से ग्रस्त होंगे ।
  • नियम और व्यवस्था पूर्णतया छिन्न-भिन्न हो जाएंगे और सभी बाधाओं में भी जीवित रहने की आवश्यकता लोगों में सर्वाधिक बुरी स्थिति लाएगी । लूट, अपराध और अस्तित्व के लिए लडाई ही उस दिन की व्यवस्था होगी । संकट के ऐसे समय में लोगों की वास्तविक प्रकृति अच्छी अथवा बुरी, उभरेगी।
  • इस युद्ध का प्रभाव ३० वर्षों के लिए रहेगा और पुनर्निर्माण हेतु १०० वर्ष लगेंगे ।

* यह अवधि अपेक्षाकृत कम है क्योंकि उस समय, विश्व की वर्तमान जनसंख्या की केवल आधी जनसंख्या ही भोजन तथा विभिन्न सुविधाओं के उपभोग हेतु बचेगी ।

३. तृतीय विश्व-युद्ध में से जीवित बचे लोगों के लिए इसका क्या अर्थ है ?

उस समय कैसी स्थिति और वातावरण होगा, उसकी यह एक झलक है । ऐसी स्थिति में स्वयं की और अपने प्रियजनों की कल्पना कीजिए । आमतौर पर, इस प्रकार की भयानक और हताशा की स्थिति में हर किसी के मन में सर्वाधिक यह विचार होगा कि ‘कैसे मैं और मेरे प्रियजन जीवित रहने में सक्षम होंगे ?’ और ‘कैसे मैं अपने प्रियजनों और स्वयं की रक्षा करूंगा ?’ स्थिति ऐसी होगी कि प्रत्येक व्यक्ति स्वकेन्द्रित हो जाएगा । हमारी सहायता के लिए आने वाली राहत सेवाओं अथवा किसी भी सरकार पर भरोसा करने के लिए हम सक्षम नहीं रह जाएंगे ।

परिवर्तन से गुजरता हुआ विश्व और तृतीय विश्व-युद्ध के जीवित बचे लोग एक शत्रुतापूर्ण एवं अराजक वातावरण के मध्य होंगे और ऐसी परिस्थितियों से जूझने की आवश्यकता होगी जिसमें मानवीय सहनशक्ति तथा मानवीय भावना की सीमाओं की परीक्षा होगी । जीवित बचे लोगों की वास्तव में जो सहायता करेगी वह है उनका आत्मनिर्भर बनना; अर्थात, जीवित रहने के उपकरणों (साधनों) के विषय में सीखना और ढहती सामाजिक व्यवस्था पर निर्भर ना होना । सर्वथा आधारभूत चीजें ही हमें अच्छी स्थिति में रखेंगी, जैसे- पर्याप्त आपूर्ति भंडारण, विभिन्न संकटों का सामना करने के लिए मानसिक क्षमता और शक्ति रखना, रेडियोधर्मी अपशिष्ट से प्रदूषण को संभालने के लिए जानकारी के सदृश व्यापक समस्याओं के समाधान ढूंढना, आदि । ऐसे समय में जीवित रहने का प्रत्येक साधन और अस्तित्व के विषय में ज्ञान का प्रत्येक अंश, जीवन और मृत्यु के बीच अंतर कर सकता है और यह आपकी आपदा तैयारियों में वृद्धि करेगा ।

४. तृतीय विश्व-युद्ध और आपदा प्रबंधन के लिए जीवनरक्षक मार्गदर्शन

इस निमित्त हम इस खंड में आपके साथ जीवनरक्षक साधन और कृत्य (साधना) साझा करेंगे जो आने वाले समय में अपने आप को बचाने एवं इसके लिए तैयार होने में शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर आपकी सहायता करेंगे । नीचे दी गई स्लाइडों में से प्रत्येक एक नए खंड में विस्तार से उस पहलू की व्याख्या करेगी । अगले कुछ महीनों में, नीचे दी गयी सारणी में हम विषयों को उनके उपखंडों तक बढाना और जोडना जारी रखेंगे, इसलिए तृतीय विश्व-युद्ध में जीवित रहने के लिए कृपया आपदा तैयारियों और आपातकालीन अत्यावश्यकताओं पर आधारित अपने ज्ञान को पुनः अद्यतन (अपडेट) करते रहें ।
कृपया ध्यान दें: SSRF वेबसाइट पर प्रत्येक उप-विषय से दिए गए सभी लिंक विषय के बारे में सामान्य जानकारी के लिए अस्थायी लिंक हैं । बाद में हम तृतीय विश्व-युद्ध में जीवित रहने और आपदा प्रबंधन के संबंध में नीचे प्रत्येक उप-विषय को विशेष रूप से जोडेंगे ।

क्रमांक उपाय
नामजप
बक्से से उपाय
एक्यूप्रेशर
शिव स्वरोदय (सूर्य नाडी और चंद्र नाडी)
यंत्र
प्राणायाम और योगासन
आयुर्वेद
प्राणशक्ति प्रवाह उपचार (न्यास और मुद्राओं सहित)
मंत्र
१० मर्मचिकित्सा – शरीर में महत्वपूर्ण बिंदुओं को सक्रिय करना
११ अग्निहोत्र
१२ अग्निशमन
१३ प्राथमिक चिकित्सा
१४ प्राकृतिक आपदा प्रबंधन और जीवन-रक्षा
१५ संवेदनशीलता
१६ सम्मोहन उपचार (स्वभाव-दोष निर्मूलन और अहं निर्मूलन)
१७ पौधों या/अथवा जड़ी-बूटियों का रोपण
१८ फिजियोथेरेपी
१९ पुष्प उपचार
२० संगीत उपचार
२१ रंगीन बोतलों द्वारा जल उपचार (Chromopathy)

५. तृतीय विश्व-युद्ध में जीवित रहने के लिए भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर किए जाने वाले कार्यों का महत्त्व बढाना

जब आपदा तैयारियों की बात आती है, तब हममें से अधिकतर लोगों का ध्यान भौतिक वस्तुओं पर ही केन्द्रित होता है । तथापि आध्यात्मिक शोध / आध्यात्मिक सिद्धांतों के अनुसार, केवल भौतिक स्तर पर किए उपायों की तुलना में सूक्ष्म स्तर पर किए गए उपाय कई गुना अधिक प्रभावी हैं । यह विशेष रूप से तब जब आपदा तैयारियों की बात आती है ।

  • भौतिक उपाय (जैसे वैकल्पिक चिकित्सा, उपचार, तथा प्राथमिक चिकित्सा तकनीक, अग्निशमन तकनीक, आदि का आधारभूत ज्ञान होना इत्यादि) स्थूल स्तर पर हैं ।
  • मानसिक उपाय (जैसे सम्मोहन-चिकित्सा आदि) भौतिक उपायों की तुलना में सूक्ष्मतर हैं ।
  • आध्यात्मिक उपाय (जैसे भगवान का नामजप, मंत्रोच्चार, अग्निहोत्र के सदृश आध्यात्मिक अनुष्ठान और निरंतर साधना करना) सूक्ष्मतम हैं ।

भौतिक स्तर की तुलना में सूक्ष्म स्तर कई गुना अधिक प्रभावी है । हमारे लिए संक्षेप में इसका अर्थ है कि आने वाले समय में तैयारी और जीवित रहने के क्रम में, केवल भौतिक उपायों को अपनाना ही पर्याप्त नहीं होगा । सार्वभौमिक सिद्धांतों के अनुसार की गई गहन साधना ही ईश्वरीय अनुकम्पा को आकर्षित करती है, जो भौतिक सुरक्षा के किसी भी रूप के संरक्षण-स्तर से बहुत आगे तक आपकी रक्षा करती है ।

इस अशांत समयकाल में परात्पर गुरु प.पू. डॉ आठवलेजी सदृश उच्चतम स्तर के संतों के पास आध्यात्मिक उपायों के द्वारा मानवता का मार्गदर्शन करने की दिव्य दूरदर्शिता है, जो आगामी प्रलयकाल में जीवनरक्षक सिद्ध होगी । हम पाठकों से शीघ्र नामजप, साधना और आध्यात्मिक उपचार आरंभ करने का आग्रह करते हैं । साधना का आरंभ करना अथवा निरंतर साधना करना  सर्वोत्तम है जिससे कि तृतीय विश्व-युद्ध के काल में जीवित रहने के लिए आप भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से अधिक अच्छे से तैयार रह सकें ।